व्यक्ति किसी कार्य विशेष में सफलता पाने के लिए कृत संकल्प हो जाय और अभ्यास प्रयास उस दिशा में निरन्तर जारी रखे तो कोई कारण नहीं कि वह सफल न हो सके। शरीर क्रिया क्षेत्र में आये दिन योगाभ्यासियों द्वारा ऐसे ही क्रिया-कौतुक प्रदर्शित किये जाते रहे हैं, जिन्हें देखने से सहज विश्वास तो नहीं होता; पर वैज्ञानिक निरीक्षण परीक्षणों के दौरान वे बिल्कुल सही पाये गये और उनकी इस क्रिया-कुशलता को सर्वसम्मति से स्वीकारा गया।
ऐसा ही एक प्रयोग-परीक्षण “हारवर्ड इंस्टीट्यूट फॉर साइकिक एंड कल्चरल रिसर्च” की ओर से डॉ. थेरेस ब्रोसे नामक एक फ्राँसीसी शरीर विज्ञानी के संरक्षण में आयोजित किया गया। इसके लिए वे अपने मित्र डॉ. माइलोवेनोविच के साथ योग की विलक्षणताओं की शोध करने के लिए भारत आए। अपने प्रयोगों के दौरान उनने अपने सन्देहों के निवारणार्थ कई प्रकार की जाँच-पड़ताल के आधार पर जो निष्कर्ष निकाले उसमें दिल की धड़कन बिल्कुल बन्द कर लेने का दावा भी उनने सही पाया। ऐसे योगी तो काफी संख्या में मिले जो सामान्यतया 72 बार प्रति मिनट की धड़कन को 30 तक घटा लेते हैं। 3 दिन से 28 दिन तक बिना साँस लिए, बिना अन्न−जल ग्रहण किए, बिना मल-मूत्र विसर्जन किए, समाधिस्थ रहने वाले योगियों में से अधिकाँश के दावे सही पाए गए। उनके संज्ञाशून्य होने की बात उनका हाथ बर्फ में दबाए रहे और आग का स्पर्श कराने पर भी परीक्षायें खरी उतरीं। एक योगी संकल्प-बल से जिस भी अंग से कहा जाता उसी से पसीना निकाल सकते थे। इससे उनने पूर्वार्त्त अध्यात्मिक के मर्म को समझा व पाश्चात्य जगत में भारत के वास्तविक स्वरूप को प्रकट किया। यही नहीं एक बार लन्दन में एक भारतीय योगी ने सन् 1928 में ऐसा ही एक सार्वजनिक प्रदर्शन किया था। उसने नाड़ी की गति को न्यूनतम 20 और अधिकतम 120 करके डॉक्टरों को आश्चर्यचकित कर दिया। वह अपनी माँस-पेशियों और त्वचा को इतनी कड़ी कर लेता था कि सामान्य हथियारों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।
साम्राज्ञी मेरीलुईस के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी इच्छानुसार अपने कानों को बिना हाथ से छुए किसी भी दिशा में मोड़ सकती थीं और आगे-पीछे हिला सकती थी। इसी प्रकार एक फ्राँसीसी अभिनेता इस बात के लिए प्रसिद्ध था कि वह अपनी इच्छानुसार अपने बालों को नचा सकता था। बालों को गिराने-उठाने, इधर-उधर घुमाने व घुँघराले बनाने की क्रिया में उसे महारत हासिल थी। अक्सर वह अपनी इस अद्भुत क्षमता का प्रदर्शन करके धन कमाया करता था। एक बाल को घुँघराला और ठीक उसके बगल के दूसरे बाल को चपटा कर देना, उसके लिए सामान्य बात थी। विभिन्न प्रकार के परीक्षण कर डॉ. आगस्त कैवेनीज ने बताया कि उसने सिर की त्वचा को माँसपेशियों तथा वस्तुओं को अपनी इच्छाशक्ति के आधार पर असाधारण रूप से विकसित और संवेदनशील कर लिया है।
इस प्रकार अगणित प्रयोग आये दिन देखने को मिलते ही रहते हैं। यह तो स्थूल अंगों के नियमन, नियंत्रण संबंधी, सामान्य प्रयोग मात्र हैं। आम मान्यता मनुष्य को यहीं तक सीमित स्वीकारती है, वह इसे हाड़-माँस का बना काय-कलेवर भर मानती हैं; पर वस्तुतः ऐसी बात नहीं है। जो दृश्यमान है, उसके अतिरिक्त भी उसमें बहुत कुछ छिपा बड़ा है। वह चेतना का विशाल भाण्डागार है। यदि उस चेतना को सुनियोजित-नियंत्रित कर किसी दिशा विशेष में लगाया जा सके, तो व्यक्ति पहले से भी असामान्य और विलक्षण करतब दिखा सकता है। भगवान ने यह ऊर्जा भण्डार इसी हेतु हमें प्रदान किया है, कि हम उसका सदुपयोग कर लाभान्वित हो सकें।