हाथ का कल्याण इसी में है कि वह अपना हित समस्त शरीर के हित में जुड़ा हुआ रखे। किसी भी अंग को अभाव या कष्ट हो तो उसके निराकरण का उपाय करें। यदि हाथ अपना कर्तव्य धर्म छोड़ दें और कलाई तक ही अपने को सीमित कर ले तो वह स्वयं भी नष्ट होगा और सारे शरीर को कष्ट करेगा।?
सम्पूर्ण जगत एक शरीर है। व्यक्ति उसका एक छोटा अवयव। अवयव यदि शरीर के साथ जुड़ा रहे। समाज की सुख शान्ति और प्रगति का प्रयास करें इसी में उसका हित साधन है दूसरों की उपेक्षा करके संकीर्ण, स्वार्थपरता में निरन्तर व्यक्ति, स्वयं मरने और समूचे समुदाय को मारते हैं।
-”स्वामी रामतीर्थ”