तथागत का परमप्रिय शिष्य (Kahani)

September 1987

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तथागत का परमप्रिय शिष्य था आनन्द। उस दिन सभी शिष्यों को उनकी इच्छानुसार क्षेत्रों में बसने और धर्मप्रचार करने के लिए भेजा जा रहा था। सभी ने अपने परिचित एवं सुविधापूर्ण स्थान चुन लिए।

आनन्द ने सूनापान्त नामक गाँव चुना। वह दुष्ट दुर्जनों के लिए प्रख्यात था। वहाँ कोई साधु पैर जमा ही नहीं सका था। सभी ने आश्चर्य से पूछा- ऐसी विपरीत परिस्थितियों वाले स्थान को अपना कार्य क्षेत्र आप क्यों चुनते हैं?

आनन्द ने कहा- चिकित्सक को वहाँ जाना चाहिए जहाँ भयंकर महामारी फैली हो। अपनी सुविधा और सुरक्षा की बात सोचने पर चिकित्सक और साधु दोनों ही हेय बनते हैं। दोनों के स्तर की परीक्षा तो कठिन परिस्थितियों में ही होती है।


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