अविज्ञात का चमत्कार या महज एक संयोग

September 1987

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कई बार संयोगवश ऐसी घटनाएं घटित हो जाती है जिनकी आशा-उपेक्षा नहीं की गई होती है। ऐसी घटनाएं व्यावहारिक जीवन में तो होती ही रहती है, पर अनेक बार यह विचित्र.ता विज्ञान जगत में भी परिलक्षित हो जाती है देखा जाता है कि वैज्ञानिक किसी विषय पर प्रयोग-परीक्षण कर रहे है, बनाना कोई पदार्थ चाहते हैं पर अकस्मात अथवा दुर्घटनावश बन कोई और पदार्थ जाता है आविष्कार किसी अन्य वस्तु का हो जाता है पिछले दिनों ऐसे अवसरों पर अनेक ऐसे नये पदार्थों-सिद्धान्तों का आविष्कार हुआ, जिन्हें आज के परिप्रेक्ष्य में मानवोपयोगी और अत्यन्त महत्वपूर्ण कहा जा सकता है।

कृत्रिम रेशम का अनुसंधान एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक डॉ0 शेरडोन्ने फोटोग्राफी के दौरान किया था। एक दिन शेरडोने एक फोटोग्राफी प्लेट पर कोलोडियन नामक तत्व की पुताई कर रहे थे कि अचानक मेज हिल जाने से ‘कोलोडियन’ से भरी बोतल फर्श पर गिर गयी। दुःख एवं क्रोध के आवेश में शेरडोन्ने उसे ज्यों का त्यों छोड़ कर घर चले आये। दूसरे दिन जब वह अपनी प्रयोगशाला की सफाई करने लगे तो जमीन पर पड़ा हुआ कोलोडियन रेशम जैसे पतले धागों में परिणत हो गया था। इन धागों से ही सर्वप्रथम 1811 में कृत्रिम रेशम का कपड़ा बनाया तथा उसे प्रदर्शित किया गया था।

यदि डॉ0 शेरडोन्ने के साथ यह आकस्मिक घटना नहीं घटी होती, तो संभवतः आज हम कृत्रिम रेशम का उपयोग नहीं कर रहे होते।

इसी प्रकार एक बार दो अमेरिकी वैज्ञानिक इरारेमसिन एवं बालवर्क अपनी प्रयोगशाला में कोलतार पर गंधक का प्रभाव देख रहे थे कि अचानक बालवर्क का हाथ होठों से टकराया जिससे उसे मिठास का अनुभव हुआ। घर जाकर हाथ धोकर खाना खाया तो बालवर्क का हाथ इतना मीठा था कि पूरा भोजन ही मीठा हो गया था दूसरे दिन बालवर्क ने पुनः प्रयोगशाला में जाकर जब अवशिष्ट पदार्थ का स्वाद लिया तो उसे बेहद मीठा पाया यही तत्व सैकरिन था, जो आज मधुमेह रोगी के लिए अनुदान एवं शक्कर का विकल्प बन गया है।

एलोपैथिक दवाओं में एण्टीबायोटिक पेन्सिलीन का आविष्कार महत्वपूर्ण माना जाता है इसकी भी खोज संयोगवश ही हुई।

एक बार वैज्ञानिक सर अलेक्जेन्डर फ्लेमिंग अपनी प्रयोगशाला में हानिकारक कीटाणुओं की उत्पत्ति के कारणों पर प्रयोग कर रहे थे। प्रयोग के मध्य उन्होंने देखा कि वाच ग्लास की तली में हरे रंग का पदार्थ जमा हुआ है। सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखने पर डॉ0 फ्लेमिंग ने पाया कि उस पदार्थ के चारों और हजारों की संख्या में जीवाणु मरे हुए चिपके हैं। अनुसंधान के बाद यही पदार्थ पेन्सिलीन साबित हुआ वो आगे की चिकित्सा की आधारशिला बना।

तब पेन्सिलीन इतनी दुर्लभ थी, कि रोगी को दिये जाने के बाद यह औषधि उसके मूत्र से पास निकाल ली जाती थी, ताकि उसका दुबारा प्रयोग किया जा सके। पर अब जब कि इसके उद्गम-स्रोत फफूँद का भली-भाँति अध्ययन किया जा चुका है फफूँद का व्यापारिक उत्पादन कर बड़े पैमाने पर पेन्सिलीन तैयार की जाती है। इसी कारण आज यह इतनी कम कीमत पर सरलतापूर्वक सभी को उपलब्ध हो जाते हैं गुप्त रोगों के लिए तो यह रामबाण सिद्ध हुई है।

विल्होल्म रोएण्टजन जर्मनी के जाने माने वैज्ञानिक था। सन् 1895 के एक सर्द दिन वे निर्वात नलिका वैक्यूम ट्यूब के साथ कुछ प्रयोग कर रहे थे नलिका चारों और से एक काले मोटे गत्ते से इस प्रकार ढकी थी कि कोई किरण उसके बाहर न आ सके। अब वह निकला से उच्च वोल्टेज की विद्युत धारा गुजरती थी सामने रखा कागज जिस पर प्रतिदीप्ति कारक रसायन का एक लेप चढ़ा हुआ था अन्धेरे में चमकने लगता था। विद्युत धारा बंद होते ही कागज का चमकना भी बंद हो जाता था। उनसे यह भी देखा कि जब दोनों के बीच हथेली रखी जाती तो उसकी हड्डियों की छाया कागज पर स्पष्ट उभर आती थी। घटना विलक्षण थी अस्तु उनकी अभिरुचि इसके प्रति चढ़ी उनसे गहराई से इसका अध्ययन किया और अन्ततः इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि नलिका से एक अदृश्य किरण निकलती है जो कागज से टकराने पर प्रदीप्ति का कारण बनती है इसका नाम उन्होंने एक्स किरण रखा अपनी वेधक प्रकृति के कारण ही चिकित्सा जगत में इसे इतना महत्वपूर्ण स्थान मिल सका और टूटे-फूटे अंगों की जाँच परख में इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।

सामान्य सी लगने वाली यह घटना अपने प्रयोग परीक्षणों के दौरान अनेक वैज्ञानिकों ने देखी थी जिनमें प्रख्यात भौतिक विद् जे.जे. थामसन भी थे मगर उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया सौभाग्यवश रोएण्टजन ने इसमें रुचि दिखायी जिससे चिकित्सा जगत को एक अत्यन्त उपयोगी और महत्वपूर्ण किरण की जानकार मिली। अन्यों की तरह यदि उनने भी इसकी उपेक्षा कर दी होती तो उपचार जगत इसकी बहुमूल्य सेवाओं से वंचित ही बना रहता।

कई बार ऐसे अवसरों पर भौतिक शास्त्र के अनेक महत्वपूर्ण सिद्धान्त वैज्ञानिकों के हाथ लगे। आर्किमिडीज का सिद्धान्त वैज्ञानिकों के हाथ लगे। आर्किमिडीज का सिद्धान्त ऐसा ही एक सिद्धान्त है।

सिराक्यूज के राजा ने एक बार यह घोषणा करवायी कि उसके सोने के मुकुट के असली-कली होने की पहिचान जो बता देगा उसे भारी इनाम दिया जायेगा। आर्किमिडीज ने भी इस घोषणा को सुन रखा था। एक बार जब यह तालाब में स्नान कर रहा था। एक बार जब वह तालाब में स्नान कर रहा था, तो उसने देखा कि डुबकी लगाने के बाद उसके भार में एक आँशिक कमी आ जाती है और हल्कापन महसूस होने लगता है एक क्षण तक उसने इस विलक्षणता पर विचार किया सोचा कि असली नकली सोने के विशिष्ट घनत्व में कमी वेशी के आधार पर इस विद्या द्वारा उसका खरापन सिद्ध किया जाता है। बस फिर पागलों की तरह ‘यूरेका-यूरेका” (पा लिया-पा लिया) चिल्लाते हुए वह राजा के पास पहुँचा, अपनी बात बतायी और दोनों मुकटों में विभेद कर देने का अपना दावा प्रस्तुत किया। राजा ने कुछ दिनों का समय देते हुए निश्चित अवधि में काम पूरा कर लाने का आदेश दिया। आर्किमिडीज ने उसी सिद्धान्त का प्रयोग करते हुए खरे-खोटे सोने की पहचान कर ली। बाद में यही घटना “आर्किमिडीज सिद्धान्त“ के नाम से प्रसिद्ध हुई।

देखा जाय तो यह एक सामान्य सी घटना थी, वो प्रायः प्रत्येक व्यक्ति नहाते अथवा कुँआ से पानी खीचते वक्त अनुभव करता है पर इससे पहले किसी ने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया संयोगवश आर्किमिडीज ने इस पर विचार किया तो विज्ञान को एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त ही लगा।

आइन्स्टीन न्यूटन एक दिन अपनी बगिया में सेब के पेड़ के नीचे बैठे हुए थे कि अचानक उनके सिर पर सेब का एक फल गिरा। वह सोचने लगे कि आखिर यह फल नीचे ही क्यों गिरा? ऊपर क्यों नहीं गया? गहन चिन्तन के उपरान्त उनने निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी में निश्चित रूप से किसी न किसी प्रकार की आकर्षण शक्ति है जो वस्तुओं को अपनी और खींचती है। कालान्तर में यही शक्ति पृथ्वी की “गुरुत्वाकर्षण शक्ति” कहलायी और यह प्रसिद्ध सिद्धान्त “गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त” के नाम से जाना गया अब इसी सिद्धान्त का प्रयोग कर बड़ी-बड़ी भौतिक एक खगोलीय गणनाएं की जाती है।

ऐसी अनेक घटनाएं हमारे दैनिक जीवन में घटती रहती है, जिसमें बड़े महत्वपूर्ण सूत्र-सिद्धान्त छिपे रहते हैं पर उन्हें हम तुच्छ समझकर दर गुजर कर देते हैं किन्तु वैज्ञानिक स्तर के व्यक्ति उन्हीं छोटी घटनाओं में से बड़ी-बड़ी खोजे कर लेते हैं इससे उन्हें जहाँ एक और स्वतंत्र चिन्तन का अवसर मिलता है वही दूसरी और वे नये आविष्कारों के श्रेयाधिकारी बनते हैं। वस्तुतः अविज्ञात का भण्डार अत्यन्त विराट एवं अपरिमित है। इसमें डुबकी लगा कर अन्तर्मुखी होकर बहुमूल्य मणिमुक्तक खोज निकाले जा सकते हैं महत्वपूर्ण आविष्कारों का इतिहास इन्हीं संभावनाओं को उजागर करता है।


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