प्रज्ञा पुत्रों की प्रतिज्ञा (kavita)

November 1983

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माँ तेरे चरणों में गिर, हम शपथ उठाते हैं। तेरी, प्रेरणा-प्रभा, माथे पर तिलक लगाते हैं॥

तेरा करुणा क्रन्दन सुनकर और न सोयेंगे। बहुत खो चुके हम प्रमाद में और न खोयेंगे॥

भरे हृदय में आग, क्रान्ति का शंख बजाते हैं। तेरी, प्रेरणा-प्रभा, माथे पर तिलक लगाते हैं॥

हम जाग चुके हैं मातु, प्रात है फिर सोना कैसा। यह सारा संसार बदल देंगे अपना जैसा॥

हम प्राणों के दीप, आँधियों बची जलाते हैं। तेरी, प्रेरणा प्रभा, माथे पर तिलक जलाते हैं।

जो तेरे वरदान अकड़ना उन पर फिर कैसा। तेरे हैं अनुदान, प्राण धन ज्ञान-मान पैसा।

जिन्हें नहीं है ज्ञान वही भूले इतराते हैं। तेरी, प्रेरणा प्रभा माथे पर तिलक लगाते हैं॥

मौज मटरगस्ती, मनमानी मस्ती छोड़ेंगे। जीवन रचना में, प्राण को सत्व निचोड़ेंगे॥

गीत नहीं गाते, हिलोर में हम लहराते हैं। तेरी, प्रेरणा प्रभा माथे पर तिलक लगाते हैं॥

प्राण-प्राण का सार, प्यार सब में लहरायेंगे। यह सारा संसार एक परिवार बनायेंगे॥

समय देवता के चरणों में अर्घ्य चढ़ाते हैं। तेरी, प्रेरणा-प्रभा, माथे पर तिलक लगाते हैं॥

हम अनीति की जड़े हिला, दुवृत्ति मिटायेंगे,। शुचिता समता मनुष्यता के दीप जलायेंगे॥

प्रज्ञा प्राण प्रभा फैलाकर, हम मुस्काते हैं। माँ तेरे चरणों में गिर हम, शपथ उठाते हैं॥

*समाप्त*


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