किसी अविज्ञात गतिचक्र से बंधा जीवन तन्त्र

November 1983

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जीवन क्रम किसी सरल गतिचक्र पर परिभ्रमण करता दीखता है, जन्म, बचपन, यौवन जरा और मरण के सामान्य चक्र में सभी परिभ्रमण करते दीखते हैं। जगाने, निपटने, खाने, काम करने, थककर सो जाने की दिनचर्या ही प्रायः सभी को बितानी पड़ती है। पेट और प्रजनन की समस्या सुलझाने में ही जिन्दगी कट जाती है। अनुकूलता, प्रतिकूलता की कड़वी मीठी अनुभूतियाँ भी दिन रात की तरह आती और चली जाती हैं। लाभ हानि के झूले में झूलते हुए हर्ष विषाद की अभिव्यक्तियाँ प्रकट करते हुए लोग मौत के दिन सम्मान-अपमान सहन करते हुए व्यतीत करते हैं। इस ढर्रे से सभी परिचित हैं। इसलिए जन्मने, मरने और दिन गुजारने में कोई अनोखापन प्रतीत नहीं होता।

इतने पर भी यदि ध्यानपूर्वक देखा जाय तो उसके साथ कुछ विचित्र संयोग जुड़े हुए दीखते हैं और लगता है कि मनुष्य सर्वथा अपना स्वामी आप नहीं है। उसके पीछे कोई नियति तन्त्र भी जुड़ा हुआ है जो ऐसे संयोग बिठा देते हैं जिनमें व्यक्ति का अपना कुछ हाथ न होते हुए भी वह था अत्यन्त आश्चर्यजनक। ऐसी घटनाएँ बताती है कि जीवन जितना सरल है उतना ही विचित्र भी है। जिसका स्वरूप जितना साधारण है उतना ही बहुत कुछ असाधारण भी, उसके साथ संयुक्त सम्बद्ध है।

तारीखों का घटनाओं के साथ कभी कभी ऐसा विचित्र संयोग बैठता है कि सामान्य बुद्धि यह समझने में समर्थ नहीं होती कि आखिर ऐसा किस कारण होता है। उसके पीछे प्रकट या अप्रकट रहस्य क्या है ?

ऐसी ही तारीखों की संयोग की एक घटना स्पेन की है। बार्सिलोना नगर में एक ‘सिएट सेटिएम्ब्रे नामक व्यक्ति हुआ है। जिसका अर्थ स्पेनी भाषा में होता है। सात सितम्बर। यह नाम उसे माता-पिता से नहीं मिला। लोगों के द्वारा थोपा गया। वह 7 सितम्बर 1786 को पैदा हुा और 7 सितम्बर 1801 को मर गया। उसके बेटे का भी यही नाम था। वह 7 सितम्बर 1774 को पैदा हुआ और 7 सितम्बर 1824 को मरा। इतना की नहीं उसके पोते का भी यही नाम था और जन्म-मरण का दिन भी पूर्वजों की भाँति ही। पोता 7 सितम्बर 1814 को पैदा हुआ और 7 सितम्बर 1862 को दिवंगत हुआ। तीन पीढ़ियों तक एक ही नाम और एक ही जन्म-मरण का दिन, अभी तक उस देश में चर्चा विषय है।

जापान पर भूकंपों की विपत्तियाँ अनेक बार आई है पर छह भयानक संयोग ऐसे हैं जो एक ही तारीख को घटित हुए । और विनाश की दृष्टि से असाधारण रूप से भयानक माने गये। (1) 1 सितम्बर 1827 (2) 1 सितम्बर 1856 (3) 1 सितम्बर 1867 (4) 1 सितम्बर 1185 (5) 1 सितम्बर 1646 (6) 1 सितम्बर 1923। इनमें से छठे ने सबसे अधिक विनाश किया। उससे टोकियो और योकोहामा शहर बुरी तरह बर्बाद हुए और प्रायः 1 लाख 43 हजार व्यक्ति दब कर मर गये। घायलों की संख्या तो इससे भी कहीं अधिक थी।

विश्व-विख्यात चित्रकार अल्मा टाडमा के जीवन में “17” की संख्या महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। यह बात वे स्वयं स्वीकार करते हुए कहा करते थे “जब मैं 17 वर्ष का था तब 17 तारीख को अपनी प्रिय पत्नी से मिला। मेरे पहले मकान का नम्बर 17 था। जब दूसरा मकान बनाया था वह भी 17 अगस्त से प्रारम्भ हुआ और उस नूतन गृह में मेरा प्रवेश भी 17 नवम्बर को हुआ। चित्रकारी के लिए सेन्ट जोन्स वुड में जो कमरा लिया वह भी 17 नम्बर का ही निकला।”

लेखकर ए.बी. फ्रेंच के जीवन की अधिकाँश घटनाएँ 7 की संख्या के साथ ही घटित हुई। उनका जन्म 7 वें महीने की 7 वीं तारीख को हुआ था। 7 वर्ष तक के कभी बीमार नहीं हुए। 7 वीं कक्षा तक वे कभी फेल नहीं हुए। उनका विवाह 7 वीं लड़के के साथ हुआ और संयोग से उस लड़की के लिए भी फ्रेंच 7 वें ही लड़के थे।

ऐलन वान ने अपनी पुस्तक, “इन क्रेडिबल कोइन्सी डेंस” में अंक संयोगों पर आधारित एक घटना का उल्लेख किया है। आयरलैण्ड स्थित डबलिन के निवासी एन्टोनीक्लेंसी के जीवन में 7 संख्या का विशेष महत्व रहा। उसके जीवन के हर महत्वपूर्ण मोड़ पर सात का संयोग अवश्य रहा। एन्टनी क्लेंसी के शब्दों में “सप्ताह के सातवें दिन, महीने की सातवीं तारीख को, वर्ष के सातवें दिन, इस सदी के सातवें वर्ष में मेरा जन्म हुआ था। मैं अपने माता-पिता का सातवाँ बेटा हूँ, यहाँ तक कि मेरे पिता भी अपने अभिभावक के सातवें पुत्र थे। अपनी सत्ताईसवीं वर्ष गाँठ पर सातवीं घुड़ दौड़ में मैंने सात नम्बर का घोड़ा चुना और उसका नाम था “सातवाँ बहिश्त” मैंने उस घोड़े पर सात शिलिंग लगाये। रेस में भी उसका सातवाँ नम्बर था।”

उत्तरी बर्टन यार्कशायर के डा. रुड के जीवन में 13 की संख्या दुर्भाग्य सूचक के रूप में रही। 13 वर्ष की अल्पायु में वे बीमार पड़े। 13 दिन तक घोर कष्ट सहते हुए 13 तारीख को हृदय की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। उनके परिवार में 13 सदस्य थे। मृत्यु के समय कुछ 13 शिलिंग ही उनके फण्ड में बचे थे। अन्तिम संस्कार के समय भी 13 सदस्य ही उपस्थित हुए। रुड का नाम फूवाह था जो कि बाइबिल के 13 वे छन्द में आता है। उनकी मृत्यु के समय मात्र 13 तारीख ही शोक संवेदना के रूप में आये।

इसके विपरीत डेनवरा कोलराडो के धनाढ्य उद्योग-पति शेरमैन के लिए 13 की संख्या सौभाग्य सूचक थी। शेरमैन का जन्म 13 की संख्या सौभाग्य सूचक थी। शेरमैन का जन्म 13 तारीख को हुआ। उनकी सगाई 13 तारीख को हुई ओर विवाह भी 13 जून सन् 1913 को हुआ। पत्नी का जन्मदिन भी 13 तारीख का ही थी। उनके विवाहोत्सव में कुल 13 सदस्य ही उपस्थित थे। 13 की संख्या उनके जीवन में सदैव लाभ दायक रही।

फ्राँस के सिंहासन के साथ 14 की संख्या का महत्व संख्याओं के साथ जुड़ी विचित्रताओं को प्रकट करती है। फ्राँस के प्रथम सम्राट हेनरी 14 मई 1029 को सिंहासन पर बैठे जबकि वहाँ वहाँ के आखिरी सम्राट का नाम भी हेनरी था 14 मई 1910 को उनकी हत्या कर दी गई थी। जिस तारीख को एक को सिंहासन मिला उसी को दूसरी 14 मई को मृत्यु का उपहार। वहाँ के अन्य सभी राजाओं के लिए 14 संख्या का महत्व सदैव बना रहा। हेनरी द्वितीय ने 14 में को ही फ्राँस का राज्य विस्तार किया। हेनरी तृतीय को 14 मई के दिन युद्ध के मोर्चे पर जाना पड़ा। हेनरी चतुर्थ ने आयवरी का युद्ध 14 मार्च 1590 को जीता 14 दिसम्बर 1566 को सवाय के ड्यूक ने अपने आपको हेनरी को आत्म समर्पण किया। 14 तारीख को ही लार्ड डफरिन ने 13वें के रूप में बैपतिस्मा ग्रहण किया।

हेनरी चतुर्थ के पुत्र लुई 13वें की मृत्यु 14 मई 1643 को हुई। लुई 14वें 1643 में (1+6-4-3-14) सिंहासन पर बैठे और 77 वर्ष 7+7+14 की आयु में उनकी मृत्यु हुई। लुई 15वें ने कुल 14 वर्ष राज्य किया। इस प्रकार फ्राँस के सिंहासन पर 14 का महत्व सदैव बना रहा।

जर्मनी के शासक चार्ल्स चौथे ने अपने जीवन में चार की संख्या को अत्यधिक महत्व दिया। वह चार रंग की पोशाक को दिन में चार बार पहनते थे। चार चार प्रकार का भोजन, चार मेजों पर दिन में चार बार करते थे, चार प्रकार की शराब पीते थे। उनके अंग रक्षक चार थे, बग्घी में चार पहिये और चार ही घोड़े जुतते थे। उनके चार महल थे उनमें चार-चार ही दरवाजे और प्रत्येक महल में चार-चार कमरे, प्रत्येक में चार-चार ही खिड़कियाँ। मृत्यु के दिन उनके समीप चार ही डाक्टर उपस्थित थे। उन्होंने चार बार “गुडबाय” कहा ओर ठीक चार बजकर चार मिनट पर इस संसार से विदा हो गए।

अमरीका के जिम विशप ने अमरीकी राष्ट्रपतियों अब्राहमलिंकन और जान एफ. कैनेडी के जीवन का तुलनात्मक अध्ययन कर बड़ा ही रोचक निष्कर्ष निकाला उनकी मान्यता है कि अब्राहमलिंकन ही जान एफ. कैनेडी थे।

चालीस वर्ष की आयु में ही लिंकन को भी राष्ट्रपति बनने की इच्छा हुई और कैनेडी को भी। दोनों की इच्छा थी कि अमरीका ओर विश्व में शान्ति स्थापना के लिए प्रयत्न करें। लिंकन दक्षिण को बहुत चाहते थे कैनेडी भी। नीग्रो स्वतन्त्रता के लिए लिंकन ने भी प्रयत्न किये पर दक्षिण के लिए तैयार नहीं हुआ, यही स्थिति कैनेडी की भी रही। लिंकन के चार बच्चे थे, दो मर गये थे, दो उनके साथ रहते थे। कैनेडी के चार पुत्र हुए दो मर गये, दो जीवित रहे। लिंकन की पहली पत्नी फैशनेबल थी, कविता और पेंटिंग उन्हें पसन्द थी। कैनेडी की पहली पत्नी भी ठीक वैसे ही स्वभाव की थीं लिंकन की धार्मिक मान्यताएँ बहुत गहरी थीं, वे हमेशा बाइबिल पढ़ते रहते थे। कैनेडी भी धर्म पर अडिग विश्वास रखते थे और बाइबिल पढ़ते थे। दोनों ही लिबरल पार्टी से सम्बद्ध थे। खाद्य पदार्थों में लिंकन को भी “स्पर्श” प्रिय था और कैनेडी को भी लिंकन 1861 में राष्ट्रपति बने और कैनेडी 1961 में लिंकन की सुरक्षा के लिए जो सर्वाधिक चिंतित रहता था उसका नाम कैनेडी था और कैनेडी की सुरक्षा की सबसे अधिक चिन्ता करने वाले उसके प्राइवेट सेक्रेटरी का नाम लिंकन था। दोनों ही मृत्यु शुक्रवार के दिन हुई। दोनों ही गोली के शिकार हुए। लिंकन का पद उनकी मृत्यु के उपरान्त दक्षिणी उपराष्ट्रपति जान्सन ने सम्भाला और कैनेडी की मृत्यु के बाद भी दक्षिणी उपराष्ट्रपति जान्सन ने ही राष्ट्रपति पद सम्भाला।

कभी-कभी ऐसे विलक्षण संयोग किन्हीं व्यक्तियों के जीवन से जुड़े रहते हैं जिसमें किसी अंक या किसी दिन का विशेष महत्व होता है। जिनसे प्रतीत होता है कि उनका क्रम मनुष्य जीवन को भी प्रभावित करता है। कोई अंक किसी के लिए शुभ और किसी के लिए अशुभ सिद्ध होता है। यद्यपि इसका कुछ कारण समझ में नहीं आता। इसी प्रकार घटनाक्रमों की एक जैसी पुनरावृत्ति में कई बार अंकों की अद्भुत पुनरावृत्ति पायी जाती है। ये पुनरावृत्ति कई बार ऐसी विलक्षण होती है जिसे मात्र संयोग पड़ती है।

किन्हीं व्यक्तियों के जीवन में कुछ अंकों का विशेष महत्व रहता है। प्रिंस विस्मार्क के जीवन में 3 का अंक कुछ विलक्षण संयोग लाता रहा। उनके तीन नाम थे लाएन वर्ग, शोवासेनी और विस्मार्क। उन्हें तीन उपाधियाँ मिलीं प्रिन्स ड्यूक तथा काउन्ट। तीन कॉलेजों से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। वे तीन देशों में राजदूत रहे। वे तीन युद्धों में लड़ने गये। तीन बार उन पर घातक आक्रमण हुए। तीन बार उन्होंने त्याग पत्र दिया। तीन ही उनके पुत्र हुए।

साइप्रस के शासनाध्यक्ष मकोरिआस के जीवन में 13 का अंक कुछ ऐसे ही संयोग लाता रहा। 13 अगस्त 1613 को उनका जन्म हुआ। 13 वर्ष की आयु में चर्च में भर्ती हुए। 13 नवम्बर 1946 में उन्होंने प्रोस्ट शिक्षा ली। 13 जून 1948 में वे विशप बने तथा राजगद्दी पर बैठे। 13 मार्च 1651 में यूनान के राजा ने उनका अभिनन्दन किया। 13 दिसम्बर 1956 को वे राष्ट्रपति चुने गये।

भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री के जीवन मंगलवार का विशेष महत्व रहा। उनका जन्म मंगलवार के दिन हुआ। बचपन में एक बार वे गंगा में डूबते डूबते बचे वह दिन भी मंगलवार था। 1940 में वे गिरफ्तार हुए वह दिन भी मंगलवार था यू.पी. पार्लियामेन्टरी बोर्ड के मन्त्री, 1947 में पुलिस एवं यातायात मन्त्री, 1651 में काँग्रेस के महासचिव 1952 में रेलमन्त्री, 1957 में परिवहन मन्त्री आदि पर उन्होंने मंगलवार के दिन ही प्राप्त किये। यहाँ तक कि वे प्रधानमन्त्री भी मंगलवार को ही बने। मंगलवार को ही उन्हें स्व. राधाकृष्णन ने भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया। ताशकन्द वार्ता भी उन्होंने मंगलवार को प्रारम्भ की ओर अन्त में उन्होंने अपना पार्थिव शरीर भी मंगलवार के दिन छोड़ा।

आयरलैण्ड के क्रुक हैवेन शहर में एक ही मकान में रहने वाले दो दम्पत्तियों के एक ही दिन कुछ मिनटों के अन्तर से दो पुत्र पैदा हुए। नाम रखा गया एलेनर ग्रेडी तथा पैट्रिक।

दोनों बच्चे अलग-अलग खेलते किंतु एक दिनों दोनों रोते-रोते घर पहुँचे तो उनके माता-पिता ने देखा कि दोनों के पैर में एक ही स्थान पर चोट लगी थी। दोनों बच्चे पढ़ रहे थे तब कई बार ऐसा हुआ कि दोनों को परीक्षा में समान अंक मिलें दोनों का विवाह एक साथ ही तय हुआ। शादी के बाद पहला बच्चा भी दोनों के एक ही दिन हुआ।

पैट्रिक और एलेनर 96 वर्ष की आयु में एक ही दिन बीमार पड़े और साथ ही मृत्यु भी दोनों की एक ही समय में हुई। इन घटनाओं से आयरलैण्ड के शिक्षित व्यक्ति भी इस बात को मानने लगे कि कोई नियन्ता व सृष्टि में अवश्य काम कर रहा है।

भारत की थुवाल रियासत के उत्तराधिकारी के मुकदमें का फैसला संसार के इतिहास में अपने ढंग का अनोखा है। रियासत का राजा रमेन्द्र राय 1909 में मरा। उत्तराधिकारी स्थानापन्न हो गये। इसके 12 वर्ष बाद राजा प्रकट हुआ और उसने अदालत में अपनी सम्पत्ति वापस लेने का दावा किया। उसका कहना था कि घर के लोग चित्त में आग लगा कर घर चले गये और उसी समय वर्षा से आग बुझ गई और वे मृतक से जीवित होंगे। स्मृति न रहने के कारण वे बारह वर्ष जहाँ-तहाँ भटकते रहे और अब वे अपनी बंगला मातृ भाषा तक भूल चूके हैं।

इस दावे का उनके पूरे परिवार ने खण्डन किया। विधवा ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि यह कोई जालसाज है। उसका पति नहीं इतने पर भी ब्रिटिश की प्रिवी कौन्सिल ने सन् 1935 में राजा के पक्ष में फैसला दिया। राजा की भारी जायदाद थी। यह सम्पत्ति फैसले के अनुसार उस मृतात्मा को मिल गई जिसने अपने आपको जीवित सिद्ध किया और न्यायकर्ताओं को प्रभावित करने में विचित्र सबूतों के आधार पर सफलता पाई।

जीवन के साथ जुड़ी हुई इन विचित्रताओं विलक्षणताओं की कोई संगति प्रत्यक्ष कारणों से नहीं बैठती तो भी उनकी प्रमाणिकता पर सन्देह नहीं किया जा सकता। अध्यात्मवेत्ताओं का मत है कि अविज्ञात होते हुए उनके सुनिश्चित आधार पर जिन्हें बुद्धि के सहारे समझ पाना सम्भव नहीं है। यथार्थता की खोज के लिए अध्यात्म की उस गुह्य विज्ञान विद्या का अवलम्बन लेना होगा जिसे वैज्ञानिकों ने उपेक्षित मानकर समुचित सम्मान नहीं दिया।


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