स्वामी रामकृष्ण बगीचे में बैठे हुए ईश्वर चिन्तन में लीन थे। इतने ही में डा. महेन्द्रनाथ सरकार उधर आये और उन्होंने स्वामीजी को बाग का माली समझकर फूल तोड़ लाने को कहा। स्वामी जी मान अपमान से परे निर्मल स्थिति में थे, उन्होंने तत्काल फूल तोड़कर डाक्टर साहब को दे दिए। दूसरे दिन ये डाक्टर साहब स्वामी जी को देखने आये तब उन्हें अपनी भूल मालूम हुई और उनकी निराभिमानता पर द्रवित हो गये।
वस्तुतः महान, सन्त साधु व्यक्तियों की पहचान उनके अभिमान शून्य विनय युक्त, स्वभाव से ही की जाती है।