तैमूर लंग ने बहुत से गुलाम पकड़े और उन्हें बेचने के लिए स्वयं ही मोल भाव करता और सौदा पटने पर गुलामों को बेच देता। पकड़े हुओं में तुर्किस्तान के दार्शनिक अहमदी भी थे। उनसे पूछा- बताइये पास खड़े हुये दो गुलामों की कीमत कितनी होगी ? अहमदी ने कहा- यह समझदार मालूम पड़ते हैं इनकी कीमत चार-चार हजार अशर्फी से कम नहीं हो सकती। अबकी बार तैमूर ने प्रश्न किया तो बताइये मेरी कीमत क्या हो सकती है ? अहमदी बोले- 20 अशर्फी।
तैमूर गरजने लगा- मेरा ही अपमान। इतने की तो मेरी सदरी है। दार्शनिक ने कहा- “यह कीमत तो मैंने सदरी देखकर ही बताई है। आप जैसे अत्याचारी की कीमत एक छदाम भी नहीं हो सकती।” तैमूर का गुस्सा ठंडा पड़ गया। मन की बात कहने की हिम्मत रखने वाले उस दार्शनिक को उसने बन्धन मुक्त कर दिया।