भस्मासुर ने तप तो किया पर आत्म-शोधन पर ध्यान नहीं दिया।
तप से प्रसन्न आशुतोष ने वरदान माँगने के लिए कहा ता उसने माँगा-“जिसके भी सिर पर हाथ रखे वह भस्म हो जाय। दुष्टताग्रस्त मानस विनाश के अतिरिक्त सोचेगा भी क्या ? चाहेगा भी क्या ? वरदान मिल गया।”
भस्मासुर ने उस उपलब्धि का तत्काल चमत्कार चाहा और नीति अनीति को ताक पर रख दिया। पार्वती को पत्नी बनाने के लिए विवश करने लगा। शिवजी के सिर पर हाथ रखकर उन्हें ही भस्म करने की धमकी देने लगा। वरदान जो मिल गया था, उसे।
शिवजी पार्वती समेत भागे। विष्णु लोक रक्षा के लिए पहुँचे। कुपात्र को वरदान देने के लिए उनकी प्रताड़ना भी हुई पर सहायता के लिए विष्णु भगवान तैयार हो गये।
विष्णु ने पार्वती का रूप बनाया। भस्मासुर से बोली- “शिव जैसा नृत्य करके दिखाये तो आपके साथ विवाह करूं।”
भस्मासुर मोहग्रस्त होकर नृत्य करने लगा और अपने सिर पर हाथ रख जाने से जलकर भस्म हो गया।
देवताओं ने प्रजापति से पूछा- “तपस्वी की ऐसी दुर्गति क्यों हुई ? प्रजापति ने कहा पराक्रम का प्रतिफल तो मिलता है, पर उससे सही लाभ उठा सकना मात्र उन्हीं के लिए सम्भव है जो दूरदर्शी और चरित्रवान हैं।”