ब्रह्मा जी की दो पुत्रियाँ थीं एक सुन्दरता दूसरी लज्जा। वयस्क हुई तो उनका मन लोक-लोकान्तरों में घूमने का हुआ। प्रजापति ने वैसा ही प्रबन्ध कर दिया, पर साथ ही सुन्दरता से कहा वह अकेली न रहे-लज्जा को साथ लेकर चले। वे चल दी। सुन्दरता की सबने सराहना की अभ्यर्थना की और उपहारों के ढेर लगा दिये। लज्जा बीच-बीच में रोक-टोक करती तो दूसरी को बुरा लगा। उसने कुट्टी कर दी और अकेली घूमने लगी। लज्जा क्या करती वह पीछे तो चलती पर चुप रहती।
सुन्दरता का शोषण होता रहा। वह निचोड़े नीबू की तरह छूँछ हो गई। अशक्तता बढ़ी और शोभा चली गई। मनुहार करने वालों ने भी मुँह मोड़ लिया। निराश सुन्दरता ने वापस लौट चलने का निश्चय किया लज्जा भी साथ लौटी। उसे साथ रहने का निर्देश जो था।
प्रजापति ने अपनी पुत्री की इस असामयिक जर्जरता को देखा तो बहुत दुःखी हुई। स्थिति समझने में देर न लगी। उन्होंने सुन्दरता से कहा, “बेटी भविष्य में लज्जा का साथ न छोड़ना। जहाँ भी जाओ उसे साथ रखना। संकट उसका साथ छोड़ने से ही उत्पन्न हुआ है।”