बुद्धिमान पशु पक्षी भी होते हैं।

November 1983

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सहायकों की वृद्धि सभी को अभीष्ट है। प्राणियों को प्रगति का अवसर, साथी सहायकों की संख्या बढ़ाने पर ही सम्भव हो पाया है। जो झुण्ड बनाकर रहते हैं, उन्हें सुरक्षा का लाभ भी मिलता है और पारस्परिक सहकार के आधार पर मनोबल ऊँचा रहने से लेकर सुविधा सम्पन्न जीवन-यापन का अपेक्षाकृत अधिक अवसर मिलता है। चींटी, दीपक, मधुमक्खी जैसे प्राणी किस प्रकार पारस्परिक सहयोग का लाभ उठाते हैं इसे सभी जानते हैं। हिरन, सिंह हाथी आदि का झुण्ड बनाकर रहना उनके लिए लाभदायक ही रहता है।

मनुष्य की प्रगति में उसकी अपनों से तथा अन्यान्य प्राणियों के साथ संपर्क साधने और सहयोग का आदान-प्रदान की आदत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। इसका एक प्रमाण पशु पालन के संदर्भ में मिली सफलता का उल्लेख किया जा सकता है। साधारणतया वन्य पशुओं के साथ मनुष्य का सीधा कोई तालमेल नहीं बैठता। मिलने पर बिदकते हैं और भयाक्रान्त होकर दूर भागने की चेष्टा करते हैं। इसे व्यवहार कुशलता ही कहना चाहिए कि उनके बीच परस्पर आदान-प्रदान का क्रम चल पड़ा। कृषि के उपरान्त दूसरा सबसे बड़ा उद्योग पशुपालन ही है। सुविधा ओर समृद्धि बढ़ाने में पशुओं ने जो मनुष्य की सहायता की है उसे भुलाया नहीं जा सकता। यदि यह तालमेल नहीं बैठता तो दोनों आपस में टकराते और नितान्त घाटे में रहते।

इस दिशा में अब एक कदम और उठाने की आवश्यकता है। मात्र पशुओं की शरीर सम्पदा को ही पर्याप्त न समझा जाय वरन् उनकी बुद्धिमत्ता को भी विकसित किया जाय और उसका लाभ उठाया जाय। शरीर कितना ही उत्तम हो, बुद्धि उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण और बढ़-चढ़कर है। पशुओं को बुद्धिमान बनाकर सरकस वालों ने उनके द्वारा अपेक्षाकृत अधिक लाभ उठाया है। घोड़े, हाथी सिखाये-सधाये गये तो वे युद्धों से लेकर अन्यान्य कार्यों में उनसे असाधारण असाधारण सहायता प्राप्त कर सकने में सफल रहे। कुत्तों ने अच्छे खासे पुलिस मैनों से बढ़कर अपराधियों का पता लगाने और अपराधों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब आवश्यकता इस बात की है जो पशु पक्षी मनुष्य के संपर्क में आ चुके हैं, जिनमें बुद्धि की मात्रा कुछ बढ़चढ़कर है इन्हें अधिक बुद्धिमान बनाने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाय जहाँ ऐसे प्रयत्न चल पड़े हैं उन्हें प्रोत्साहन दिया जाय और मिल जुलकर काम को आगे बढ़ाया जाय।

इन प्रयासों के माध्यम से हम एक अन्य दूसरे दर्जे की मनुष्य जाति उत्पन्न कर सकेंगे और उनके सहयोग से उससे कहीं अधिक लाभ उठा सकेंगे, जो आज की उपेक्षित स्थिति में उठा पाते हैं। समुचित प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके आधार पर अविकसित प्राणियों को भी उनकी सामर्थ्य के अंतर्गत आने वाले कार्यों के लिए दक्ष बनाया जा सकता है। कुत्ता एक सामान्य स्तर का पशु है। आमतौर से उससे चौकीदारी जैसा काम ही लिया जाता है, पर प्रशिक्षित करने पर उसे कितने ही ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए सुयोग्य बनाया जाता है। जिसके लिए उसकी बिरादरी में कोई प्रचलन या परम्परा नहीं है।

अन्धों का मार्गदर्शन करने में अब वे असाधारण सहायता करने योग्य बनाये जाने लगे हैं। एक नियत स्थान से दूसरे स्थान तक वे अपने मालिक को नियमित रूप से पहुँचाने और वापस लाने का काम करने लगे। प्रशिक्षित कुत्ते की गरदन में रस्सी बाँध दी जाती है और वह आगे आगे चल पड़ता है। अन्धा मालिक उस रस्सी के संकेतों पर अपने पैर बढ़ाते और मोड़ते को रुकना पड़ता है। यह मोड़ रास्ते में आने वाले व्यवधानों के कारण आते हैं। सामने से आने वाली भीड़ या सवारी की दिशा और तेजी को देखकर वह अनुमान लगा लेता है कि सामने वाला बचेगा या नहीं। यदि लगता है कि उसके कारण अपने सफल में कोई अड़चन नहीं पड़ेगी तो ही वह यथावत् चलता है अन्यथा बाई ओर बचने का ध्यान रखते हुए स्वयं भी मुड़ता है और मालिक को भी मोड़ता है। उसे ध्यान रहता है कि उसे अकेले ही नहीं चलना है वरन् मालिक के मार्गदर्शन का उत्तरदायित्व भी ठीक तरह निभाना है।

उँगली या लाठी पकड़कर अन्धों को कहीं से कहीं ले जाने की पुरानी परम्परा में एक कीमती आदमी घिरता है। वह कार्य कुत्ते के सस्ते श्रम से क्यों ने पूरा करा लिया जाय। यह सोचकर उस प्रयोजन के निमित्त उन्हें सिखाने साधने के लिए कितनी ही संस्थाओं का सृजन हुआ है और उनने अपना काम सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है। पाश्चात्य देशों में चल पड़े ऐसे प्रयासों में इंग्लैण्ड अग्रणी है। उसकी एक संस्था है “दि गाइड डाग फार दी ब्लाइण्ड्स”। उसकी वरसेस्टर, एसेक्स, फोरफर लीमिग्टन, वार्गिधम आदि स्थानों में 70 शाखाएँ हैं। सरकस के लिए जानवर सधाने वालों की तरह इन संस्थानों में भी श्वान मनोविज्ञान के ज्ञाता काम करते हैं और भिन्न-भिन्न उपायों द्वारा अपने छात्रों का कौशल निखारते हैं नर उद्दण्ड होते हैं और मादा स्वभावतः सहनशील। इसलिए इस प्रयोजन के लिए मादाएँ भर्ती की जाती हैं। प्रशिक्षण आरम्भ करने से पूर्व उनके प्रजनन अवयव निकाल दिये जाते हैं ताकि उस उत्तेजना के कारण अपनी ड्यूटी पूरी करने में गड़बड़ी न करें।

शिक्षा का आरम्भ भीड़ रहित स्थानों में होता है। बाद में उन्हें भारी भीड़ के बीच गुजरने और द्रुतगामी वाहनों से बचने के लिए भी अभ्यस्त बना दिया जाता है। जिस मालिक को उसे सुपुर्द किया जाना है उसे तीन सप्ताह केन्द्र में रहकर अपने भावी मार्गदर्शक के साथ दोस्ती बढ़ानी पड़ती है। जब दोनों के बीच घनिष्ठता विकसित हो जाती है, तभी कुत्ता विद्यालय छोड़कर उसे नये मित्र के साथ जाने का रजामन्द होता है।

पशु पक्षियों में से कुछ जातियाँ ऐसी हैं जिनमें समझदारी की मात्रा काफी है और थोड़े से प्रयत्न से उनकी विशेषताओं का लाभ उठाया जा सकता है। इस संदर्भ में कबूतर मनुष्य के लिए अन्य पक्षियों की तुलना में अधिक उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।

मास्को को ‘अनातोली शेरोब इन्स्टीट्यूट’ ने ऐसे पशु पक्षियों का विशेष परीक्षण आरम्भ किया है जिसके अनुसार यह जाना जा सकेगा कि उनकी संरचना, प्रवृत्ति एवं सूझबूझ को मोड़ मरोड़कर किसी मनुष्य के साथ सहयोग करने को उपयुक्त बनाया जा सके। इस परीक्षा में प्रायः आधे दर्जन पशु और सात पक्षी उत्तीर्ण हो गये हैं। फलतः उनके लिए कार्य निर्धारण और पाठ्यक्रम बनाने की तैयारी तत्परतापूर्वक हो रही है।

जानवरों को विशिष्ट प्रयोजनों के लिए सधाने वाले रूसी प्रशिक्षक ब्लादिमिर दुरोव ने अपने सधाये पशु पक्षियों के निवारण प्रकाशित किये हैं। उसमें उनने जानवरों की अतीन्द्रिय क्षमता को अपनी संकल्प शक्ति से प्रभावित करने और तद्नुसार विलक्षण काम कराने का सफलता का उल्लेख किया है। सामान्यतया जानवरों को लालच या प्रताड़ना के माध्यम से उनकी आदत में भिन्न प्रकार की बातें सिखाई जाती हैं। जब तब प्यार प्रदर्शन का भी प्रयोग होता है। किन्तु दुरोव ने इस से भिन्न मार्ग चुना। जिन्हें संवेदनशील पाया उन जानवरों को अति निकट बुलाकर बहुत देर तक प्यार भरी नजर उनकी आँखों में डालने का अभ्यास किया। पाया कि इस प्रयोग में वे सम्मोहित एवं समर्पित जैसी मनःस्थिति में जा पहुँचते हैं उसी समय दुरोव ने छोटे छोटे निर्देश दिये और उन्हें पालने का अग्रह किया। आश्चर्य यह कि वे इसी मानसिक संकेत के आधार पर वैसा करने लगे जैसा कि उन्हें बिना कुछ कहे या सिखाये चाहा गया था इस प्रयोग में उसकी एक कुतिया बहुत सफल रही वह मूक सन्देश द्वारा बताई गई पुस्तक को दूर रखे पुस्तकों के ढेर में ढूंढ़कर ले आती थी। पुस्तक का नाम तो वह नहीं पढ़ी सकती थी पर रंग ओर डिजाइन का नक्शा मस्तिष्क में उतार दिये जाने पर वह दिये गये निर्देश को ठीक प्रकार पालन करके दिखा देती थी। इसी प्रकार यह शिक्षक अतीन्द्रिय क्षमता का प्रयोग करके अदृश्य संकेतों के आधार पर अन्य पशु पक्षियों से भी आश्चर्यजनक कार्य करा लेता था।

बीवर खरगोश जाति का छोटा सा जन्तु है जिसकी लम्बाई पूँछ समेत चार फुट से कम ही होती है। यह अपने रहने के लिए नदी किनारे ऊँचे बाँध खड़े करता है और संरक्षित घर बनाकर सुख पूर्वक रहता है। यह बाँध लकड़ी के लट्ठों मोटी टहनियोँ, पत्थरों तथा कड़ी मिट्टी के सहारे बनाये गये होते हैं। बीवर समुदाय बनाकर यह रचना करते हैं। वे जिस पेड़ को उपयुक्त समझते हैं और उसकी जड़े दाँतों से काटने में जुट पड़ते हैं और अन्ततः उसे धराशायी करके ही छोड़ते हैं। इन पेड़ों के दो टुकड़े काटकर वे मिल जुलकर उन्हें घसीट ले जाते हैं और धराशायी करे ही छोड़ते हैं। इन पेड़ों के दो टुकड़े काटकर वे मिल जुलकर उन्हें घसीट ले जाते हैं और जमीन में गाड़कर बाँध की इतनी मजबूत नींव रखते हैं जिस पर पत्थर लकड़ी आदि जमाते हुए बाँध को नदी की सतह से 12 फुट ऊँचा तक ले जाया जा सके। यह बाँध 500 फुट तक लम्बे पाये गये हैं और इतने मजबूत देखे गये हैं कि नदी का पानी टकराकर उन्हें हिला न सके वरन् तिरछा वापस लौटने लगे। एक बाँध में दर्जनों बीवर परिवार रहते हैं। मध्य यूरोप में नदी तटों पर पाया जाने वाला यह छोटा सा जन्तु अपनी श्रमशीलता, सूझ बूझ के कारण मनुष्यों के लिए भी आदर्श बन गया है और बड़े अपने से छोटों को उसका उदाहरण देकर उत्साहित करते हैं।

रूस के समीपवर्ती समुद्र क्षेत्रों में पाई जाने वाली डाल्फिन मछली प्राकृतिक ऐसी है जिसे मनुष्य के साथ दोस्ती करना बहुत सुहाता है। उसे थोड़ी भी ट्रेनिंग देकर पालतू बनाया जा सकता है। वह हाथ से दिये हुए बिस्किट पाने के लिए बार बार लपक कर आती है और तब तक देने वाले के इर्द-गिर्द फिरती रहती है जब तक कि वह निराश नहीं हो जाती या किसी दूसरे द्वारा बुला नहीं ली जाती। पालतू कुत्ते या बिल्ली की तरह वह नाम लेने पर पानी से निकलकर ऊपर आ जाती है और अपनी उपस्थिति का परिचय देती है। थोड़े दिन की शिक्षा पाकर वह हलके फुलके आदमियों तथा बच्चों को अपनी पीठ पर बिठाकर पूरे तालाब का इस सधे हुए ढंग से चक्कर लगाती है जिससे सवार को गिरने का खतरा न उठाना पड़े। वह कुछ शब्दों का अर्थ भी समझ लेती है और इशारों के आधार पर अपनी गतिविधियों में हेर फेर करती है।

इंग्लैण्ड के प्लीमथ अस्पताल में मनुष्य धावकों के स्थान पर कबूतर कर्मचारी भर्ती ओर प्रशिक्षित किये गये हैं। इस अस्पताल की रक्त परीक्षण प्रयोगशाला कई मील दूर है। वहाँ तक पहुँचने और रिपोर्ट लाने में काफी समय लगता है तथा खर्च पड़ता था। अब वह कार्य प्रशिक्षित कबूतर करने लगे हैं। उन्हें अस्पताल से सीधे प्रयोगशाला तक उड़ने की शिक्षा दी गई है। पैर में जाँच के रक्त की छोटी थैली बाँध देने पर वे सीधे प्रयोगशाला पहुँचते हैं। डाक्टर उस थैली की जाँच पड़ताल करके रिपोर्ट टेलीफोन से अस्पताल कार्यालय को बता देते हैं। इस योजना से समय तथा पैसे की बहुत बचत होने लगी है।

कबूतरों को वस्तुओं में से खरी खोटी काटने का काम बड़ी आसानी से सिखाया जा सकता है। कैपसूलों, बीजों, बाल बेयरिंगों में से जो निर्धारित मापदण्ड में घटिया या खराब होता है उसे वे चुन-चुनकर अलग रखते रहते हैं। अमेरिका के वाल्टररिच ने इस दिशा में चमत्कारी परिणाम प्रस्तुत किये हैं। वे कबूतरों से यान्त्रिक खराबियाँ तलाश कर लेने में उनकी मौलिक क्षमताओं का उपयोग करने की सफलता में बहुत आशावान् हैं।

जासूसों के कामों में उनका बहुत उपयोग है। छोटे कैमरे और टेप रिकार्डर उन्हीं के जैसे रंग के बनाकर इस प्रकार बाँध दिये जाते हैं कि किसी को उनके साथ इन उपकरणों के होने का सन्देह तक न हो। शत्रु क्षेत्रों में जाकर आवश्यक जानकारियाँ संग्रह करके लाने में उनके द्वारा अच्छी भूमिका निभाये जाने की आशा की जा रही है। उसके लिए आवश्यक उपकरण बनाये जा रहे हैं।

मास्को का समाचार है कि सीसिया क्षेत्र के एक गड़रिये का पालतू सारस उसके भेड़ बाड़े की पूरी तरह चौकीदारी रखवाली करता है। जब भेड़ें बाड़े में होती हैं तो वह दरवाजे पर पहरा लगाता है। कोई भेड़ बाहर जाना चाहती है तो उसे पंख पसार के रोकता है और चोंच से धकेलकर भीतर खदेड़ता है। दिन भर वहीं रहता है जहाँ भेड़ें चरती हैं। कोई खतरा देखता है तो चिल्लाकर सावधान करता है। जब उसे सोना होता है तब भेड़ों के साथ ही सोता है। इस सारस को गड़रिये ने घायल अवस्था में एक पहाड़ी पर पड़ा पाया था और उसे घर लाकर पाल लिया था।

मलेशिया में बन्दरों द्वारा ऊँचे पेड़ों पर चढ़कर नारियल, सुपाड़ी, खजूर, तोड़ने का प्रशिक्षण बहुत सफल हुआ है। मनुष्य की तुलना में उनका कार्य जल्दी भी होता है और सही भी। साथ ही उनके श्रम का मूल्य मात्र मन पसन्द आहार देने से ही काम चल जाता है। जबकि उन कामों के करने वाले मनुष्य का वेतन कई गुना अधिक होता है।

वानर जाति के कई वर्ग ऐसे हैं जिनमें सूझ बूझ और अनुशासन का अभ्यास करना सरल है। इनमें से चिंपांजी वनमानुष और बस्तियों में पले बन्दर अधिक उपयोगी पाये गये हैं। डा. मार्केल आन्द्रे चिंपांजियों को इस योग्य बनाने में लगे हुए हैं कि वे होटलों में सेवा कर्मचारियों का काम कर सकें और आगन्तुकों के लिए कौतूहल मनोरंजन का माध्यम बन सकें। सामान्य दफ्तरों और कारखानों में भी हलके फुलके काम कर सकते हैं और श्रमिकों जैसी ड्यूटी देते रह सकते हैं। चौकीदारी के लिए भी उन्हें प्रयुक्त किया जा सकता है।

झज्जर (जिला रोहतक) में एक साँड़ बन्दर को अपनी पीठ पर बिठाये-बिठाये फिरता है और बन्दर जो कुछ यहाँ-वहाँ से छीन झपटकर लाता है उसका एक हिस्सा बैल को खिलता है। बैल को छेड़ने पर बन्दर और बन्दर को छेड़ने पर बैल हिमायत लेता है और उसे दूर तक खदेड़ने में दोनों साथ-साथ चलते हैं। इस दोस्ती का दृश्य देखने के लिए स्थानीय तथा बाहर के लोगों की भीड़ पीछे पीछे लगी रहती है।

मेरठ में एक बन्दर को शराब का ऐसा चस्का लगा है कि वह निरन्तर ऐसा अवसर ढूँढ़ने के लिए फिरता रहता है जिसमें उसके हाथ यह पेय लगे। होटलों, शराबखानों के इर्द-गिर्द वह घात लगाये छिपा बैठा रहता है। और जब भी अवसर पाता है बोतल छीनकर पेड़ पर जा चढ़ता है और देखते देखते गटक जाता है। नशे में उन्मत्त होकर अभी किसी पर हमला तो नहीं किया पर उसकी उछल कूद और मुखाकृति देखते ही बनती है। यह चस्का उसे एक बार कहीं से खुली शराब प्राप्त कर लेने और उसका स्वाद चख लेने तथा मस्ती का मजा लूट लेने के बाद लग गया मालूम देता है।

मोदी नगर (मेरठ) से 11 किलोमीटर द्वार मुरादपुर पुर्सी गाँव में प्रायः आधा दर्जन डकैतों ने मूलचन्द्र वैश्य के घर पर हमला किया। गृह स्वामी के पुत्र को डकैत पिस्तौल से मारने की धमकी दे रहे थे और धन पूछ रहे थे। उतने में पालतू गाय ने रस्सा तुड़ाकर डकैतों पर हमला बोल दिया। एक को सींगों से वहीं मार दिया और अन्यों ने भागकर अपनी जान बचाई। गाय की यह बहादुरी चर्चा का विषय बनी रही।

बुद्धिमानी केवल मनुष्य के ही हिस्से में नहीं आई। पशु पक्षियों में भी वह क्षमता मौलिक रूप से विद्यमान है। बड़े भाई के नाते मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपने छोटे भाइयों की बुद्धिमत्ता विकसित करने का कर्त्तव्य निभायें। इससे अनेकों प्राणियों की उपयोगिता बढ़ेगी तथा मनुष्य भी अपने प्रयत्न का समुचित प्रतिफल उनकी विशेष सहायता के रूप में प्राप्त कर सकेगा।


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