अन्तर्ग्रही आदान प्रदान का एक मात्र आधार अध्यात्म

November 1983

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नोबेल पुरस्कार विजेता अरनो पेन्जियास और राबर्ट विल्सन ने अब यह निर्विवाद रूप से सिद्ध किया है कि विश्व की उत्पत्ति ‘बिग बैंग’ (महत्तम विस्फोट) से हुई है। विश्व की आयु की गणना भी इसी आधार पर कर ली गई है जो 20 खरब वर्ष पूर्व मानी जाती है। पृथ्वी की उत्पत्ति साड़े चार खरब वर्ष पूर्व हुई थी। हमारी आकाश गंगा के निकटतम तारों में कई ऐसे हैं जिनमें हमारे सौर मण्डल जैसे अनेकों सौर मण्डल हैं तथा कई ऐसे ग्रह हैं जहाँ पृथ्वी की तरह जीवन संभव है हमारी पृथ्वी की अपेक्षा उन तारों के ग्रह काफी विकसित और पुराने हैं। उन ग्रहों की आयु 5, 10 या 15 खरब वर्ष आँकी जाती है। पृथ्वी में जीवन का उद्भव सर्व प्रथम 30 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है। इस दृष्टि से मनुष्य की अपेक्षा अन्य तारों पर रहने वाले प्राणियों के अधिक बुद्धि सम्पन्न होने की पूरी सम्भावना है।

पृथ्वी पर 1960 से लेकर अब तक विभिन्न केन्द्रों से रेडियो संकेत भेजे जा रहे हैं। प्रकाश की गति के हिसाब से ये संकेत 240 ट्रिलियन माइल की दूरी तय कर चुके हैं। इससे कम से कम निकटतम 40 तारों तक ये संकेत पहुँच चुके हैं। अगर उन पर कोई विकसित प्राणी जीवनयापन कर रहे होंगे तो पृथ्वी से प्राप्त संकेतों के जवाब में भेजे गये उनके उत्तरों को पृथ्वी पर पहुँचने में बीस वर्ष और लगेंगे। यह सम्भावना की जा सकती है कि प्रत्युत्तर के रूप में आगामी 20 वर्षों में उनके संकेत पृथ्वी पर प्राप्त होंगे या फिर उनका कोई प्रतिनिधि यहाँ आयेगा।

कुल 12 तारों मण्डलों में मनुष्य से अधिक बुद्धिशाली प्राणियों के प्रमाण मिले हैं इनमें से दो प्रमुख है पहला अल्फा सेण्टोरी इसकी आयु सूर्य जितनी है। जीवन की सम्भावना भी अधिक है क्योंकि वहाँ जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन कार्बन जैसे तत्व हैं। दूसरा तारा मण्डल है “एव्सीलान”। इसकी आयु भी सूर्य के बराबर मानी जाती है। वहाँ पाये गये तत्वों से ज्ञात होता है कि वहाँ जीवन की सम्भावना है।

इन अनआइडेण्टि फाइड फारेन आब्जेक्ट्स जिन्हें “यूफो” नाम से भी पुकारा जाता है, में यदि कोई जीवित व्यक्ति होगा तो उसे लगभग पच्चीस ट्रिलियन माइल (हमारे निकटतम तारे सीरियल की दूरी) से भी अधिक लम्बी यात्रा करनी होगी। इस यात्रा में वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार दस लाख वर्ष लगेंगे। हमारी तकनीकी इतनी विकसित नहीं है कि हम वहाँ जीवन की कल्पना करते हुए भी उनसे मिलने हेतु जाने की बात भी सोच सकें। इसका कारण यह तो है ही कि इतनी लम्बी यात्रा हेतु अन्तरिक्ष यान बनाने वाली स्पेस टेक्नोलॉजी विकसित होने में अभी समय लगेगा। दूसरा कारण यह भी है कि हम अपने संकेतों की सर्वभौम बनाने एवं बाहर से आने वाले संकेतों के अर्थ को समझने में असफल रहे हैं। अमेरिका के अन्तरिक्ष विज्ञान से सम्बन्धित ‘नासा’ विभाग द्वारा हमारे सौर मण्डल के विभिन्न ग्रहों पर भेजे गये सेटेलाइटों द्वारा कोई ऐसा संकेत नहीं मिला है जिससे लगता हो कि पृथ्वी से इतर भी कहीं जीवन का अस्तित्व होगा। यह मात्र हमारा सीमा बन्ध है, सम्भावनाओं की समाप्ति नहीं। हमारे कई लाख साल के वंशजों के लिए शायद यह सम्भव होगा कि वे निकटतम तारे तक पहुँच पायें। लेकिन ऐसे ग्रह जिनका विकास पृथ्वी से खरबों साल पूर्व हो चुका है वहाँ के निवासियों द्वारा पृथ्वी तक यात्रा का साहस जुटा पाना सम्भव है।

“यूफो का धरती पर आना एक तथ्यपूर्ण वैज्ञानिक धारण है” इस नाम से लिखे निबन्ध के रचयिता वैज्ञानिक राबर्ट जेस्ट्रा का यह दृढ़ मत है कि यह वास्तविकता है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। क्या पृथ्वी पर ऐसे सुदूर ग्रह के निवासियों का आना हुआ है। ? इस विषय पर बाइबिल के इजकेल के अध्याय 1,4,24 में कई हजार वर्ष पूर्व ऐसे लोगों के आने का उल्लेख है।

डॉ. एलेन हेनेक ने यूफो सम्बन्धी अनेकों रिपोर्टों का अनुसन्धान करके यह निष्कर्ष निकाला है कि यह केवल कल्पना की उड़ान या किंवदंती न होकर दृढ़ आधारों पर टिका एक तथ्य है। पृथ्वी पर से बीस वर्षों से लगातार रेडियो संकेत विश्व के सुदूर स्थानों तक भेजे जाने के कारण पहले की अपेक्षा अब अन्य ग्रह निवासियों के यहाँ आने की सम्भावना अधिक मानी जाने लगी है। इस सम्बन्ध में लिखी गई कथाएँ अब मात्र यूटोपिया नहीं रह गयी हैं। इन्हें अगले कुछ दशकों में ही सत्य होते देखा जा सकेगा।

नोबेल पुरस्कार विजेता एस्ट्रोफिजीसिस्ट डा. पेजियम और डा. पेजियस और डा. बिल्सन दोनों ही यह विश्वास करते हैं कि इस ब्रह्माण्ड में ऐसे ग्रहों का अस्तित्व है जिनमें मनुष्य से भी अधिक बुद्धिमान प्राणी निवास करते हैं। वे सोचते हैं कि यदि मात्र धरती पर विभिन्न क्षेत्रों के निवासी पारस्परिक आदान-प्रदान से महत्वपूर्ण प्रगति कर सकते हैं और उसका लाभ समस्त संसार को मिल सकता है तो ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि ब्रह्माण्ड में निवास करने वाले बुद्धिमान जीव अन्तर्ग्रही सम्बन्ध स्थापित करें और मिल जुलकर ऐसा कुछ सोचने लगे जो ब्रह्माण्ड परिवार भर के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके।

इस सम्बन्ध में सबसे बड़ी कठिनाई एक ही है कि अभी प्रकाश गति से अधिक द्रुतगामी और कोई संचार पद्धति हस्तगत नहीं है। अन्तर्ग्रही दूरी को देखते हुए यह गति ऐसी नहीं है जिसमें सौ वर्ष की आयुष्य वाला मनुष्य इस संपर्क में अभीष्ट समय के अंतर्गत ऐसे आदान-प्रदान में समर्थ हो सके। यदि वार्तालाप में इतनी देर लग सकती है तो फिर आवागमन में लगने वाला समय कितना अधिक हो सकता है, इसकी परिकल्पना तक कठिन है। फिर इतनी दूरी पार करने और लौटने वाले वाहनों के लिए ईंधन भी तो इतना अधिक और इतना महंगा होगा कि उसकी व्यवस्था कर पाना असम्भव जैसा दीखता है।

स्पष्ट है कि अन्तर्ग्रही आदान-प्रदान या आवागमन यदि आवश्यक ही समझा जाय तो प्रकाश गति से अधिक दौड़ सकने वाली और बिना खर्चीले ईंधन से चल सकने वाली व्यवस्था हस्तगत करनी होगी। इस संदर्भ में विचार शक्ति ही एक ऐसी है जो प्रकाश गति से अधिक दौड़ सकती है। इसी प्रकार सूक्ष्म शरीर का वजन और स्तर ही ऐसा है जो बिना भौतिक ईंधन की अपेक्षा किये लोक लोकान्तरों तक दौड़ लगा सके।

यह कार्य पदार्थ विज्ञान की परिधि से बाहर है किन्तु अध्यात्म विज्ञान के आधार पर यह सम्भव भी है और कितना अधिक सुविधा संवर्धन सम्भव हो सका यदि इस तथ्य के सहारे ब्रह्माण्डीय चेतना की अस्त-व्यस्त कड़ियों को जोड़ सकने की बात सोची जा सके और उस आधार पर सम्भव हो सकने वाले लाभों का अनुमान लगाया जा सके तो फिर अध्यात्म विज्ञान का आश्रय लेने और उसे सुव्यवस्थित करने की बात सोचने के अतिरिक्त और कोई चारा है नहीं।


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