रेशम का थान था (kahani)

November 1983

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एक व्यक्ति के पास रेशम का थान था-धागे आपस में लड़ने लगे। अलग-अलग रहने की सबने ठानी। दर्जी ने उसके टुकड़े काट दिये।

एक जगह खजूर की पत्तियाँ थी। सूखी और बिखरी पड़ी थी। उसने मिल जुलकर रहने का निश्चय किया। माली ने इकट्ठी करके उनकी चटाई बुन दी।

रेशम की धज्जियाँ दुकान-दुकान पर मारी फिरी, किसी ने नजर उठाकर भी उन्हें नहीं देखा। जबकि चटाई का गट्ठा हाथों हाथ बिक गया।

अलग होने और शामिल रहने का अन्तर दोनों ने समझा और भविष्य के लिए सही रास्ता अपनाया।


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