दिवाली से होली के बीच दुहरे लाभ वो सत्र

November 1983

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शीत ऋतु स्वास्थ्य संवर्धन एवं डटकर पढ़ने की तरह आध्यात्मिक साधनाओं के लिए भी सर्वोत्तम मानी जाती है। शीत प्रदेश के निवासी अपेक्षाकृत अधिक सुन्दर, बलिष्ठ और दीर्घ जीवी होते हैं हिमालय में साधनात्मक सफलताएँ वहाँ की जिन विशेषताओं के कारण उपलब्ध होती हैं उनमें वहाँ का शीत प्रधान वातावरण भी एक बड़ा कारण है।

शान्ति कुँज में यो कल्प साधना सत्र चलते तो निरन्तर है पर गर्मी के दिनों में पर्यटकों की घुस पैठ और अनगढ़ अनुशासन हीनता फैलाते रहने के कारण भी वातावरण अशान्त बना रहता है। ऋतु भी साधना के अनुकूल नहीं पड़ती। इसलिए साधना का प्रतिफल भी अपेक्षाकृत कुछ कम ही रहता है। सर्दी के दिनों में उत्तराखण्ड यात्रा बन्द हो जाने से भीड़ भी स्वभावतः कम हो जाती है। साधना में मन लगना है। वातावरण शान्त रहता है और मार्गदर्शकों को पर्यटकों की हठवादिता से उत्पन्न खोज भी नहीं रहती। ऐसी दशा में साधना की सफलता का अनुपात भी बढ़ा चढ़ा रहना स्वाभाविक है।

अब सर्वत्र तापमान बढ़ गया है। हरिद्वार भी उतना ठण्डा नहीं रहा, जितना कभी था। फिर जिन्हें आवश्यकता होती है, स्नान के लिए गर्म पानी का प्रबन्ध भी रहता है। आश्रम में सारे दिन सर्वत्र धूप रहती है इसलिए सर्दी लगने का उतना खतरा नहीं रहता जैसा कि आम लोग समझते हैं। बिस्तर कपड़े पूरे लेकर चलने और दुर्बलों, वृद्धों, बच्चों को साथ न लाने पर साधना में सुविधा और सफलता अधिक रहती है।

इस वर्ष जिन लोगों को स्वीकृति प्राप्त करके भी कल्प सत्रों में सम्मिलित होना नहीं बन पड़ा अथवा स्वीकृति ही नहीं मिली, उन्हें उस कमी की पूर्ति अब दीवाली से होली के बीच चार माह में कर लेनी चाहिए। इन दिनों इच्छित समय की स्वीकृति सुविधापूर्वक मिल जाती है। यों व्यस्त लोगों के लिए नौ-नौ दिन के छोटे सत्र भी 1 से 9, 11 से 19 और 21 से 29 के चलते रहते हैं पर अच्छा यही है कि एक महीने के समय सत्र में आया जाय। इन दिनों एक महीने के सत्र वालों को अधिक दबाव के कारण नौ दिन में ही निपटाने की जल्दी भी नहीं पड़ती ।

विशेष बात यह है कि अब कल्प सत्रों के साथ युग शिल्पी सत्र भी जोड़ दिये गये है। इसलिए परिश्रम तो आठ दस घण्टे नित्य करना पड़ता है किन्तु एक ही समय में दुहरा लाभ प्राप्त करने का सुयोग भी मिल जाता है। अब सभी प्रज्ञापीठों और चल प्रज्ञा संस्थानों में नई चेतना आई है। सभी में सक्रिय और तत्परता बढ़ी है। कार्यक्रमों का भारी विस्तार हुआ है। अतएव सर्वत्र संचालन में दस प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता भी कई गुनी बढ़ गई है। इसके लिए सभी संस्थान अपने-अपने कार्यकर्ताओं को एक महीने के युग शिल्पी प्रशिक्षण में भेजते हैं। इस निमित्त शीतऋतु ही अधिक उपयुक्त बैठती है उसमें अधिक अभ्यास कर सकना सम्भव होता है। कल्प साधना तो साथ-साथ चलती ही रहती है। यह लाभ अतिरिक्त है।

सुगम संगीत, भाषण कला, जड़ी बूटी उत्पादन एवं उपचार, गायत्री यज्ञ, जन्म दिवसोत्सव, स्लाइड प्रोजेक्टर प्रदर्शन, ज्ञानरथ संचालन आदि की शिक्षा तो युग शिल्पियों को पहले भी दी जाती थी। अब प्रज्ञा पीठों के लिए निर्धारित कार्यक्रम का प्रशिक्षण भी साथ में अतिरिक्त रूप से जोड़ दिया गया है। बाल संस्कारशाला (ट्यूटोरियल क्लास) व्यायामशाला खेल-कूद ड्रिल स्काउटिंग, फर्स्ट एड, (रोगी परिचर्या), हरीतिमा संवर्धन (घरों में शाक वाटिका तथा पुष्पोद्यान लगाना) सामूहिक श्रमदान से स्वच्छता अभियान जैसे कार्यक्रम हर प्रज्ञापीठ की इमारत में चला करेंगे। बिना इमारत बले चल प्रज्ञा संस्थान भी किसी की इमारत माँगकर इन्हें कार्यान्वित करेंगे। इसके लिए अनिवार्यतः प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता पड़ेगी। यह अनुभव अभ्यास युग शिल्पी सत्रों में सम्मिलित हुए बिना सम्भव नहीं। यह दुहरा लाभ प्रदान कराने की व्यवस्था इस सर्दियों में अधिक अच्छी तरह चलाई जा रही है। गर्मी आते ही भीड़ भाड़ मौसम एवं खोज अराजकता की स्थिति में असुविधा का माहौल आ धमकेगा और उतना लाभ न होगा जितना इन दिनों सम्भव है।

सुशिक्षित समयदानियों के लिए सर्दी के दिनों में ही शान्ति कुँज में रहकर लेखन अध्यापन जैसे कार्य करने की आवश्यकता रहती है। जो न्यूनतम तीन महीने का समय दें उन्हें ही यहाँ रहने का अवसर मिलेगा। अन्य ऋतुओं में तो प्रवास पर भेजने की व्यवस्था ही उनके लिए रहती है। उपरोक्त प्रयोजनों के लिए आवेदन भेजकर समय रहते अपना स्थान सुरक्षित करालें। इस सम्बन्ध में निर्णय शीघ्र लें।


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