महर्षि धोम्य के गुरुकुल में पाठ्यक्रम के साथ सदाशयता और अनुशासन भी सिखाया जाता था। एवं दिन मूसलाधार वर्षा हुई। आश्रम के खेत की मेड़ टूट गई थी। गुरु ने खेत का पानी रोकने के लिये एक शिष्य आरुणी को भेजा। उसने अपनी बुद्धि और मेहनत से सब कुछ किया पर पानी रुका नहीं तो वे उस स्थान पर स्वयं लेट गये जहाँ से पानी बह रहा था।
बहुत देर हो गई तो महर्षि विद्यार्थी की तलाश करने स्वयं निकले। देखा तो आरुणी मेड़ का पानी रोकने के लिए स्वयं लेटा हुआ था।
ऋषि ने तत्काल पानी बन्द किया। आरुणी को उठाकर छाती से लगा लिया। बोले- कर्तव्य परायणों की विद्या ही सार्थक होती है। सच्चा लाभ उन्हीं को मिलता है।