अकबर के दरबार में एक पेशकार थे- बलीराम। बादशाह से अपमानित होने पर उन्होंने वैराग्य की ठानी और घर का सारा माल असबाव गरीबों को दे दिया। स्वयं जमुना की रेती में लम्बे पैर पसारकर ऐंठने लगे। बादशाह ने बुलाया तो आये नहीं। अकबर स्वयं ही उन्हें मनाने पहुँचे। कुशल प्रश्न के बाद अकबर ने पूछा- “पैर पसारना कब से शुरू हुआ।” बलीराम ने कहा-“जिस दिन से हाथ समेटे उसी दिन से पैरों का फैलाना आरम्भ हो गया।”