एक गुरु के दो शिष्य थे एक सौम्य दूसरा उद्धत। गुरु दोनों को ही पूजा पाठ कराते और कहते भजन से स्वर्ग मिलेगा। दोनों को वह बात भाई और बताया गया विधान पूरा करते रहें। फिर भी उनने स्वभाव बदला नहीं। एक प्रसन्न रहता दूसरे पर आवेश छाया रहता।
समयानुसार तीनों ही मरते चले गये और स्वर्ग जा पहुंचे। वहाँ तीनों की परस्पर भेंट हुई। उद्धत शिष्य ने शिकायत की स्वर्ग तो मिला पर यहाँ सुख कहाँ है। हर दिन लड़ाई झगड़ा होता है और में अशान्त रहता है।
गुरु ने कहा- “भजन स्वार्थ सुख तो हो सकता है पर शान्ति पाने के लिए स्वभाव को सौम्य बनाना पड़ेगा।”