यह केवल हठ की बात नहीं है काका सा! आप यह क्यों नहीं सोचते हम भारतीयों के घरों में नारी की स्थिति पहले ही कैसी दयनीय है? राजकुमारी मंगलमुखी का वैधव्य यदि मेरे लिये अमंगल हो सकता है तो यह सारे भारतीयों के मस्तक पर ही कलंक क्यों न होना चाहिये? विधवाओं की सर्वाधिक संख्या इसी देश में है और उसके उत्तरदायी सामाजिक कारण भी पुरुषों द्वारा ही तैयार किये गये हैं। क्या अपने किये का प्रायश्चित पुरुषों को करना नहीं चाहिये?’
हम्मीर इतना कहते कुछ आवेश में आ गये थे पर अपने काका सा- अजय सिंह और अन्य सभासदों का वे पूर्ण सम्मान करते थे इसलिये फिर अपनी वाणी को संयत और विनीत बनाते हुए बोले-काका सा! राजकुमारी के कोई सन्तान नहीं है, वे छोटी आयु में ही विधवा हो गईं। राज परिवार संन्यासी का सा जीवन जी नहीं सकता फिर क्या यह राजकुमारी की कोमल भावनाओं पर आघात न होगा कि उन्हें इस खेलने-कूदने की आयु में रीति-रिवाजों के बन्दी गृह में डाल दिया जाये? संबंध मुझे करना है और मैं उसके लिये तैयार हूँ, आप लोग किसी अमंगल की बात अपने मन से निकाल दें?
किन्तु हम्मीर! तुम नहीं जानते चित्तौड़ नरेश मालदेव ने हमारे साथ छल किया है। उसने जान-बूझ कर विधवा कन्या का संबंध भेजा? तुम्हारे जैसे वीर और प्रतिष्ठित राजकुमार के लिये विधवा से संबंध करना शोभा नहीं देता- हम्मीर! युद्ध ही करना है तो हम तैयार हैं पर हम इस पक्ष में कभी नहीं कि आपका संबंध एक ऐसी कन्या से हो जो पहले भी किसी को वरण कर अपवित्र हो चुकी हो? अजय सिंह ने दृढ़ शब्दों में कहा और सामन्तों ने उनका अनुमोदन किया।
पर हम्मीर उस धातु के बने नहीं थे जो किसी भी समय कैसे भी मोड़े और झुकाये जा सकते? हम्मीर किसी सिद्धाँत को देर से स्वीकार करते थे और एक बार उसमें सत्य और आदर्श की रक्षा देख लेते तो उसके लिये ऐसा हठ करते कि फिर सारा संसार एक तरफ हो जाता तो भी वचन से पीछे न हटते। ‘हम्मीर हठ’ उन दिनों जन साधारण के दैनिक बोल बन गये थे।
हम्मीर देव ने कहा- काका सा! पुरुष जब चार-चार रानियाँ लाकर राजमहलों में डाल देता है तब भी अपवित्र नहीं होता फिर नारी एक ऐसी अवस्था में जबकि उसे सहारे की आवश्यकता होती है और दूसरा विवाह कर दिया जाता है तो वही अपवित्र क्यों हो जायेगी। मान्यतायें मनुष्य ने बनाई हैं पर उनमें केवल वही बातें मान्य हो सकती हैं जिनका कुछ विवेक जन्य औचित्य भी हो? विधवा अपवित्र और अमंगल होती है यह कोई तर्क नहीं, सत्य बात तो यह है- यदि वह निःसन्तान है तो सबसे पहले सहारे की अधिकारिणी भी वही है।
हम्मीर के हठ के आगे किसी की एक न चली। वह लगन मण्डप पर जा पहुँचे और संबंध कर ही लिया। सैनिक जो मेवाड़ से युद्ध करने गये थे, वह बराती बनकर लौटे।
मंगलमुखी ने उस दिन पूर्ण शृंगार किया पर उसे ऐसा लग रहा था जैसे महाराणा हम्मीर उसके साथ छल तो नहीं कर रहे। समाज ने विधवा के जीवन में जो आत्महीनता लाद दी है मंगलमुखी उससे वंचित नहीं थी। पर उसे शीघ्र ही मालूम हो गया कि हम्मीर ने यह संबंध हठ वश नहीं मानवीय करुणा और कृतज्ञता के रूप में ही किया था। उसने हम्मीर देव को शासन-व्यवस्था में वह सहयोग प्रदान किया कि एक दिन बिना किसी द्वन्द्व और रक्तपात के ही राजा हम्मीर देव मेवाड़ के शासक बन बैठे- पहले जो लोग कहा करते थे कि विधवा का विवाह हम्मीर के अमंगल का सूचक है वही पीछे कहने लगे विधवा कभी अमंगल नहीं होती उसे मानवीय सम्मान मिले तो वह किसी भी योग्य जीवन-साथी के कर्तव्यों का पालन कर सकती है।
अपनों से अपनी बात-