रविवार का दिन था। मुहम्मद साहब जब से बीमार पड़े थे। निरन्तर उपास करते जा रहे थे, इसलिये कमजोरी बेहद बढ़ गई थी। उन्होंने अपनी पत्नी आयशा को अपने पास बुला कर कहा, ‘अपने पास बिलकुल भी पैसा न रखो। यदि कहीं तुमने कुछ बचाकर रख छोड़ा हो, तो उसे निर्धन व्यक्तियों में बाँट दो।’
आयशा मुहम्मद साहब की बात पर काफी देर सोचती रही। उसने सोने के छः दीनार आपत्ति के समय के लिए बचाकर रख छोड़े थे। तब तक मुहम्मद साहब ने फिर कहा, ‘तुम्हारे पास जो कुछ हो मेरे पास ले आओ।’ आयशा ने छिपाकर रखे हुए छः दीनार उनके हाथ पर लाकर रख दिये। उन्होंने तुरन्त ही निर्धन परिवारों में सहायता हेतु वह धन बाँटने को कहा।
उनकी इच्छा की पूर्ति जब हो गई, तब उन्हें शाँति मिली। वह बड़ी प्रसन्नता से सन्तोष की साँस लेते हुए बोले- ‘वास्तव में यह अच्छा नहीं था कि मैं अपने अल्लाह से मिलने जाऊं और यह सोना मेरी सम्पत्ति के रूप में यहाँ रखा रहे।’