आकाश की ओर देखकर मैंने अनुभव किया- यह संसार विशालतम है और अपनी ओर देखकर सोचा-मनुष्य लघुतम है। अपनी लघुता को तब से सृष्टि की विशालता में घुलाये जा रहा हूँ, क्योंकि तब मैं स्वयं भी लघु न रहकर विराट बन जाता हूँ।
-स्वामी रामकृष्ण परमहंस