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October 1970

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आकाश की ओर देखकर मैंने अनुभव किया- यह संसार विशालतम है और अपनी ओर देखकर सोचा-मनुष्य लघुतम है। अपनी लघुता को तब से सृष्टि की विशालता में घुलाये जा रहा हूँ, क्योंकि तब मैं स्वयं भी लघु न रहकर विराट बन जाता हूँ।

-स्वामी रामकृष्ण परमहंस


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