दो शव

October 1970

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श्मशान घाट पर पड़ा एक शव- दूसरे शव को लेकर मुस्कराने लगा। इस पर दूसरे शव ने कहा- बन्धु! ऐसी क्या बात हो गई जो हंसना आ रहा है, हम दोनों तो एक ही स्थिति में हैं।

पहला शव उसी मुस्कराहट के साथ बोला- बन्धु! तुम्हें याद नहीं हम दोनों कभी सहपाठी थे, विद्याध्ययन के बाद से तुम वणिक वृत्ति में उलझ गये, दिन-रात पैसा और भौतिक सुख की कामना करते-करते अब तुम्हारी स्थिति यह है कि श्मशान घाट में भी पैसों का ही हिसाब लगा रहे हो।

‘और आप’- दूसरे शव ने पूछा- ‘जब तक जीवित रहा, थोड़ा कमाया पर मस्त रहा और अब जबकि मर गया हूँ तब भी वहीं निर्द्वन्द्वता वही प्रसन्नता अच्छा तो नमस्कार, लो अब चला’ यह कहकर पहला शव चिता की ओर चल पड़ा और दूसरा शव फिर अपने हिसाब-किताब की बातों में उलझ गया।


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