धूप और छाँव का विवाद हल न हुआ तो दोनों विधाता के पास पहुँचीं और बोली महाराज! पृथ्वी में हम में से एक को ही रहने का अधिकार दीजिये- दूसरे को वहाँ से अलग कर दीजिये।
विधाता बड़ी देर तक चुप रहे फिर पीड़ा भरे स्वर में बोले मुझे दुःख है कि तुम दोनों का अस्तित्व तो एक दूसरे पर ही आश्रित है। ईर्ष्या छोड़ कर प्रेम से रहो और अपनी उन्नति करो।