परमात्मा के अपार दान की समझ

October 1970

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक अन्धा भीख माँगा करता था। जो पाई-पैसे मिल जाते, उसी से अपना गुजर करता, एक दिन एक धनी उधर से निकला। उसे अन्धे के फटे हाल पर बहुत दया आई और उसने पाँच रुपये का नोट उसके हाथ पर रखकर आगे की राह ली।

उसने कागज को टटोलकर देखा और समझा कि किसी ने ठिठोली की है। और उस नोट को खिन्न मन से जमीन पर फेंक दिया। एक सज्जन ने नोट को उठाकर अंधे को दिया और बताया-यह तो पाँच रुपये का नोट है। तब वह प्रसन्न हुआ और उससे अपनी आवश्यकताएं पूरी कीं। ज्ञान-चक्षुओं के अभाव में हम भी परमात्मा के अपार दान की देख और समझ नहीं पाते, और सदा यही कहते रहते हैं कि हमारे पास कुछ नहीं हमें कुछ नहीं मिला है, हम साधन-हीन हैं। पर यदि हमें जो नहीं मिला है उसकी शिकायत करना छोड़कर जो मिला है, उसी की महत्ता को समझें तो मालूम पड़ेगा कि जो कुछ मिला हुआ है वह कम नहीं, अद्भुत है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118