अद्भुत प्रकृति के अद्भुत रहस्य

October 1970

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‘बाटल ट्री’ (बोतल वृक्ष) आस्ट्रेलिया में पाये जाने वाले इस वृक्ष में बोतलें पैदा होती हों, यह बात नहीं। पर जो बात है वह इससे भी अद्भुत है। बात यह है कि इसके तने की बनावट बोतल की सी होती है और उसमें पानी की बहुत अधिक मात्रा भरी होती है। अपने इस गुण के कारण यह बहुत लंबे अर्से तक भी बिना पानी के बना रह सकता है। यही नहीं जल का अकाल पड़ जाये तो कोई भी मनुष्य उससे जल निकाल कर बहुत दिन तक अपना काम चला सकता है। एडीनम वृक्ष के तनों में भी पानी बहुतायत से पाया जाता है। इनकी तरह से संकट के लिये कुछ सुरक्षित रखने की बात अपव्ययी लोग सीख जायें तो उसमें उनका भी भला हो, देश, जाति और समाज का भी।

ऐसे ही कैलीफोर्निया के 500 मील लम्बे और 30 मील चौड़े क्षेत्र, आस्ट्रेलिया व तस्मानिया आदि देशों में कुछ पौधों को आकाश नापने का शौक है। यूकेलिप्टस नेगनान्स नामक वृक्ष 325 फुट तथा सेक्युआ वृक्ष 290 फुट तक ऊँचे पाये जाते हैं। इसी प्रकार अफ्रीका में पाये जाने वाले वाओबाब नामक वृक्षों का तना इतना मोटा होता है कि उसके किनारे वट सावित्री के दिन कोई भारतीय महिला सूत के सात फेरे लपेटे तो उसके लिये उसे 630 फीट लम्बे सूत की आवश्यकता पड़ेगी। अनैतिक कमाई खा-खा कर अपना पेट बढ़ा लेने वाले मनुष्यों के समान यह वृक्ष भी किसी काम के नहीं होते, सिवाय इसके कि उन्हें जलाकर ईंधन का काम ले लिया जाये।

सभी तेल जड़ या फलों से प्राप्त किये जाते हैं। पर वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि तुलसी वृक्ष की पत्तियों में तेल ग्रंथियाँ पाई जाती है। उन्हीं का परिणाम है कि तुलसी का पौधा दूर तक अपनी सुगंध फैलाता और कृमियों को नष्ट करता है। अपनी इस उपकार प्रियता के कारण ही तुलसी एक वन्दनीय पौधा है।

और विश्वास कीजिए कुछ ऐसे वृक्षों पर, जो लोगों को आवाज देकर बुलाते और आतिथ्य करते हैं। अमरीका के उष्ण प्रदेश में जमइका में सीकेलिस नारियल जैसा एक वृक्ष होता है, उसके फल का वजन 20 किलो होता है। जब ये पककर तैयार होते और फूटते हैं तो उससे पटाखे की सी धड़ाम की आवाज होती है। गोली की आवाज हो तो लोग डरें और भागें, किन्तु इस धमाके की आवाज सुनते ही बन्दरों के झुण्ड के झुण्ड उधर लपकते और जहाँ वह वृक्ष था, पहुँच कर उसकी गिरी खाने का आनन्द लेते हैं।

आस्ट्रेलिया के उत्तर में इमली का एक इतना विशालकाय वृक्ष है कि उसके तने में पाये जाने वाले खोखले किसी समय जेल की आवश्यकता पूरी करते थे। लंबी कैद वाले अपराधियों को लाकर उसमें बन्द कर दिया जाता था। कहा जाता है कि यह वृक्ष दो हजार वर्ष पुराना है। विशेषज्ञों का कथन है कि इस वृक्ष की जड़ें बहुत गहरी हैं, उसी से वह अपनी सामर्थ्य इतनी अधिक बढ़ा सकने योग्य हुआ। जिस समाज में इस वृक्ष की तरह अपनी साँस्कृतिक और जातीय संगठन की आस्थायें ऐसी गहरी होती हैं, उनकी सामर्थ्य भी इस वृक्ष जैसी ही होती है। हजारों वर्षों के प्रतिकूल आघात भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते।

ग्रीक में लाल लकड़ी (रेडवुड) नामक वृक्षों की ऊंचाई 370 फीट तक पाई गई है। वृक्षों की ऊपर उठने की यह प्रवृत्ति मानो मनुष्य को यह प्रेरणा देती हो कि मनुष्य पार्थिव समस्याओं में ही उलझा मत रह। ऊपर देख संसार कितना विराट है। ऊर्ध्वमुखी बनो और उसका ज्ञान भी प्राप्त करो।

इसी प्रकार अफ्रीका में पाये जाने वाले बालसा वृक्ष मनुष्य को इस संसार में हल्का-फुलका जीवन यापन करने की प्रेरणा देते हैं। 20 इंच व्यास वाले किसी 15 फुट लम्बे रेडवुड के टुकड़े को तोलें तो उसका वजन लगभग 14 टन बंटेगा। पर यदि इतनी ही लम्बाई के बालसा वृक्ष के तने को लें तो वह कुछ पंसेरियों में ही तौला जायेगा। कोई भी व्यक्ति उसे आसानी से कंधे पर उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान ले जा सकता है।

अफ्रीका के जंगलों में एक ऐसा वृक्ष भी पाया जाता है, जिसका तना प्रतिदिन उतना दूध दे सकता है, जितना 5 गायें मिलकर। यह दूध अन्य दूध के समान ही पाचक, गुणकारी तथा स्वास्थ्य वर्धक होता है। वहाँ के लोग इस वृक्ष की उसी प्रकार पूजा करते हैं जिस प्रकार भारतवर्ष में गोपाष्टमी के दिन गौ की पूजा की जाती है। मनुष्य कैसा भी हो यदि उसे अपनी आन्तरिक क्षमताओं का उपयोग करना शक्ति, प्रकाश और पोषण प्रदान करने में आ गया तो वह इस वृक्ष की तरह ही क्यों न हो। संसार उसका आदर किये बिना रहेगा नहीं।

भयंकर तूफान आये, वर्षा हुई, आँधी चलीं और आसपास के बहुत से पेड़ जो अकेले का दंभ लिये खड़े थे उजड़ कर नष्ट हो गये। किन्तु इंग्लैंड के दो ऐलम वृक्ष आघातों के बावजूद भी हरे-भरे खड़े हैं। कोई भी तूफान उन्हें धराशायी न कर सका। उसका कारण यह है कि पति-पत्नी की तरह यह दोनों वृक्ष एक दूसरे में जुड़कर एक हो गये हैं। कहते है इन वृक्षों को देखने बहुत से लोग जाते हैं और वहाँ से एक प्रेरणा और जागृति लेकर लौटते हैं कि जिन मनुष्यों के दाम्पत्य जीवन आत्मीयता की ऐसी प्रगाढ़ स्थिति में होते हैं, उन्हें संसार की कैसी भी परिस्थितियाँ परास्त नहीं कर सकतीं।

कोई भी व्यक्ति चाहे वह आकृति में कितना ही छोटा हो, शक्ति में किसी से कम नहीं- इस बात का रहस्य जानना हो तो घास के किसी मैदान का आणविक विश्लेषण करना चाहिए। अपने आप उगने और कुछ दिन में ही सूख जाने वाली साधारण-सी घास-700 बीघे मैदान से काट ली जाये और उसकी सारी आणविक ऊर्जा एकत्र कर ली जाये। उसकी शक्ति 20 हजार टी.एन.टी. के बराबर अर्थात् पूरे एक हाइड्रोजन बम के बराबर होगी। इसी तरह छोटी-छोटी शक्ति वाले साधारण मनुष्यों में भी यदि कहीं से घास जैसा आत्म-विश्वास जागृत हो जाये, तो वही सारे संसार की ऐसी काया-पलट कर सकते हैं, जैसी कोई हाइड्रोजन बम।

फ्लोरिडा अमेरिका में एक अति प्राचीन वट वृक्ष अतीव सजीव प्रेरणाओं के साथ आज भी खड़ा है। इसके तने कई-कई सौ गज की दूरी में फैले हैं, फिर भी वे कहीं से इसलिए नहीं टूटते क्योंकि उनमें से निकल-निकल कर जड़ें पृथ्वी में इस तरह मजबूत होती गई हैं, जैसे 84 खंभों वाली दालान की छत को खंभे साधते हैं। जिस देश के निवासी अपने धर्म, अपनी संस्कृति, मान-मर्यादा, सामर्थ्य और दर्शन को इन जड़ स्तंभों की भाँति अपने कंधों का सहारा दिये रहते हैं। वह संस्कृतियाँ, वह सभ्यतायें इस वृक्ष के तनों की तरह दूर-दूर तक फैलती चली जाती है, फिर भी न उन्हें कहीं से टूटने का डर रहता है न फटने का।


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