महाराष्ट्र की पत्र पत्रिकाएं गाँधी जी पर आलोचनात्मक लेख प्रकाशित करने लगीं तो उन पर श्रद्धा रखने वाले स्त्री-पुरुषों को बड़ा बुरा लगा, एक भद्र महिला ने गाँधी जी को पत्र लिखा ‘मराठी पत्र पत्रिकायें आपके विरुद्ध झूठा प्रचार कर रही हैं, विष उगल रही हैं। जिसे हर व्यक्ति सहन नहीं कर पा रहा है, पर आप ऐसे समय भी मौन हैं इसलिये मुझे कोई उपाय नहीं सूझ रहा है।’ गाँधी जी ने उत्तर दिया, ‘महाराष्ट्र के अनेक मित्रों द्वारा मेरे विरोध में जो प्रचार किया जा रहा है, उससे मैं अनभिज्ञ नहीं हूँ, नित्य ही देखता रहता हूँ और यहाँ भी अनेक साथी उन समाचारों की ओर मेरा ध्यान आकर्षित करते रहते हैं। पर मैं क्या करूं? यह मेरी समझ में ही नहीं आ रहा है, क्योंकि इस देश में मेरे अनेक ऐसे भी मित्र हैं जो मेरी प्रशंसा ही करते रहते हैं। फिर निंदा और प्रशंसा में अच्छा-बुरा मानने की बात ही क्या। विश्वास रखो, आलोचना से न तो मैं घट जाता हूँ और न प्रशंसा से बढ़ जाता हूँ। जैसा हूँ वैसा ही रहता हूँ। वास्तविक बात तो यह है कि यदि व्यक्ति अपने सृजनहार की दृष्टि में सच्चा बना रहे तो उसे अन्य किसी व्यक्ति की तनिक भी चिन्ता नहीं रहती।’