हम भूत और भविष्य भी जान सकते हैं।

October 1970

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लन्दन में एक ऐसी हत्या हुई, जिसका पता लगाने के लिये पुलिस सी.आई.डी., कुत्ते सब नियुक्त किये गये पर अपराधी का कोई पता न चला। अपराधी उसी मुहल्ले का एक संभ्रांत व्यक्ति था। उसके बारे में कोई कल्पना तक भी नहीं कर सकता था कि वह कभी अपराध कर सकता है।

अन्त में प्रसिद्ध भविष्य वक्ता ‘क्लेयर वाएन्ट’ की मदद ली गई। क्लेयर वायेन्ट जो भी भविष्य वाणियाँ करता है, वह अधिकाँश सत्य निकलती हैं। वहाँ के बड़े-बड़े व्यापारी, पुलिस और म्यूनिसपेलिटी तक उसकी मदद लेते हैं। क्लेयर वायेन्ट ने अपराधी का पूरा हुलिया और नाम बता दिया। उसके आधार पर अपराधी पकड़ा गया और उसने सारी घटना बड़े रोमाँचक ढंग से स्वीकार की। इस घटना से पता चलता है कि संसार में अतिरिक्त सहानुभूति (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन) मनुष्य जीवन का एक महान सत्य है और वह मनोविज्ञान का ही विषय नहीं वरन् उसे वैज्ञानिक यंत्रों के विकास द्वारा भी उपलब्ध किया जा सकता है।

ऐसी सैंकड़ों घटनाएं होती रहती हैं जो इस तथ्य के सैद्धाँतिक पहलू का समर्थन करती हैं। यह घटनाएं देखकर यह विश्वास होता है कि संसार में कोई ऐसी भी सत्ता या तत्व है जहाँ भूत और भविष्य वर्तमान के दृश्य-पटल की भाँति मिलते हैं। कभी-कभी अनायास दिख जाने वाली घटनाओं की शक्ति को यदि विकसित या यंत्रित किया जा सके तो सचमुच मनुष्य त्रिकालदर्शी हो सकता है।

16 अगस्त सन 1964 के धर्मयुग के पेज 50 पर दिनकर सोनवलकर का एक संस्मरण छपा है। शीर्षक है- ‘वह स्वप्न और नेहरू अस्थि-विसर्जन दिवस पर बच्चियों की जल-समाधि’। इस लेख में भी ऐसी ही एक आश्चर्यजनक घटना का वर्णन है जिसमें कल होने वाली घटना का पूर्वाभास एक साथ कई लोगों को हुआ। और उसके बाद यह घटना सचमुच होकर भी रही।

मण्डला मध्यप्रदेश का जिला है। यहाँ के शासकीय बहुउद्देशीय शाला के प्रिंसिपल श्री रामनारायण जी खरे की धर्मपत्नी ने 7 जून 1964 की रात एक विचित्र स्वप्न देखा। स्वप्न अस्पष्ट-सा था। तीन बच्चों के डूबने की सी घटना दिखाई दी थी। उससे उनका हृदय काँपने लगा, नींद खुल गई। रात के एक बजे होंगे, उन्होंने अपने पति को जगाया और कहा- मैंने एक भयानक स्वप्न देखा है तब से मेरा हृदय काँप रहा है। मुझे कुछ अनहोनी सी होती जान पड़ती है। खरे जी ने कहा- वैसे ही स्वप्न की घबराहट है, कोई बात नहीं है, सो जाइये। उन्हें फिर कठिनाई से नींद आई।

उसी रात को प्रातःकाल 4 बजे उनकी 9 वर्षीया पुत्री वीणा की नींद टूटी। उसने कहा- पापाजी! मैंने एक स्वप्न देखा कि मैं और मीना (वीणा की छोटी बहिन) और निर्मला (उसी विद्यालय के चपरासी की लड़की) तीनों नर्मदाजी स्नान करने गये और वहाँ डूब गये हैं। इसके बाद आप, मम्मीजी और दादाजी सबको रोते हुए भी मैंने देखा।

खरेजी ने बात टाल दी, पर रात की धर्मपत्नी की घटना और इस घटना दोनों से तालमेल बैठने की याद करते ही उनका भी हृदय धड़कने लगा। विलक्षण बेचैनी थी। खरे साहब का प्रतिदिन नर्मदाजी स्नान करने के लिए जाने का नियम था। विचित्र बात तो यह थी कि ये तीनों बच्चियाँ भी प्रतिदिन उनके साथ स्नान करने जाती थीं। सावधानी के तौर पर आज उन्होंने बच्चियों से बहाना बना दिया- ‘आज मुझे जल्दी लौटना है। तुम लोगों को स्नान करने नहीं ले जायेंगे।’ यह कहकर वह अकेले ही स्नान करने चले गये। वह प्रतिदिन वाले घाट पर भी नहीं गये, ताकि यदि लड़कियाँ पीछे से आ भी जायें, तो उन्हें वहाँ न पाकर चुपचाप लौट जायें।

खरेजी के स्नान करने चले जाने के बाद लड़कियों ने माँ से स्नान करने चलने को कहा, पर उन्होंने साफ इन्कार कर दिया। तब वे अपनी दादी से स्नान के लिये चलने को मचलने लगीं। दादी मान गयीं और उन्हें लेकर नर्मदा की ओर चल पड़ीं।

उस दिन नेहरूजी की अस्थियाँ नर्मदा में प्रवाहित की जानी थीं, इसलिए घाट पर थोड़ी भीड़ थी। सो वृद्धा उन्हें लेकर एक ऐसे स्थान पर चली गई, जहाँ कोई घाट नहीं था। थोड़े पत्थर पड़े थे, उन्हीं पर बैठकर स्नान किया जा सकता था।

दुर्दैव कि जैसे ही बड़ी लड़की वीणा आगे बढ़ी, उसका पाँव फिसल गया। ऊपर केवल चोटी दिखाई दे रही थी। लड़की बचाव के लिये छटपटाती रही। बुढ़िया ने सोचा- वह फुदक रही है। छोटी बहन मीना चिल्लाई-दादाजी! दीदी डूब रही है। और यह कहते हुए वह स्वयं भी आगे बढ़ी। आगे बढ़ना था कि पाँव फिसला और वह स्वयं भी जल में समा गई। मीना के पीछे निर्मला भी चली गई और उन दोनों के साथ ही वह भी पानी में समा गई। पुल पर से चपरासी यह सब देख रहा था। वह चिल्लाता हुआ भागा, पर एक मिनट में ही सब काम हो गया। वीणा और मीना के अर्द्धमृत शरीर मिल तो गये पर अस्पताल पहुँचते-पहुँचते उनकी मृत्यु हो गई। निर्मला की तो लाश ही पानी से निकाली गई। बाद में तीनों लड़कियों की एक साथ शव-यात्रा निकाली गई। हजारों लोगों ने उसमें भाग लिया। हर व्यक्ति यही सोचता रहा कि आखिर वह रहस्य क्या है, जिससे भविष्य की घटनाएं वर्तमान जीवन की भाँति दिखाई दे जाती हैं?

धर्मयुग में ही 19 जनवरी, 1964 के अंक में एक और ऐसी ही घटना छपी है, जो इस विश्वास की पुष्टि करती है कि संसार में एक कोई ऐसा तत्व अवश्य है जिसके अनेक रहस्यमय गुणों में सहजानुभूति का गुण भी है। वह तत्व भूत-भविष्य सबको जानता है।

तमिल भाषी हिन्दी लेखक श्री टी. एस. कन्नन लिखते हैं- मेरे भाई विजयकुमार विश्व-यात्रा पर गये थे। एक रात मेरे पिताजी ने स्वप्न में देखा, एक जहाज ऊपर उड़ने को है, उसमें विजयकुमार भी है। जहाज जैसे ही उड़ा, उसमें आग लग गई और वह ध्वस्त होकर भूमिसात् हो गया। यह स्वप्न देखने के साथ ही पिताजी के मन में घबराहट बढ़ी और नींद टूट गई। उन्होंने स्वप्न मुझे बताया और बोले-कोई बात अवश्य है। हमने बहुत समझाया कि ऐसे स्वप्न तो आते ही रहते हैं। पर उनकी बेचैनी दूर न हुई। शेष सारी रात प्रार्थना करते रहे-मेरे विजयकुमार का कोई अहित न हो। हे प्रभु! उसका ध्यान रखना।

दूसरे दिन के समाचार पत्र में एक विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का समाचार छपा था। पर उसमें विजयकुमार रहा हो, ऐसी कोई सूचना नहीं थी। चौथे दिन विजयकुमार का पत्र भी आ गया। हमने पिताजी की हंसी उड़ाई, देखो न, आपका स्वप्न झूठा ही था। पिताजी कुछ न बोले। बात आई-गई हो गई।

विजयकुमार यात्रा से वापस लौटे। मद्रास हवाई अड्डे पर हम उन्हें लेने गये। उनके आते ही यात्रा की कुशलमंगल पूछी तो उन्होंने कहा, और तो सब ठीक रहा पर एक दिन तो सचमुच मुझे भगवान ने ही बचाया। हम लोग घर आ गये तब उन्होंने सारी घटना विस्तार से बताई।

भाई साहब को ट्रूवान्टी (कनाडा) से न्यूयार्क जाना था। हवाई जहाज बुक हो चुका था। अपने निवास स्थान से वे हवाई अड्डे के लिये निकले तब कुल आधा घण्टा समय शेष था। उसी बीच एक कनाडियन उन्हें जबर्दस्ती पकड़ ले गया और उन्हें एक होटल में उनकी अनिच्छा के बावजूद काफी पिलाई। लगता था वह जान-बूझकर देर करना चाहता है। किसी तरह जल्दी-जल्दी हवाई अड्डे उसने पहुँचाया तो, पर तब तक जहाज छूट चुका था। विजय कनाडियन पर क्रुद्ध हो रहा था तभी लोगों ने देखा कि उस जहाज में एकाएक आग लग गई और एक धड़ाके के साथ वह पृथ्वी पर गिरा। उसमें बैठी सभी सवारियाँ जल मरीं। यह घटना सुनकर हम आश्चर्यचकित सोचते रह गये कि पिताजी के स्वप्न में सचमुच सत्य था। भाई साहब को किसी अज्ञात शक्ति ने ही बचाया।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ. केन गार्डनर की सहजानुभूति के रहस्य पर बड़ी जिज्ञासा है। उन्होंने ऐसी सैंकड़ों घटनाएं एकत्रित की हैं, जो भूत या भविष्य की जानकारी देती हैं और बाद में उनके सत्य होने का प्रमाण मिलता है। इन घटनाओं को उन्होंने दुनिया के अनेक अखबारों में छपाया है। फरवरी 1965 में लंदन में रोनाल्ड आर्थर नामक एक व्यक्ति ट्रोव ब्रिज के जार्ज होटल में नाश्ते के लिये गया जहाँ जाने का एक आकर्षण यह भी था कि उस होटल में एक ऐसी लड़की रहती थी, जो लोगों का भविष्य बता सकती थी।

रोनाल्ड आर्थर को उसने बहुत-सी बातें बतायीं, जो भविष्य से संबंधित थीं। वह जितनी ही सत्य थीं, रोनाल्ड की जिज्ञासा उतनी ही बढ़ती गई। लड़की एकाएक रुक गई तो उन्होंने पूछा- आगे मेरा भविष्य में क्या होगा? तो लड़की बोली- दुर्भाग्य कि नवम्बर के बाद आपका कोई भविष्य ही नहीं है। यह कहकर वह वहाँ से चली गई। सचमुच उसी वर्ष नवम्बर में रोनाल्ड की मृत्यु हो गई।

ड्यूक यूनिवर्सिटी कैरोलाइना (अमेरिका) के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जे. बी. राइन ने भी इस तथ्य को माना है कि कोई एक महान सत्ता (सुपर पावर) है, जो मानवीय चेतना की तरह ही है और यदि मनुष्य उसका विकास कर ले तो वह आगत-अनागत की इन सब बातों को सहज ही जान सकता है, जो साधारण अवस्था में कभी कल्पना में भी नहीं आतीं।

महत्व इन थोड़ी-सी प्रकाश में आने वाली घटनाओं का उतना नहीं, जितना इस तथ्य की प्रामाणिकता का कि संसार में एक ऐसी सत्ता है जो इस तरह की विलक्षण क्षमताओं से परिपूर्ण है। ब्रह्मसूत्र शंकर भाष्य में इस तरह की अनुभूतियों का माध्यम जगद्गुरु शंकराचार्य ने अपनी ‘आत्मा’ को ही माना है और लिखा है कि यह आभास 1. सन्ध्यादिकरण अर्थात् जीवन की अनन्तता 2. आत्मा की विद्यमानता 3. आत्मा का प्रकाश शरीर 4. आत्मा की सर्वव्यापकता 5. इच्छा संसार 6. आत्मा की परिपूर्णता 7. उभय लिंगाधिकरण अर्थात् आत्मा, स्त्री-पुरुष आदि लिंगभेद से परे है। 8. आत्मा दृष्टा या साक्षी मात्र तत्व रूप है। 9. जीव का लक्ष्य इन्द्रिय सुख नहीं, शुद्ध आनन्द की प्राप्ति है। 10. कर्मफल और पुनर्जन्म की सत्यता को ही प्रमाणित करते हैं। उपरोक्त घटनाओं में यह सारी बात स्पष्ट अनुभव की जा सकती है।

सहजानुभूति आत्मा के अस्तित्व का प्रकट प्रमाण है। यदि हम उसे स्वीकार करें तो हमें निःसंदेह एक ऐसे जीवन की तैयारी के लिये बल मिल सकता है जिसके लिये ही हम मनुष्य शरीर में आये हैं। लेकिन भौतिक आकर्षणों में फंसे उस सौभाग्य को गंवा रहे हैं। यह हमारे वर्तमान पर निर्भर है कि हम इस तरह का विवेक जागृत कर अपने भूत-भविष्य को अपनी मुट्ठी में लायें और यह मनुष्य शरीर सार्थक करें।


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