विज्ञान को ‘विज्ञान’ तभी कह सकते हैं जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटाने की ताकत रखता हो न कि इन्हीं को मिटाने की।
-महात्मा गाँधी
न्यूयार्क का हिल्टन होटल औद्योगिक बस्ती के बीच बना हुआ है इस होटल की दीवारों शीशों और फर्नीचर आदि पर धुयें और कार्बन कणों का 3।1।2 वर्ष की अवधि में ही इतना बुरा प्रभाव पड़ा कि उसका सारा रंग उड़ गया दीवारें खस्ता पड़ गईं उसकी दुबारा होवरहालिंग करानी पड़ी जिसमें पचास हजार डॉलर्स (लगभग 4 लाख रुपए) का खर्च आया। यही तो रही एक सामान्य बिल्डिंग की बात। सारे विश्व के- जन स्वास्थ्य, कृषि और कृषि में सहयोगी पशुओं, धातुओं, भवनों आदि पर हुये इसके दुष्प्रभाव की हानि की कुल लागत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। न्यूयार्क के सेंट ल्यूकस अस्पताल का गुम्बद संगमरमर और टेरोकोटा का बना हुआ है। सल्फर डाई ऑक्साइड युक्त विषैले धुयें ने उसे इस तरह कमजोर किया कि कोई भी लड़का वहाँ पहुँच कर उसे चुटकियों से ऐसे खोद लेता है जैसे मिट्टी, उसकी तहें हाथ से मसल दी जातीं तो आटे की तरह चूर-चूर हो जातीं। गुम्बद इतना खस्ता हो गया कि उसे बदलना पड़ा और उस पर सीधी छत डालनी पड़ी। पत्थर और कंक्रीट की बिल्डिंगों का यह हाल हो तो मनुष्य और प्रकृति के कोमल भागों पर उसके दुष्प्रभाव की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती।
यह हानियाँ तभी सुधार और नियंत्रण में आ सकती हैं जब धुयें को आकाश में नष्ट करने वाली प्रणाली का विस्तार हो। आज की स्थिति में यह कल कारखाने रुकें, ऐसा नितान्त संभव नहीं दिखाई देता, कल कारखाने रुकेंगे नहीं तो धुआँ पैदा होने से बंद नहीं होगा, धुआँ होगा तो मानव-जाति पर संकट की छाया घिरी ही रहेगी। यह धुआँ कभी भी मनुष्य जाति को गंभीर संकट में डाल सकता है अतएव एक बार फिर से आकाश की शुद्धता के लिये भारतीय प्रयत्न व शोध-यज्ञों का अध्ययन अनुसंधान व तीव्र प्रसार करना होगा।
‘लोहे को लोहा काटता है’, शरीर में चेचक के कीटाणु बढ़ने की संभावना हो तो इन्जेक्शन द्वारा चेचक के ही कीटाणु शरीर में प्रविष्ट कराये जाते हैं, यह कीटाणु रक्त के श्वेत कीटाणुओं के साथ मिल जाते हैं। श्वेत-कणों में चेचक के कीटाणुओं से लड़ने की शक्ति नहीं होती। बंदूकधारी को बंदूकधारी ही मार सकता है । डाकू को पकड़ना हो तो बन्दूक चलाने से लेकर खेंदक में छुपकर बचाव आदि का समानान्तर ज्ञान रखने वाला सिपाही ही लगाया जा सकता है। उसमें गाँव का निहत्था किसान सफल नहीं हो सकता इंजेक्शन में दिये चेचक के कीटाणु अच्छे कीटाणुओं के साथ आगे बढ़कर अपने ही तरह के ट्रोही कीटाणुओं को मार डालते हैं। उसी तरह हवन में जलाई गई औषधियाँ भी धुयें के रूप में, प्रकाश-वर्षा के रूप में उठती हैं और धुयें के विषैले प्रभाव को नष्ट करती हुई मनुष्य शरीर, पशु-पक्षियों वनस्पति सबको जीवन देती चली जाती हैं।
फ्राँस के विज्ञान वेत्ता प्रो. टिलवर्ट का कथन है कि खाँड के धुयें में वायु को शुद्ध करने की विलक्षण शक्ति है। चेचक के टीके के आविष्कारक डॉ. हेफकिन (फ्राँस) ने घी जलाकर परीक्षण किया और बताया कि उससे रोग के कीटाणु नष्ट होते हैं। डॉ. टाइलिट ने किशमिश, मुनक्के इत्यादि सूखे मेवों के धुयें के परीक्षण के बाद बताया कि उस धुयें में टाइफ़ाइड के कीटाणु नष्ट करने की क्षमता होती है। जायफल जलाने से उसके तेल परमाणु 1।10000 से 1।100000000 सेमी. के व्यास तक के सूक्ष्म पाये गये इनमें कार्बन के धुयें के कणों में घुसकर उन्हें शुद्ध तत्वों में बदलने की क्षमता पाई गई। 6 अप्रैल 1955 के अंग्रेजी पत्र लीडर में ‘न्यू क्योर फार टी.बी., शीर्षक से हवन के धुयें को बहुमूल्य औषधोपचार के रूप में मानकर अमरीकी वैज्ञानिकों को उस पर अनुसंधान करने का आह्वान किया गया है।
यज्ञ के लाभ अनन्त हैं। उसके द्वारा मन और आत्मा पर पड़ने वाले प्रभाव को न भी मानें तो भी अनुसंधान से यह तथ्य तो प्रकाश में लाये ही जा सकते हैं कि यज्ञीय धूम्र में वायु के विषैले तत्वों को नष्ट करने की विलक्षण क्षमता है। इस विज्ञान की अब उपेक्षा नहीं की जा सकती। धुआँ जो मारता है उससे यह धुआँ ही मनुष्य जाति को बचा सकता है।