धुआँ एक मारता है; एक जिन्दगी देता है।

October 1970

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मेरी सोचने की शक्ति समाप्त हो गई। यह क्या हो रहा है। इस पर चकित होने तक के लिये बुद्धि शेष नहीं थी। कार चलाना कठिन हो गया, किसी तरह कार से उतरा तो लगा कि सीने पर कोई दैत्य चढ़ बैठा है और उसने भीतर से जकड़ लिया है। खाँसी आने लगी मुश्किल से कार्यालय मिला, टेलीफोन की घंटियाँ बज रही थीं और मुर्दे की नाईं पास में कूड़े के ढेर की तरह पड़ा रहा उस दिन एक भी टेलीफोन का उत्तर नहीं दे सका।’

यह बयान एक डॉक्टर के हैं जो स्वयं भी 26 अक्टूबर 1948 को अमरीका के डोनोरा नगर में एकाएक वायु में धुयें और विषैले तत्वों के अधिक बढ़ जाने के परिणाम स्वरूप उसके साथ घटित हुआ। उस दिन दस बजे तक भी सूर्य के दर्शन न हुये तब लोग घरों से बाहर निकले, उनकी साँसें घुटने लगीं थीं बाहर आकर देखा तो धुयें का कुहरा (स्माग) बुरी तरह छाया हुआ था। 28 अक्टूबर तक धुँध सारे नगर में छा गई और यह स्थिति 31 अक्टूबर तक बनी रही। इस बीच भी कल-कारखाने, कारें-मोटरें भट्टियाँ 1000 टन प्रति घंटे के औसत से धुआँ बराबर उड़ेलती रहीं। सारा शहर लगभग मृत्यु की अवस्था में पहुँच गया। लोगों की ऐसी दशायें हो गईं जैसी ऊपर के डॉक्टर के निजी बयान से व्यक्त हैं। वे बेचारे स्वयं भी मरीज थे। प्रकृति आगे आज वे भी विवश थे और सोच रहे थे कि मानवीय सुख-शाँति का आधार याँत्रिक सभ्यता नहीं हो सकती। नैसर्गिक तत्वों के प्रति श्रद्धा और सान्निध्यता स्थापित किये बिना मनुष्य कभी सुखी नहीं रह सकता। भौतिक विज्ञान की प्रगति तो वैसी ही गले की फाँसी बन सकती है जैसी आज हमारे नगर की हो रही है।

इन 5-6 दिनों में डोनोरा नगर की 18 हजार की आबादी में 6 हजार अर्थात् एक तिहाई व्यक्ति बीमार पड़ गये थे, सैंकड़ों की मृत्यु हो गई। भगवान कृपा न करते और 31 को भारी वर्षा न होती तो कौन जाने डोनोरा शहर पूरी तरह लाशों से पट जाता।

1966 में ‘थैंक्स गिविंग‘ दिवस पर न्यूयार्क में आसपास के देहाती क्षेत्रों से भी सैंकड़ों लोग आ पहुँचे। उस दिन भी यही दशा हुई। कुछ घण्टों के धुयें के दबाव से ही 170 व्यक्तियों की मृत्यु तत्काल हो गई। हजारों लोगों को पार्टियाँ, नृत्य और सिनेमा घरों की मौज छोड़कर अस्पतालों के बिस्तर पकड़ने पड़े।’ ऐसी दुर्घटना वहाँ 1952 में भी हो चुकी थी उसमें 200 से भी अधिक मृत्युएं हुई थीं।

सन 1956 में यही स्थिति एक बार लन्दन की हुई थी उसमें 1000 व्यक्ति मरे थे। सरकार ने करोड़ों रुपयों की लागत से रोक-थाम के प्रयत्न किये थे, तो भी 1962 में दुबारा फिर वैसी ही स्थिति बनी और 400 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु कुछ ही घण्टों में दम घुट कर हो गई। कुछ लोगों ने तो इसे प्राकृतिक आत्म-हत्या कहा और चेतावनी दी कि यदि धुयें की समस्या को हल न किया गया तो एक दिन सारा वायुमण्डल विष से भर जायेगा। जिस दिन यह स्थिति होगी उस दिन पृथ्वी की सामूहिक हत्या होगी। उस दिन पृथ्वी पर मनुष्य तो क्या कोई छोटा सा जीव और वनस्पति के नाम पर एक पौधा भी न बचेगा। पृथ्वी की स्थिति शुक्र ग्रह जैसी विषैली हो जायेगी।

संसार के विचारशील लोगों का इधर ध्यान न हो ऐसा तो नहीं हैं किन्तु परिस्थितियों के मुकाबले प्रयत्न नगण्य जैसे हैं। एक ओर जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है उसी अनुपात से कल-कारखाने और शहरों की संख्या भी बढ़ेगी। अनुमान है कि सन् 2000 तक अमेरिका की 320 बिलियन जनसंख्या होगी। इस आबादी का 85 प्रतिशत शहरों में रहेगा। इस अवधि में कारों और मोटरों की संख्या इतनी अधिक हो जायेगी कि उनको रखने की जगह न मिलेगी। अमेरिका में 1 बच्चा पैदा होता है तब तक कारें 2 जन्म ले चुकी होती हैं।

यूनिवर्सिटी स्टेटवाइड एयर पॉल्यूशन रिसर्च सेन्टर (यह संस्था अमेरिका में वायु प्रदूषण से होने वाली हानियों और उनसे बचने की उपायों की शोध करती है) के डाइरेक्टर श्री जी.टी. मिडिल्टन के अनुसार एक कार सामान्य रूप से 900 मील प्रतिवर्ष चलती है। एक दिन में 25 मील तो वह अनिवार्य रूप से चलती ही है उससे 61/2 पौण्ड वायु दूषण होता है। 1960 में इस राज्य में अकेले कारों से 37 मिलियन पौण्ड (अर्थात् 462500 मन से भी अधिक) वायु-प्रदूषण निकला 1963 में 56 मिलियन पौंड, यदि इस पर नियंत्रण न किया गया तो 1970 में 81 मि. पौण्ड तथा 1980 में 112 मिलियन पौण्ड्स से भी अधिक वायु दूषण अकेली कार मोटरों से बढ़ जायेगा।

कल-कारखानों से निकल रहे धुयें की हानियों और भविष्य में हो सकने वाली भयंकरता का चित्रण करते हुये कैलिफोर्निया के टेक्नोलॉजी संस्थान के भू रसायन शास्त्री डॉ. क्लेअर-सी-पैटरसन और जन-स्वास्थ्य सेवा के निर्देशक डॉ. राबर्ट ई. कैरोल ने लिखा है कि टेक्नोलॉजी के विस्तार से वायु में कार्बन और सीसे के कणों की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जायेगी कि अमेरिका का हर व्यक्ति हृदय तंत्रिका संस्थान (नर्वस सिरि सिस्टम) के रोग से पीड़ित अर्थात् लोग लगभग पागलों जैसी स्थिति में पहुँच जायेंगे।

2000 तक विद्युत का उपयोग 5 गुना बढ़ जायेगा जिसके कारण वायु प्रदूषण 5 गुना बढ़ जायेगा। जनसंख्या वृद्धि का अर्थ रहन-सहन की वस्तुओं में वृद्धि होगी और उससे कूड़े की मात्रा भी निःसंदेह बढ़ेगी। उस बढ़ोत्तरी को न तो ऑक्सीजन का उत्पादन रोक सकेगा न पेड़-पौधे, क्योंकि यह स्वयं भी तो विषैले तत्वों के संपर्क में आकर विषैले होंगे और दूसरे नये-नये विष पैदा करने में मदद करेंगे। ऐसी स्थिति में याँत्रिक सभ्यता को रोकने और वायु शुद्ध करने के लिये सारे विश्व में यज्ञ-परम्परा डालने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता। यज्ञों में ही वह सामर्थ्य है जो वायु प्रदूषण को समानान्तर गति से रोक सकती है।

अभी इस गंदगी को दूर करने के लिये अमेरिका प्रति वर्ष 1200000000 डॉलर्स (एक डालर का मूल्य सात रुपये से कुछ अधिक होता है) खर्च करता है। ओजान, सल्फर फ्लोराइड से शाक-सब्जी तथा फूल फसलों की क्षति रोकने के लिए 500 मिलियन डॉलर्स, धातुओं पर जंग लगने, रंग उड़ने, से सफाई व घर खर्च आदि बढ़ जाने, जानवरों के मरने, खाने की वस्तुयें क्षतिग्रस्त होती हैं नाइलॉन, टायर और ईंधन नष्ट होता हैं इन सबको रोकने और रख-रखाव में 300 मिलियन डॉलर्स तथा सूर्य प्रकाश के मंद पड़ जाने के कारण जो अतिरिक्त प्रकाश की व्यवस्था करनी पड़ती है उसमें 40 मिलियन डॉलर्स का खर्च वहन करना पड़ता है।

वायु प्रदूषण बढ़ने के अनुपात से सुरक्षात्मक प्रयत्नों में खर्च की वृद्धि भी होगी तो भी उसे रोक सकना संभव नहीं होगा। कैलीफोर्निया के कृषि-विभाग, सेवा योजन विभाग के प्रोग्राम लीडर डॉ. पो. ओस्टरली ने भविष्य वाणी की है कि अमेरिका में वायु गंदगी के कारण जो नुकसान होने वाला है वह बहुत भयंकर है और उसमें सुधार की कोई संभावना नहीं है। अगले कुछ दिनों में धुआँ इतना अधिक हो जायेगा कि प्रातःकाल चिड़ियों का चहचहाना तक बंद हो जायेगा क्योंकि उन्हें सबेरे-सबेरे सामान्य साँस लेने में कठिनाई होने लगेगी, चहचहाने में तो श्वाँस-प्रश्वाँस की क्रिया बढ़ जाती है। इस स्थिति में उन्हें चुप रहने में ही सुविधा होगी।


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