गन्धमादन पर्वत पर आत्म-कल्याण की इच्छा से तप कर रहे महाराज अरिष्टनेमि के पास जाकर देवदूत ने कहा- महाराज! मुझे सुरपति इन्द्र ने भेजा है उनका आग्रह है कि आप अभी मेरे साथ स्वर्ग चलें और वहीं निवास करें?
‘स्वर्ग!’ महाराज ने आत्म-कल्याण की बात सुनी, स्वर्ग बीच में आ टपका तो उनको पूछना ही पड़ा-भाई-स्वर्ग की विशेषता क्या है, क्या उसमें कुछ दोष भी है?
देवदूत बोला- विशेषता यह है कि वहाँ सुख भोग-साधन सुविधायें हर घड़ी उपलब्ध होती हैं। दोष यह है कि वहाँ का हर व्यक्ति अहंकार में डूबा हुआ होता है अतएव जैसे ही पुण्य समाप्त हुआ वह फिर मृत्यु लोक लौटा दिया जाता है।
‘तब फिर मैं यही ठीक हूँ यहाँ लोगों की सेवा करता हूँ, अपने को भी उन्हीं जैसा छोटा व्यक्ति अनुभव करता हूँ। इससे आत्मा को जो शाँति मिलती है स्वर्ग उसके आगे फीका है’ कह कर महाराज ने दूत को वापिस लौटा दिया।