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October 1970

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जीवन का नियम यदि प्रेम न होता, तो मृत्यु के बीच में जीवन कभी टिक नहीं सकता था।

-महात्मा गाँधी

अखरोट बढ़ने लगा और 16 वर्ष की आधी आयु में ही अच्छे-अच्छे फल देने लगा। इसी तरह कद्दू, आलू, नेक्टारीनेस, बेरीज, पापीज आदि सैंकड़ों पौधों पर प्रयोग कर श्री बरबैंक ने उन्हें प्रकृति के समान गुणों से पृथक गुणों वाले पौधों के रूप में विकसित कर यह दिखा दिया कि प्रेम ही आत्मा की सच्ची प्यास है। जिस प्रकार हम स्वयं और से प्रेम चाहते हैं वैसे ही बिना किसी आकाँक्षा के दूसरों को प्रेम लुटाने का अभ्यास कर सके होते, तो आज सारा संसार ही सुधरा हुआ दिखाई देता। प्रेम का सिद्धाँत ही एकमात्र वह साधन है जिससे छोटे-छोटे बच्चों से लेकर पारिवारिक जीवन और पास-पड़ोस के लोगों से लेकर सारे समाज, राष्ट्र और विश्व को भी वैसे ही सुधारा और संवारा जा सकता है जैसे बरबैंक ने पेड़-पौधों को विलक्षण रूप से संवारकर दिखा दिया।

श्री बरबैंक ने श्री योगानन्द नामक भारतीय योगी से क्रिया योग की दीक्षा ली थी। उसका निधन 1926 में हुआ, तब लोगों के मुख से एक ही शब्द निकला था- प्रेम-प्रयोगी का निधन सारे विश्व की क्षति है, वह कभी पूरी नहीं हो सकती।

श्री बरबैंक तत्वदृष्टा थे। प्रेम का अभ्यास उन्होंने पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों तक से करके ही आत्मानुभूति प्राप्त की थी। उसी से वे सिद्ध हो गये थे। उनकी भविष्यवाणियाँ बहुत महत्वपूर्ण होती थीं। लन्दन से प्रकाशित होने वाली ‘ईस्ट और वेस्ट’ पत्रिका में उन्होंने ‘साइंस एण्ड सिविलाइजेशन’ नाम से लेख प्रकाशित किया। उसमें लिखा था-

संसार को सुधारने की शक्ति पूर्व में केवल भारतवर्ष के पास है। पश्चिमी देशों को वहाँ की योग-क्रिया और प्राणायाम की विधियाँ सीखने के साथ प्रेम, दया, करुणा, उदारता, क्षमा, मैत्री के भाव भी सीखने और आत्मसात करने चाहिएं। मैं देख रहा हूँ कि भारतवर्ष उसके लिये अपने आपको तैयार कर रहा है और एक दिन सारे संसार को ही उसके कदमों में झुककर जीवन जीने की शुद्ध पद्धति और आत्म विज्ञान सीखना पड़ेगा, इससे ही संसार का कुछ वास्तविक भला होगा।

1948 में लन्दन के एसोसियेटेड प्रेस में एक सामुख्य में भी उन्होंने भावना योग की महत्ता पर प्रकाश डाला था और कहा था-शीघ्र ही भारतवर्ष में कुछ ऐसे लोगों का उदय होगा जो फिर से सारे संसार को मानवता का पाठ सिखायेंगे। उसमें परस्पर प्रेम और आत्मीयता की भावना प्रमुख होगी। उसी से संसार का सुधार होगा, उसी से सुख समृद्धि की वृद्धि भी होगी।


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