‘ऐ मौत के जाल में फंसे इंसान! अपनी तश्तरियों को माँस से सजाने के लिये जीवों की हत्या करना छोड़ दे। जो भोले-भाले पशुओं की गरदन पर छुरी चलवाता है, उनका करुण क्रन्दन सुनता है, अपने हाथों पाले हुए पशु-पक्षियों की हत्या करके अपनी मौज मनाता है। उसे अत्यन्त तुच्छ स्तर का व्यक्ति समझना चाहिए। जो मनुष्य पशुओं का माँस खा सकता है वह किसी दिन मनुष्यों का खून भी पी सकता है।’
-दार्शनिक पैथागोरस