शरीर ने कहा- ‘मैं कितना सुन्दर हूँ, कितना आकर्षक, कितना बलवान।’
आत्मा बोली- ‘तुम अपनी अपेक्षा मुझे अधिक सुन्दर, अधिक आकर्षक और अधिक बलवान बना दो। तुम्हारी ये विशेषतायें तो क्षणिक हैं। ये ही गुण मेरे पास आकर शाश्वत हो जायेंगे।’ किन्तु शरीर की समझ में कुछ न आया। वह अपनी इन रंगीनियों पर खुश होता और झूठा अभिमान करता रहा। कुछ दिन पश्चात जीवन काल समाप्त हुआ शरीर से आत्मा के विच्छेद का समय आ पहुँचा। अब शरीर रोगी, दुर्बल तथा कृश हो गया था। चलते समय आत्मा बोली- ‘तुमने मुझे कुरूप तथा निर्बल रहने दिया। वह सुन्दरता तथा शक्ति दी होती तो मेरा स्वरूप निखर गया होता और वे विशेषताएं भी बनी रहतीं। अब तुम्हारे साथ ही वे समस्त विशेषतायें समाप्त हो गयीं। अच्छा जाती हूँ।’
शरीर अपने अज्ञान पर पछताता और सिर धुनता इस संसार से विदा हो गया। आत्मा भी किसी ऐसे शरीर की तलाश में चल पड़ी, जो उसका विकास और परिमार्जन कर परम तत्व में लय होने योग्य बना दे।