परमात्मा की आनंदमयी सत्ता

October 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अन्तः से फूट पड़ने वाला उल्लास ही आध्यात्मिकता का प्रकाश है। यह सदैव उन सभी के मुख मण्डल पर चमकता देखा जा सकता है, जिन्हें आत्म-ज्ञान हो जाता है। आत्मा का सहज रूप परम सत्ता की तरह आनन्दमय है। इसीलिए विद्वानों ने कहा है- ‘आध्यात्मिकता का ही दूसरा नाम प्रसन्नता है। जो प्रफुल्लता से जितना दूर है, वह ईश्वर से भी उतना ही दूर है। वह न आत्मा को जानता है, न परमात्मा की सत्ता को। सदैव झल्लाने, खीजने, आवेशग्रस्त होने वालों को मनीषियों ने नास्तिक बताया है।

संसार रूपी इस जीवन समर में जो स्वयं को आनन्दमय बनाये रखता है, दूसरों को भी हँसाता रहता है, वह ईश्वर का प्रकाश ही फैलाता है। यहाँ जो कुछ भी है, आनन्दित होने- दूसरों को हँसाने के लिये ही उपजाया गया है। जो कुछ भी बुरा या अशुभ है। वह मनुष्य को प्रखर बनाने के लिए विद्यमान है। जीवन में समय-समय पर आने वाली प्रतिकूलताएँ मनुष्य का साहस बढ़ाने, धैर्य की नींव मजबूत करने, शक्ति सामर्थ्य को विकसित करने ही आती हैं।

 जो इनसे डरकर रो पड़ता है, कदम पीछे हटाने लगता है, उसकी आध्यात्मिकता पर भला कौन विश्वास करेगा? जिन्दगी सरल तो हो, पर सरस एवं प्रफुल्लता से भरी भी। उसमें संघर्ष का भी स्थान होना चाहिए क्योंकि इसके बिना दुनिया में कोई सफलतापूर्वक जी नहीं सकता।

रोना एक अभिशाप है जो मात्र अविवेकी नास्तिकों को शोभा देता है। हँसना- मुस्कुराना एक ऐसा वरदान है जो वर्तमान में सन्तोष और भविष्य की शुभ सम्भावनाओं की कल्पना को जन्म देकर मनुष्य का जीना सार्थक बनाता है। आइये, हम सही अर्थों में आस्तिक बनें। अपने अनुभवों से अन्यों को भी अवगत करायें एवं सारा वातावरण प्रफुल्लता से ओत-प्रोत कर दें।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118