युग विभीषिकाएं मानव की ओर से आमन्त्रित परिस्थितियाँ हैं। प्राप्त सामर्थ्य एवं उपार्जित वैभव का नियोजन जिस दिशा में हुआ है, परिस्थितियाँ वैसी ही बनती चली गयी हैं। कला, साहित्य, शासन, विज्ञान आदि क्षेत्रों में प्रतिभा एवं सम्पदा का अभाव नहीं किन्तु दिशा न मिलने के कारण वे आज उल्टी दिशा में चल रहे हैं। सूक्ष्मीकरण प्रक्रिया द्वारा गुरुदेव अपनी पाँच देव शक्तियां-पंचकोशों को सक्रिय कर इन सामर्थ्यों के सुनियोजन का पुरुषार्थ सम्पन्न करेंगे।
जीवन जीना सब कलाओं से ऊपर है। जो उसे सुन्दरतापूर्वक जी सका वह सच्चा कलाकार है।
समूचे संसार को कष्ट दिए बिना एक व्यक्ति को कष्ट नहीं दिया जा सकता। आत्मा का हित साधन किए बिना दूसरों का हित साधन नहीं होता।