मन्त्र शक्ति का चमत्कारी प्रतिफल

October 1984

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वेदों में मन्त्रों की 20 हजार ऋचाएँ हैं। इन सभी को विभिन्न छन्दों में विभक्त किया गया है। छंद अर्थात् गीत गायन। इन सभी गीतों की सीमा मर्यादा है। कौन किस प्रकार गाया जायेगा, इसका ऋषिगणों द्वारा उसी समय निर्धारण हो गया है, जब इनका सृजन हुआ है। इन्हें लयबद्ध गाया जाना चाहिए। मोटा विभाजन तो उदात्त, अनुदात्त स्वरित के क्रम में हुआ है। मन्त्रों के नीचे, ऊपर आड़ी टेड़ी लकीरें जो लगाई जाती हैं, उनमें उच्चारण के संकेत हैं। लेकिन जब इन्हें स्वर समेत गाना हो तो उनके सरगम, सामवेद में दिए गये हैं। वहाँ अंकों के चिन्ह हैं। वैदिक सरगम का संकेत 1, 2, 3, 4 आदि अंकों में अक्षरों के ऊपर दिया जाता है। यह ध्वनियाँ हैं, जिन पर हिन्दी गीतों को कई-कई तरह से गाया जाता है। इन गाने के ढंगों को सरगम की भिन्नता के हिसाब में अंकित किया जाता है। आगे वाले इन आड़ी-टेड़ी लकीरों के हिसाब से अनुमान लगा लेते हैं और छन्दों की उसी क्रम से गाने लगते हैं। एक छन्द को अनेक ध्वनियों में गाया जा सकता है। इन ध्वनि भिन्नताओं में सरगम के अतिरिक्त आड़ी-टेड़ी लकीरों में संकेत ध्वनि बना देते हैं। इस प्रकार वेद मन्त्रों में जो ऋचा सामगान के रूप में गायी जाती है, तब उनके ऊपर अंक संकेत लगा देते हैं। सामगान की यही परम्परा है। कुछ दिन पूर्ण सामगान की अनेकों शाखाएँ थी, पर अब वे लुप्त हो गई। जो बची हैं मात्र वे ही उपलब्ध हैं।

इसके अतिरिक्त जटा-पाठ, घनपाठ का भी तरीका है। इनमें से कुछ मिलते हैं, कुछ लुप्त हैं। जो मिलते हैं, उनमें से अधिकाँश की श्रुति सम्पदा है। कहना और सुनना अथवा कण्ठस्थ करना वेदों का क्रम था। पर अब इतना परिश्रम लोग करते नहीं। जो लिखित हैं उसी के सहारे गाड़ी चलती है, आगे भी चलती रहेगी।

शुद्ध उच्चारण के लिए कंठस्थ होना विश्वस्त एवं प्रामाणिक है। गायन की दृष्टि से ही यह लयबद्धता नियोजित नहीं की गई, पर उनके अर्थ और प्रतिफल भी भिन्न हो जाते हैं। किस प्रयोजन के लिए किस मन्त्र को किस लय ध्वनि में गाया जाय, इसका अपना अलग शास्त्र है। मन्त्रों के विभिन्न प्रयोजन हैं। मात्र शब्दार्थ तो मोटी बात है। उसे तो निरुक्त, व्याकरण, शब्द कोष के सहारे सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। छन्दों के साथ ऋषि, देवता आदि का भी उल्लेख किया जाता है। इन संकेतों के हिसाब से यह अनुमान लगाया जाता है कि अर्थ किस प्रयोजन के निमित्त किया जायेगा। शब्दार्थों की दृष्टि से एक ही मन्त्र के कई अर्थ भी हो सकते हैं। पर ऋषि को किस प्रसंग का अर्थ अभीष्ट है यह जानने के लिए छन्द ऋषि, देवता का, जो हर मन्त्र के साथ उल्लेख है उसका अवलोकन कर तद्नुसार निर्धारण करना होता है।

मन्त्रों का शब्दार्थ ही सब कुछ नहीं है। यह भी दृष्टव्य है कि ध्वनि प्रवाह के आधार पर इसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? प्रतिफल क्या उत्पन्न होगा?

शब्द का प्रतिफल वार्तालाप में भी भला-बुरा होता है। मीठे और कड़वे वचन अपने-अपने भले-बुरे परिणाम उत्पन्न करते हैं। इसी प्रकार उच्चारण की प्रतिक्रियाएँ शारीरिक, मानसिक, नैतिक, बौद्धिक क्षेत्रों में अपने-अपने ढंग की अलग-अलग होती हैं। इन्हीं को मन्त्र की परिणति कहते हैं। अमुक विधि में अमुक मन्त्र का प्रयोग करने से अमुक रोग का निवारण- अमुक मनोविकारों का शमन होता है। अमुक प्रकार के विचार उठते और अमुक प्रकार की भावनाएँ जन्म लेती हैं। मनुष्य की कई प्रकार की प्रवृत्तियां हैं। जो उसे उत्साहित, निरुत्साहित, आनन्दित, उदासीन बनाती हैं। उन मनोवृत्तियों का प्रभाव जीवन के अनेक क्षेत्रों में अनेक प्रकार का होता है यही मन्त्र की परिणति है। मन्त्र बल से धन का पिटारा तो किसी को नहीं मिलता पर ऐसी प्रवृत्तियां अवश्य उठती हैं जिनके कारण मनुष्य लाभान्वित होता या घाटा उठाता है।

अदृश्य जगत के अदृश्य प्राणी परोक्ष रूप में कई बार अमुक व्यक्ति से सम्बन्ध बनाकर अच्छी या बुरी प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं। इसमें कुछ अनिष्ट कर हो तो उसका शमन- समाधान मन्त्र बल से हो सकता है। ग्रह-नक्षत्रों का अमुक समय में अमुक व्यक्ति पर श्रेष्ठ या निकृष्ट प्रभाव पड़ना बताया जाता है। इसी को दुर्भाग्य या सौभाग्य कहते हैं। इन परिस्थितियों को मंत्र बल से अनुकूल किया जा सकना एवं प्रतिकूलताओं का निवारण भली-भाँति सम्भव है।

मनुष्यों की भाँति यह प्रभाव पशुओं पर भी पड़ता है। कई बार मनुष्यों की तरह पशुओं पर भी परिस्थितियों के अनुकूल-प्रतिकूल प्रभाव होते देखे जाते हैं। वे बीमार हो जाते हैं। सामर्थ्य गँवा बैठते हैं। बीमारी- महामारी के शिकार होते हैं। ऐसे अनिष्टों को मन्त्र बल से निवृत्त करना सम्भव है, ऐसा यांत्रिकों का मत है।

संगीत का प्रभाव वैज्ञानिक अनुसन्धानों से मनुष्यों, पशुओं पर ही नहीं वृक्ष-वनस्पतियों पर भी पड़ते देखा गया है। फसल को अधिक उपजाऊ बनाने, फल-फूल अधिक आने का प्रभाव कितने ही परीक्षणों से देखा गया है। संगीत के ही प्रभाव से गाय अधिक दूध देती देखी गयी है। मुर्गियों अधिक संख्या में और बड़े आकार के अपेक्षाकृत जल्दी अण्डे देती हैं। मछलियों को टेप रिकार्डर पर संगीत सुनाये गये तो उनने अधिक अण्डे बच्चे दिए। मानसिक रोगियों को संगीत सुनाया गया तो वे व्यथा से मुक्त हो गये। बुद्धि वर्धक प्रयोगों के संगीत का उपचार सही सफल सिद्ध हुआ है। जो कार्य साधारण संगीत के फलस्वरूप हो सकता है वह मन्त्र प्रयोगों के विशेष संगीत से और भी अच्छी तरह से हो सकता है। जो लाभ पशुओं, पक्षियों एवं वनस्पतियों को मिल सकता है, वह मनुष्यों को न मिले, ऐसी कोई बात नहीं है।

संगीत का ही एक उत्कृष्ट स्वरूप मन्त्र है। वैज्ञानिक खोजों ने सामान्य संगीत की कितनी ही उपलब्धियाँ हस्तगत की हैं और उसे अनेक क्षेत्रों में प्रभावशाली पाया है। संगीत मात्र मनोरंजन ही नहीं है, वरन् उसमें प्रभावोत्पादक शक्ति भी है।

प्रसिद्ध संगीतकारों में कितने ऐसे हुए हैं, जिनके गायन वादन से बुझे हुए दीपक जल जाते थे। मेघ मल्हार के गायन से बादल बरसने लगते थे। साँप का विष उतारने में भूतोन्माद आदि ठीक करने में विशेष प्रकार के संगीत का तुरन्त विशेष फल तो आज भी देखा जा सकता है। फिर मन्त्रों की शक्ति तो और भी विशेष होनी चाहिए। उसमें तो और भी उच्चस्तरीय संगीत का समावेश है। ऐसी दशा में उसका तो और भी विशेष प्रतिफल होना चाहिए।

मन्त्र शक्ति-शब्द शक्ति का संगीत शक्ति का विकसित रूप है। संगीत की ध्वनि सुनकर मृग मोहित हो जाते हैं। सपेरे साँपों को वशीभूत कर लेते हैं। मन्त्र शक्ति के अनेकानेक चमत्कारी प्रतिफलों के सम्बन्ध में किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।


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