चार स्नातक अपने विषयों में निष्णात होकर साथ-साथ घर वापस लौट रहे थे। चारों को अपनी विद्या पर बहुत गर्व था।
रास्ते में पड़ाव डाला और भोजन बनाने का प्रबन्ध किया, तर्क शास्त्री आटा लेने बाजार गया। लौटा तो सोचने लगा कि पात्र वरिष्ठ है या आटा। तथ्य जानने के लिए उसने बर्तन को उल्टा तो आटा रेत में बिखर गया। कला शास्त्री लकड़ी काटने गया। सुन्दर हरे-भरे वृक्ष पर मुग्ध होकर उसने गीली टहनी को काट लिया।
गीली लकड़ी से जैसे-तैसे चूल्हा जला, थोड़ा चावल जो पास में था उसी को बटलोई में किसी प्रकार पकाया जाने लगा। भात पका तो उसमें से खुद-बुद की आवाज होने लगी। तीसरा पाक शास्त्री उसी का ताना-बाना बुन रहा था।
चौथे ने उबलने पर उठने वाले ‘खुद-बुद’ शब्दों को ध्यानपूर्वक सुना और व्याकरण के हिसाब से इस उच्चारण को गलत बताकर एक डण्डा ही जड़ दिया। भात चूल्हें में फैल गया।
चारों विद्वान भूखे सोने लगे तो पास में पड़े एक ग्रामीण ने अपनी पोटली में नमक सत्तू, निकालकर खिलाया और कहा- पुस्तकीय ज्ञान की तुलना में व्यावहारिक अनुभव का मूल्य अधिक है। मानवी मस्तिष्क में लगभग 10 खरब स्नायु कोष होते हैं। यदि प्रत्येक कोष को गिनने में एक सेकेंड लगे तो भी इन्हें पूर्णरूपेण गिनने में 300 सदी लग सकती हैं।