परिवर्तित जीवन जीने वाले- सन्त फजील

October 1984

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हिन्दू पौराणिक गाथाओं में ऋषि वाल्मीकि का नाम आता है। जो आरम्भिक जीवन में दस्यु कृत्य करते थे, पर पीछे नारद जी के शिक्षा सान्निध्य से उन्होंने दूषित कर्म छोड़ दिये और सच्चे अर्थों में ऋषि बन गये।

मुस्लिम समाज में ऐसा ही एक नाम फजील बिन अयाज का आता है। वे रोजा नमाज में कमी नहीं करते थे। साथियों को भी वैसी ही शिक्षा देते थे, किन्तु पेशा डाका डालने का करते थे। इतने पर भी देख लेते थे कि उस व्यक्ति के पास पैसा खर्च से ज्यादा है या नहीं जिस पर कम होता उसे छोड़ देते माल बटवारे में कभी उन्होंने साथियों के साथ बेईमानी या झगड़ा नहीं किया।

एक दिन एक सरदार अपने काफिले समेत जा रहा था। डाकुओं का अंदेशा देखकर उसने भक्त जैसा लिबास पहने हुए फजील को विश्वास योग्य समझा और अपनी रकम उनके हाथों सौंप दी। कहा- आप रखवाली करके मेरे पैसा बचा देंगे। फजील ने उसका पैसा जमीन में गाड़ दिया। जब खतरा दूर हो गया तो सरदार पहुँचा और अपना पैसा माँगा। फजील ने कहा- जा, जहाँ गाड़ा था वहीं से उखाड़ ले। साथियों ने इस पर आनाकानी की तो उनने कहा- इसने मेरे ऊपर भरोसा किया है। विश्वासघात कैसे करूं।’

एक दिन कुरान की एक आयत फजील ने ध्यानपूर्वक पढ़ी जिसका अर्थ होता था- “क्या ईमान वालों के लिए ऐसा वक्त नहीं आया कि उनका दिल अल्लाह से हटे।”

उस आयत को उनने बार-बार पढ़ा और उस दिन से सच्चे अर्थों में सन्त बन गये। डाका डालना बन्द कर दिया। इसके बाद वे मक्का चले गये और एक सच्चे फकीर की तरह रहने लगे।

एक दिन खलीफा हारूं-अल-रशीद उनसे मिलने आये और प्रार्थना करने लगे “कुछ नसीहत दीजिए।” फजील ने कुछ महत्व की बातें उनसे कहीं। “एक दिन अल्लाह से मैंने प्रार्थना की कि मुझे सरदार बना दें। उसने मुझे इन्द्रियों का सरदार बना दिया।” हारूं रशीद ने कहा कुछ और फरमाइये। फजील ने कहा- “एक दिन मैंने अल्लाह से कहा- मुझे नजात (मुक्ति) चाहिए। अल्लाह ने सीधा रास्ता बता दिया।”

फजील ने कहा- अल्लाह ने कहा- बूढ़ों के साथ मेहरबानी और जवानों तथा बच्चों के साथ नेकी कर। मैंने वही किया और नजात पा गया।

हारून के आगे पूछने पर फजील ने कहा- “अल्लाह ने कहा- खुदा से डर और उसके दरबार में जवाब देने के लिए तैयार रहा मैंने उस दिन से वही रास्ता अपनाया।”

फजील ने कहा- “अल्लाह ने कहा, तेरी जानकारी में कोई गरीब बुढ़िया भूखी सो गयी तो खुदा के दरबार में इंसाफ माँगेगी। उस दिन से मैंने ऐसे गरीबों की तलाश करना शुरू कर दिया और खुद खाना तब खाया जब उसे खिला लिया।”

इसके बाद खलीफा इन सूफी फकीर को कुछ धन देने उठे। फजील ने कहा- मुझे दोजख (नरक ) में डालने का इरादा करता है क्या? इसके बाद खलीफा उठकर चल दिये। चलते वक्त उनने फिर खलीफा से कहा- “जो खुदा से डरता है उसकी जुबान गूंगी रहती है। वह बेकार बातें नहीं कहता और दुनिया वालों से बेकार मुहब्बत नहीं बढ़ाता।”

फजील की दो लड़कियाँ थीं। वे विवाह के योग्य हो गयीं। वे विवाह कर न सके। मरते वक्त उनने कहा- इन लड़कियों को पहाड़ की चोटी पर ले जाना और अल्लाह से कहना- जब तक जिन्दा थे, आपने फजील की रखवाली की अब इन लड़कियों की भी आप ही रखवाली करें। कहते हैं कि एक बादशाह उधर से निकला। उसने फजील की दोनों लड़कियों की शादी अपने शहजादों से कर दी। फजील ने जिस प्रकार अपने जीवन को बदला उसकी मुस्लिम हदीसो में बड़ा विशद विवेचना की गयी है। सच्चे अर्थों में वे मुस्लिम समुदाय के वाल्मीकि थे।


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