असम प्रान्त की एक देहाती बैंक का कर्मचारी था- रामसिंह। भोर की बेला में खेत से घर की ओर आ रहा था कि रास्ते में साँप का एक जोड़ा लिपटा हुआ दीखा। रामसिंह रुककर उनका खेल देखने लगा। सर्पयुग्म को यह सहन न हुआ उसने उचटकर रामसिंह का पैर काट खाया। घर पहुँचते-पहुँचते वह बेहोश हो गया। बेहोश होने से पहले साँप के काटे की घटना उसने घर वालों को बता दी थी।
ऐसी घटनाओं के मामले में सपेरे ही इलाजी समझे जाते हैं। इर्द-गिर्द जो सपेरे थे, उन्हें बुलाया गया। उनमें जो अधिक वयोवृद्ध और अनुभवी थे, उनने इलाज का जिम्मा अपने हाथ में लिया। रामसिंह पूरी तरह बेहोश हो चुका था। हल्की सी साँस और धीमी-सी नब्ज़ चल रही थी। सपेरे का इलाज भी विचित्र था। उसके सिर के सारे बाल मुंड़वाये गये। सिर पर गीली मिट्टी की मोटी परत लगा दी गई। पास की नदी में उसे सीने तक गहरे पानी में खड़ा किया गया। अपने आप वह खड़ा नहीं हो सकता था सो चारों ओर घड़ों को पानी से भरकर उन्हें एक के ऊपर एक रखा गया और ऐसा जुगाड़ बना दिया गया कि वह खड़ा रहे, गिरने न पाए।
चार दिन तक वह खड़ा रहा सिर की मिट्टी सूखने न पाये। इसलिए उसे बार-बार बदला जाता रहा। पांचवें दिन उसने आंखें खोली जम्हाई ली। आशा बँधी कि रामसिंह बच गया। वह बच तो गया पर स्थिति ऐसी थी जैसी गहरे नशे में हो। क्रमशः कुछ खाने पीने लगा। कुछ कहता सुनता भी था। पर स्वस्थ मनुष्य जैसी स्थिति न थी। सपेरे अपना चमत्कार दिखाकर चले गये। अब डाक्टरों की बारी आई। उनने जाँच पड़ताल की और कहा शरीर में अभी भी जहर है। जो उपाय वे कर सकते थे सो किया पर उससे भी नाम मात्र का लाभ हुआ। उन दिनों बंगाल के प्रसिद्ध काँग्रेसी नेता उस क्षेत्र के मशहूर डाक्टर भी थे। उन्हें भी रोगी दिखाया गया। डाक्टर राय ने एक विचित्र बात कही- “इसके शरीर में सर्प की गन्ध है। उसके कारण और भी बहुत से साँप इसके समीप आ सकते हैं। आसपास वालों को नुकसान पहुँचा सकते हैं इसलिए इर्द-गिर्द वालों को सावधान रखा जाये इसे कोई नुकसान न होगा।” मामूली इलाज के अतिरिक्त उनने भी कोई खास बात नहीं कही।
आये दिन साँप आते और रोगी से लिपटते। इसके बाद बिना कुछ अन्य हरकत किये चले जाते। एक दिन बहुत बड़ा अजगर आ गया जो रोगी के वजन से दुगुना भारी था। वह लिपटा भर रहा पर बिना कुछ हानि पहुँचाए वह भी वापस चला गया। डाक्टरों ने एक चेतावनी दी कि यह रोगी किसी को काट न खाये। अन्यथा उसकी मौत भी साँप के काटे के समान हो जायेगी।
रामसिंह धीरे-धीरे अच्छा होने लगा। होशो-हवास की बातें करने लगा। साँपों का आना-जाना कम हो गया पर यह जानने के लिए कि वह सचमुच साँप तो नहीं हो गया है। उसने घर की पालतू बकरी के बच्चे को दाँत से काट भर लिया। देखते-देखते वह जहर से ग्रसित होकर जमीन पर लुढ़क गया और मर गया। अब सब जगह अफवाह फैल गई कि आदमी की शक्ल में रामसिंह साँप हो गया है।
उसके लिए अलग झोपड़ी बना दी गई। भोजन वहीं पहुँचा दिया जाता। साँप उसके पास आते जाते, लिपटे रहते और छोड़कर बिना कुछ हानि पहुंचाये वापस चले जाते। रामसिंह न उनसे डरता न ही लड़ता-झगड़ता। रोटी समय पर मिल जाती। इस प्रकार उसने शेष जिन्दगी के चार वर्ष गुजारे और एक दिन अपनी मौत मर गया। इस इलाके में रामसिंह को साँप का भूत कहा जाता था। सृष्टि के इस विचित्र विधि-विधान का उत्तर किसी के पास नहीं था।