नाचता सूर्य- जो सत्तर हजार ने देखा

October 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

घटना 13 अक्टूबर 1917 की है। पुर्तगाल के कोबिडा इरिया नामक स्थान में तीन बच्चों ने पेड़ पर लटकते एक प्रकाश को देखा। प्रकाश के बीच में एक चन्द्र वदनी देवी मुस्करा रही थी। लड़के डरने लगे तो उस देवी ने कहा- “डरो मत! मैं स्वर्ग से आई हूँ। तुम लोग इसी समय आया करो तो प्रकाश समेत मेरे दर्शन करते रह सकोगे।”

लड़कों ने बात सब जगह फैला दी दूसरे दिन उस गाँव के आसपास के लोग सत्तर हजार की संख्या में उस स्वर्ग की देवी के दर्शन करने एकत्रित हुए। युवती के दर्शन तो न हुए पर लोगों ने बादलों के बीच चाँदी जैसा चमकता हुआ एक दिव्य प्रकाश का गोला देखा। दर्शकों में पढ़े-बिना-पढ़े आस्तिक-नास्तिक, मूढ़-तार्किक विद्वान सभी किस्म के लोग थे। सभी ने उस समय वह प्रकाश पुँज देखा और आश्चर्यचकित रह गये कि आखिर यह है क्या? गोला स्थिर न रहा उसने कई घेरे बनाकर कला बाजियाँ खानी शुरू कर दी। गोला तश्तरी जैसा हो गया। इसके कई प्रकार की आकृतियाँ बनने लगीं। बहुत समय तक उसमें इन्द्र-धनुष उभरा रहा। इन्द्र-धनुष बहुत लम्बा था। अन्तरिक्ष के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक उसकी लम्बाई थी। इस समय हल्की वर्षा हो रही थी। दर्शकों के कपड़े उसमें भीग रहे थे। इतने में प्रकाश के गोले ने एक गरम लहर का चक्कर लगाया और देखते देखते सबके कपड़ों से भाप उठने लगी और वे सब ऐसे सूख गये मानो वर्षा से किसी के कपड़े भीगे ही न हों।

इस घटना की जानकारी मिलने पर सारे पुर्तगाल में तहलका मच गया। पुर्तगाल के सर्व प्रख्यात दैनिक पत्र मार्से क्यूलों के सम्पादक ने इस घटना का आँखों देखा विवरण छापा और उसे ‘सूर्य का नृत्य’ नाम दिया।

मनोवैज्ञानिकों में से कुछ ने तुक ठिठाई की कि सत्तर हजार व्यक्ति एक ही कल्पना से आबद्ध थे। फलतः उन्हें वैसा ही स्वरूप प्रतीत हुआ। जिनकी समक्ष में यह तुक नहीं आई, उनने सीधे-सीधे शब्दों में इसे दैवी चमत्कार कहते हुए, प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर शान्ति का बोधक इसे बताया।

भौतिकी के विज्ञान और मनोविज्ञानी ऐसी घटनाओं का अपने ढंग का अर्थ लगाते हैं। मनोविज्ञानी वी-जी-जुग ने अपनी पुस्तक ‘फ्लाइंग सासर’ पुस्तक में एक घटना का वर्णन लिखा है कि एक जगह चार व्यक्तियों को एक प्रकाश का गोला दीखा। पर मुझे नहीं दीखा। इसका कारण यह है कि वे चार व्यक्ति पहले से ही वैसी कल्पना किए बैठे थे। पर मेरी कल्पना वैसे न थी।’ फिर भी यह एक प्रश्न बना ही रहता है कि सत्ता हजार व्यक्तियों को एक ही तरह का दृश्य एक ही समय में कैसे दीखा? भौतिकी विज्ञानी इसे ब्रह्माण्डीय हलचल कह सकते हैं। फिर भी उसका कुछ कारण तो होना चाहिए।

सत्तर हजार लोगों ने एक ही समय में एक ही घटना देखी। सबके गीले कपड़े भाप बन कर उड़े और सूख गये। कैसे? इन प्रश्नों का उत्तर अभी भी देना बाकी है। मनोवैज्ञानिक जादूगरी “मास हिप्नोटिज्म” या ब्रह्मांड में हुई कोई घटना कहने से काम चलता नहीं। इसे एक दैवी चमत्कार मान लेने में भी कोई हर्ज नहीं है। दैवी चमत्कार भी इस विश्व व्यवस्था और प्रकृति घटना का ही एक अंग ही तो है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118