मूर्ख और बुद्धिमान (kahani)

October 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

विश्व विख्यात कथाकार तुर्गनेब की एक बहुत छोटी किन्तु दिलचस्प कहानी है-

एक मूर्ख अपने को बहुत बुद्धिमान मानता था। जहाँ जाता बात करता वहाँ से उपहास अपमान लेकर वापस लौटता।” दुखी होकर वह एक विद्वान के पास पहुँचा। “बोला- ऐसा मन्त्र सिद्ध करा दीजिए कि मेरी ख्याति बुद्धिमान के रूप में फैल जाए।”

“विद्वान को मखौल सूझा। पास बुलाकर कान में एक मन्त्र कहा और उसे अपनाये रहने पर अभीष्ट मनोरथ सिद्ध होने का विश्वास दिलाया। वस्तुतः हुआ भी वैसा ही वज्र मूर्ख कुछ ही दिनों में विद्वान गिना जाने लगा और उसकी चर्चा हर किसी की जीभ पर थी।

“बताया गया मन्त्र इतना ही था कि दूसरे जो भी कहें उसका खण्डन करते हुए ठीक उलटी बात इतनी जोर देकर कही जाये कि लोग कथन में कुछ दमखम समझने लगें।” इस मन्त्र को अपनाकर कोई भी मूर्ख- मूर्ख समुदाय में विद्वान की तरह प्रख्यात हो सकता है।”

आज समाज में ऐसे विद्वानों की क्या कोई कमी है?


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles