सोपानभूतं स्वर्गस्य मानुष्य प्राण्य दुर्लभम्। तथात्मानं समाधत्स्व भ्रश्यसे न पुनर्यथा॥
अपूर्ण पुण्यों से प्राप्त सुरदुर्लभ मानव शरीर स्वर्ग प्राप्ति का सोपान होता है। अतः इसे पाकर सदा शुभ कर्मों में ही लगाना चाहिए, ताकि मनुष्य पुनः इस शरीर से पतन, अवनति और भ्रष्टता की ओर उन्मुख न हो।