विजयी सिकन्दर की सेनाएँ एक जंगल के रास्ते से वापस लौट रही थीं। रास्ते में एक पेड़ के नीचे झोपड़ी बनाकर रहने वाले एक अलमस्त फकीर को देखा, जो मस्ती में ढपली बजाने और गीत गाने में निमग्न था। ऐसी अभावग्रस्त परिस्थितियों में इतनी मस्ती देखकर सिकन्दर रुका और उस अलमस्त का परिचय पूछा। उसने कहा- “मैं बादशाह हूँ।” चकित होकर सिकन्दर ने पूछा- भला किस राज्य के बादशाह हो? आपका माल खजाना कहाँ है?
अलमस्त ने कहा- मन को जीतकर बना हुआ बादशाह। इस सारी दुनिया में मेरे बाप परम पिता की ही तो दौलत भरी पड़ी है फिर मैं अलग से छोटा खजाना कहाँ बनाता फिरूं। सिकन्दर को मस्ती का कारण विदित हुआ और उसे सच्ची बादशाहत का उस दिन पहली बार आभास मिला।