पुनर्जन्म एक सचाई, भले ही दुराग्रही उसे न मानें

October 1984

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इस दुनिया में न तो कोई पहली बार आया है और न ही उसका अस्तित्व इस बार अन्तिम है। प्रत्येक मनुष्य पिछले कई जन्मों में इसी संसार की यात्रा कर चुका है और उन्हीं गोरख धन्धों में उलझाकर जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त अपना सारा समय व्यतीत कर चुका है, जिनमें कि वह इस समय उलझा हुआ है। इस दृष्टि से संसार के अनुभव न किसी के लिए नए हैं और न ही अपरिचित प्रमाण हैं- पुनर्जन्म के वह वृत्तांत, जिनमें विभिन्न धर्म सम्प्रदायों के व्यक्तियों ने अपने पिछले जन्मों के विवरण बताये जो अक्षरशः सत्य निकले।

भारतीय दर्शन ने पुनर्जन्म को सृष्टि विधान का एक स्वाभाविक क्रम माना है। अन्य धर्म सम्प्रदायों ने भी प्रकारान्तर से मनुष्य के मरणोत्तर अस्तित्व को स्वीकारा है तथा संसार के बुद्धिजीवियों और विचारशील व्यक्ति भी अब यह स्वीकार करने लगे हैं कि तृष्णा वासना के मोह बन्धन रहते हुए मनुष्य को लौट-लौटकर इसी संसार चक्र में आना पड़ता है। जुलाई 1959 में जबलपुर की एक नौ वर्षीय बालिका का उदाहरण अपने समय में काफी चर्चित रहा है। बोलना, समझना और अपने आप को व्यक्त करने की क्षमता का विकास होते ही यह बालिका अपने पिछले जन्म का विवरण बताने लगी थी। उसका कहना था कि वह पहले (पिछले जन्म में) सिलहट में रही है और उसने बी.ए. तक शिक्षा भी प्राप्त की है। 21 वर्ष की आयु में उसका विवाह भी हो गया था और विवाह के तुरन्त बाद ही एक मोटर दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी थी। सिलहट जाकर जब उस बालिका के बताये विवरणों की सच्चाई को जाँचा परखा गया तो एक-एक बात सच निकली।

मृदुला दो वर्ष की थी तभी एक दिन घर में एक मेहमान द्वारा लायी गयी कुछ लीचियाँ देखकर उसे पूर्व जन्म की याद आ गई। उसने अपने माता-पिता को बताया कि वह देहरादून की रहने वाली है। अपने पिछले जन्म के सम्बन्ध में उसने और भी बातें बताईं। पहले तो माता-पिता उसकी बातों को हँसी में टालने लगे, पीछे जब वह बहुत परेशान करने लगी तो वे मृदुला को साथ लेकर देहरादून गये। मृदुला ने ही उन्हें घर तक पहुँचने का मार्ग इशारों से बताया। पिछले जन्म के घर पर पहुँच कर मृदुला एक वृद्ध महिला की गोद में बैठ गई और बोली तुम मेरी छोटी बहन हो।

आश्चर्य व्यक्त करते हुए महिला ने पूछा, ‘यह कैसे हो सकता है?’

मृदुला ने कहा- ‘मैं तुम्हारी बड़ी बहन मुन्नू हूँ। मुन्नू मृदुला के पिछले जन्म का ही नाम था। उसके माता-पिता ने बच्ची के बारे में, जो कुछ वह कहती थी वह सब बताया। सुनकर उस परिवार के लोग हैरान रह गए क्योंकि जो कुछ भी उन लोगों ने बताया वह यथातथ्य सत्य था।

मुन्नू के घर आर्यसमाज के प्रसिद्ध संन्यासी आनन्द स्वामी भी उस समय आया करता थे। मुन्नू का जब देहान्त हुआ तब उन्होंने संन्यास नहीं लिया था। मृदुला को जब बिना कुछ बताए आनन्द स्वामी से मिलाया गया तो उन्हें पहचान कर वह बोली, “अरे! खुशाल चन्द जी! आप तो पहले भी देहरादून आते थे, लेकिन इस वेश भूषा में नहीं। आपको स्वामीजी के रूप में मैं 25-26 वर्ष बाद देख रही हूँ। आप कब से संन्यासी हो गये हैं? उल्लेखनीय है- आनन्द स्वामी का गृहस्थ नाम खुशालचन्द ही था। सब आश्चर्यचकित रह गए। उस घर में एक बूढ़े व्यक्ति ने मुन्नू से दुलार करते हुए पूछा, ‘बिटिया तुमने अपने नौकर को नहीं पहचाना वह वृद्ध व्यक्ति अपनी ओर संकेत कर रहा था। मृदुला उस व्यक्ति के गले में बांहें डालकर झूल गई और बोली “आप क्यों मुझे शर्मिन्दा करने वाला मजाक करते हैं? आप तो मेरे पिता हैं।”

पुनर्जन्म के इस मामले का अध्ययन वर्जीनिया विश्वविद्यालय में परामनोविज्ञान के प्रोफेसर डा. स्टीवेन्सन ने भी किया और उन्होंने इस केस के सम्बन्ध में कहा, यह निश्चित रूप से पुनर्जन्म का मामला है। ऐसे और भी कई देशों से ढेरों मामले मेरे सामने आए हैं। उनका अध्ययन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि पुनर्जन्म कोरी कल्पना नहीं वरन् एक ध्रुव सत्य है।

मृदुला ने न केवल अपने पूर्व जन्म का बल्कि उसके पहले वाले जन्म का हाल बता कर सबको दंग कर दिया। देहरादून के एक वैश्य परिवार में जन्मी मुन्नू का देहान्त सन् 1945 में हो गया था। तब उसकी आयु 24 वर्ष थी और इसके बाद वह 1949 में नासिक के ब्राह्मण कुल में जन्मी थी। देहरादून में उसका जन्म तीसरा पूर्व जन्म था। उस जन्म में मृदुला ने हिन्दी में एम.ए. किया था और नासिका में जन्म लेने के बाद जबलपुर से राजनीति शास्त्र से एम.ए. किया था।

इस्लाम धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता को स्थान नहीं है। परन्तु ऐसे मामले सर्वप्रथम वहीं प्रकाश में आये थे, जिनसे ज्ञात होता है कि पुनर्जन्म धर्म और सम्प्रदाय की मान्यताओं से अनावद्ध है। तुर्की की एक घटना का उल्लेख करना इस संदर्भ में अप्रासंगिक न होगा। इस घटना की जाँच करते हुए इस्तम्बूल की परामनोविज्ञान तथा वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष ने कहा था, स्पष्ट ही यह जीवात्मा के देहान्तरण का मामला है, एक शरीर में दो जीवात्माओं की उपस्थिति का नहीं। सन् 1964 के आसपास इस घटना को लेकर तुर्की में व्यापक चर्चा फैली थी। घटना का नायक एक चार साल का बालक था, जिसका नाम था इस्माइल अतलिंकलिक। एक दिन इस्माइल अपने पिता अहमद की गोदी में बैठा खेल रहा था। तभी उधर से एक फेरी वाला निकला इस्माइल ने फेरी वाले को देखते ही आवाज दी। पिता ने समझा कि उसका बेटा शायद कुछ खरीदना चाहता है। लेकिन फेरी वाले को उसके पिता को यह देखकर हैरानी हुई, जब इस्माइल ने महमूद उसका नाम लेकर कहा, अरे महमूद! तुमने अपना धन्धा कब से बदल दिया? तुम तो पहले साग-सब्जी बेचा करते थे न।’

इस फेरी वाले का नाम था महमूद। एक चार साल के बच्चे के मुंह से अपना नाम सुनकर वह दंग रह गया और इस्माइल का मुँह ताकने लगा। उस समय तो उसकी हैरानी का और भी कोई ठिकाना नहीं रहा, जब उसने कहा, ‘मुझे भूल गए महमूद मियाँ? याद करो मैं आबिद हूँ, आबिद! जिससे तुम सब्जी खरीदा करते थे। कुछ याद आया!’

अपने बेटे के मुँह से यह बातें सुनकर पिता को भी कुछ कम आश्चर्य नहीं हुआ, फेरी वाले ने तभी अपने आपको सम्हाल कर कहा, ‘यह क्या कह रहे हैं आप? आबिद का कत्ल हुए तो छह साल बीतने को आए।’ यह सुनकर इस्माइल ने कहा, तो क्या हुआ? मैं आबिद नहीं हो सकता? मैंने फिर जन्म ले लिया है।” इसके बाद इस्माइल ने अपने पूर्व जन्म का वृत्तांत बताना शुरू किया तो अड़ोस-पड़ोस के लोगों तक ही नहीं धीरे-धीरे बात पूरे शहर में फैल गई। आबिद तुर्की के ही अदना शहर का रहने वाला था और छह वर्ष पूर्व उसकी हत्या कर दी गयी थी।

पिछले जन्म का वृत्तांत बताने की बात जैसे ही पत्र प्रतिनिधियों तक पहुँची वे महमूद के घर आए और वे इस्माइल को उसके पिता के साथ लेकर अदनानगर पहुँचे। इस्माइल ने ही उन्हें आबिद के घर का पता बताया। घर पहुँचते ही वह जोर से चिल्लाने लगा। आबिद की बेटी गुलशरा ने दरवाजा खोला तो इस्माइल ने उसे देखते ही कहा, ‘‘मेरी बेटी गुलशरा। कैसी हो?’’ फिर वह रसोई की ओर बढ़ गया। वहाँ एक वृद्ध स्त्री खाना पका रही थी। उसकी ओर संकेत करते हुए इस्माइल ने कहा, ‘यह है मेरी पहली बीवी हातिस।’ उसने यह भी बताया कि हातिस के कोई बच्चा न होने पर उसने शाहिरा से शादी कर ली थी जिससे उसके तीन बच्चे हुए थे।

अपनी हत्या के सम्बन्ध में इस्माइल ने जो विवरण दिया, वह आश्चर्यजनक रूप से सच था। वह पत्र प्रतिनिधियों को साथ लेकर अस्तबल में ले गया तथा वहाँ पहुँचकर उसने बताया कि यहीं 31 जनवरी 58 को उसकी हत्या कर दी गई। उसने बताया, हमारा परिवार बड़ा सुखी था। हम लोग हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते थे। एक दिन रमजान और मुस्तफा मेरे पास बिलाल नाम के आदमी को लेकर आये और काम माँगने लगे। मैं साग सब्जियाँ उगाया करता था। मैंने उन लोगों को काम पर रख लिया। क्योंकि मुझे भी आदमियों की जरूरत थी। 31 जनवरी की सुबह को रमजान ने मुझे अस्तबल में बुलाया और कहा कि मेरा घोड़ा कुछ लँगड़ा रहा है। मैं झुककर घोड़े का पैर देखने लगा तभी सिर पर जोर से प्रहार हुआ और उन लोगों ने मुझे मार डाला। यह सारा वाकया मेरी छोटी बीवी शाहिरा तथा जिली और इस्मत (आबिद के बच्चे ) देख रहे थे। कोई चश्मदीद गवाह न छूट जाए, इसलिए उन लोगों ने मेरी बीवी और बच्चों का भी कत्ल कर दिया। किन्तु हत्यारे बच न सके। पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और प्राण दण्ड की सजा दी।

पत्र प्रतिनिधियों ने अदना के पुलिस थाने में छह वर्ष पुराने रिकार्ड देखे, उसमें हत्या का ठीक वैसे ही विवरण मिला जैसा इस्माइल ने बताया था।

बदायूँ (उ.प्र.) में कुछ वर्ष पूर्व पुनर्जन्म की एक ऐसी ही विचित्र घटना प्रकाश में आई। वहाँ के एक वैश्य परिवार में जन्मे चार वर्षीय अनिल ने एक दिन अपनी माँ को अचानक भाभी कहकर पुकारा तो माँ ने कहा, भाभी क्यों कहता है रे? मैं तो तुम्हारी माँ हूँ न। अनिल ने कहा, ‘तुम मेरी माँ बाद में हो भाभी पहले। भूल गई मैं तुम्हें लिवाने के लिए सहसवान जा रहा था और तुम मुझे लालाजी कहा करती थीं।’

इसके बाद अनिल ने पूर्व जन्म की घटनाओं पर इस प्रकार प्रकाश डाला जैसे वे घटनाएँ उसी के साथ घटी हो। इस जन्म का अनिल, पिछले जन्म में अपनी माँ का ही देवर था। उसकी आयु 16 वर्ष थी और वह अपने भाई के साथ दुकान पर बैठा करता था। एक दिन उसके बड़े भाई ने कहा कि सहसवान जाकर अपनी भाभी को लिवा ले आए। वह रिक्शे पर बैठकर बस स्टैंड जाने के लिए रवाना हुआ। रिक्शा कुछ दूर ही गया होगा कि एक कार उससे टकरा गई और रिक्शा चूर-चूर हो गया। रिक्शा चालक तथा सवार दोनों की ही इस दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इसकी पुष्टि सभी ने की।

पिछले जन्म की घटनाएँ बताने वाले ऐसे सैकड़ों प्रसंग हैं। काश, यह समझा जा सके कि जन्म के रूप में यही एक अवसर अपने पास नहीं मिला है बल्कि पहले भी कई बार हम इस दुनिया में आ चुके हैं तो यह तथ्य आसानी से हृदयंगम किया जा सकता है कि जिन बातों के लिए लोभ, लालच, मोह ममता और तृष्णा वासना के वशीभूत होकर हम मरते खपते रहते हैं, उनके लिए पहले भी मर-खप चुके हैं। तभी कुछ हाथ नहीं लगा तो अब क्या लग सकता है? इस चिन्तन को अपनाया जा सके तो वर्तमान जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में अग्रसर होने की महत्वपूर्ण प्रेरणा तथा उमंग अपने भीतर जगाई जा सकती है।


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