अरब के दो मित्र थे। नावेर और वहेर। वहेर के पास बड़ा शानदार घोड़ा था। नावेर उसे किसी भी तरीके से प्राप्त करना चाहता था। कोई और उपाय न दिखा, तो एक दिन नावेर समुद्र के किनारे बीमार बुढ़िया का रूप बनाकर पड़ा रहा और रोने लगा। वहेर ने घोड़ा रोका और उस पर बीमार को बिठाकर खुद पैदल चलने लगा।
दाव लग गया। बुढ़िया बने नावरे ने एक लगाई और घोड़े को ले भागा। वहेर को आश्चर्य भी हुआ और दुःख भी। उसने जोर की आवाज लगाकर नावेर को खड़ा किया और पास जाकर कहा, “घोड़ा तुमने पा लिया, सो ठीक, पर इस घटना को किसी से न कहना, अन्यथा गरीब और बीमार सहायता से वंचित हो जाएंगे, उन्हें भी धूर्त माना जाएगा।”
नावेर रास्ते भर दोस्त की बात पर विचार करता रहा और दूसरे दिन उसका घोड़ा लौटा दिया।