सफलता के शिखर पर पहुँचने हेतु गया हर स्वर्णिम सूत्र

October 2003

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आज की आपाधापी भरी जीवन शैली का सर्वाधिक वाँछित लक्ष्य है सफलता। जो अन्ततः यह निश्चित करती है कि किसने क्या खोया और क्या पाया। एक सफल व्यक्ति के पास ही सफलता के बन्द दरवाजों की चाबी होती है। वह अपने लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी कई नए अवसरों का सृजन कर सकता है।

सफलता के उच्च शिखर पर पहुँच चुके ज्यादातर लोग सफलता को कठिन परिश्रम, मनोहारी व्यक्तित्व, अपने प्रयास के प्रति पूरी ईमानदारी, प्रत्येक उतार-चढ़ाव को बर्दाश्त करने की शक्ति के रूप में परिभाषित करते हैं। कुछ सफल व्यक्ति इसे ईश्वर की कृपा या फिर किस्मत की अनुकूलता के रूप में स्वीकार करते हैं। फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं, जिन पर सभी सफल व्यक्ति एकमत हैं। वे मानते हैं कि कुछ सूत्रों को अपनाकर कोई भी व्यक्ति सफलता के शिखर तक पहुँच सकता है।

पहला सूत्र है, लक्ष्य का निर्धारण। सफलता के आकाँक्षी ज्यादातर लोग महत्त्वाकाँक्षी होते हैं, पर वे यही नहीं समझ पाते कि अपने लक्ष्य को कैसे सुनिश्चित किया जाय। वास्तव में लक्ष्य निर्धारित करने के लिए किसी भी व्यक्ति को अपनी प्रतिभा एवं अपनी कमजोरियों के बारे में सजग होकर सोचना पड़ता है। लक्ष्य निर्धारण के साथ ही लक्ष्य तक पहुँचने के सर्वोत्तम व सहज मार्ग की परिकल्पना भी तैयार हो जाती है। अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जो भी मार्ग अपनाया जाय उसे समयानुकूल परिवर्तित करते रहना चाहिए।

दूसरा सूत्र है, संसाधनों का सदुपयोग। एक मानव के रूप में हम जन्म से ही कुछ न कुछ संसाधनों को प्राप्त करते रहते हैं। जीवन को पल्लवित पुष्पित करने के लिए आवश्यक सारे संसाधन इस सृष्टि के कण-कण में बिखरे पड़े हैं। भोजन, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा की बुनियादी सुविधाएँ तो हमें उपलब्ध हैं ही, साथ ही अभिभावकों एवं शिक्षकों द्वारा प्रदत्त अंतर्दृष्टि भी एक अमूल्य संसाधन के रूप में उपलब्ध है। विभिन्न ज्ञान-विज्ञान का खजाना हमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत के रूप में मिलता ही है। सफल होने के लिए व्यक्ति को चाहिए कि वह इन संसाधनों का अधिकतम प्रयोग बहुत सोच-समझ कर, सूझबूझ एवं संयम के साथ करे। यहाँ पर यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि सही संसाधनों का प्रयोग गलत लक्ष्य पूर्ति के लिए करने पर सफलता हाथ से फिसल जाती है।

सफलता का तीसरा सूत्र है, सीखने की चाह। अहंकारी व्यक्ति को अपना लक्ष्य हासिल करने में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। क्योंकि दुनिया का सर्वोत्तम शिक्षक भी ऐसे व्यक्ति में ज्ञान की ज्योति नहीं जला सकता। सफलता के लिए यह अनिवार्य है कि नए विचारों को सीखने एवं ग्रहण करने की प्रवृत्ति विकसित की जाए। इस प्रवृत्ति को अपनाकर ही किसी अन्य की उपलब्धियों से ईर्ष्या द्वेष करने के बजाय उसे सराहा जा सकता है, आत्मसात किया जा सकता है।

चौथा सूत्र है, संवाद कौशल। अपनी बात को समुचित एवं सशक्त तरीके से प्रस्तुत करना भी सफलता का अनिवार्य अंग है। संवाद स्थापित करने का यह हुनर घर और बाहर दोनों ही जगहों पर उपयोगी है। इसके लिए तीन आवश्यक तत्त्वों का ध्यान रखना आवश्यक है। संक्षिप्तता, सुस्पष्टता व निरन्तरता।

सफलता के लिए पाँचवा सूत्र है, नेतृत्व करने की योग्यता। अपने भीतर अपनी प्रतिभा एवं क्षमता को पहचान कर आगे बढ़ने वाला व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में नेतृत्व कर सकता है। आत्मविश्वास, विचारों की स्पष्टता एवं दृढ़ निश्चय से सम्पन्न व्यक्ति ही सफल नेतृत्व कर सकता है। इस क्रम में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अपनी असफलता को भी साहस के साथ स्वीकार किया जाये क्योंकि असफलता हमें एक नया अवसर प्रदान करती है कि हम अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए एक नये जोश के साथ प्रयत्न करें।

छठवाँ सूत्र है, प्रशासनिक कौशल। किसी निर्दिष्ट कार्य को समय पर पूरा करना। एक नियत समय के अन्दर कार्य को पूर्ण करने की प्रवृत्ति, किसी अन्य व्यक्ति की कार्यक्षमता एवं गुणवत्ता को कम समय में ही जान लेना, ये सभी ऐसे प्रशासनिक गुण हैं, जो व्यक्ति की सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

सातवें सूत्र के रूप में सफलता के लिए आवश्यक है, क्षमा, करुणा एवं सहयोग की भावना। सफलता की राह में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कई बार हम किसी अन्य की गल्ती के कारण विफल हो जाते हैं तब ऐसे में क्रोध करने के बजाय उसे क्षमा कर देना चाहिए। शान्त एवं प्रसन्न मन से किया गया कार्य ही सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। इन गुणों को विकसित करने में जप-ध्यान आदि सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

आठवाँ सूत्र है, वित्तीय संसाधन का सुनियोजन। वित्तीय संसाधन सफलता प्राप्त करने का एक आवश्यक एवं अहम् पहलू है। सफलता के आकाँक्षी व्यक्ति को चाहिए कि वह निकट भविष्य के लिए कार्य-योजना और नीतियाँ बनाये। अपने धन का निवेश व्यावसायिक एवं व्यक्तिगत मामलों में बहुत सोच-समझ कर करे। अधिकाँश सफल व्यक्तियों ने दौलतमंद होने के बाद भी अपनी दौलत का दुरुपयोग नहीं किया अपितु उसे योजनाबद्ध तरीके से समुचित कार्यों के लिए खर्च किया।

नौवाँ सूत्र है, सकारात्मक सोच। यह निर्विवाद सत्य है कि सकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति ही सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच पाता है। हालाँकि सकारात्मक सोच का स्वामी बनना आसान नहीं है, पर थोड़ी सी मेहनत से इसे जीवन में उतारा जा सकता है। सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति कभी भी नकारात्मक नहीं सोचता है। अतः सर्वप्रथम अपने भीतर से हीन भावना का परित्याग कर देना चाहिए। “अब मैं क्या कर सकता हूँ, कैसे कर सकता हूँ” इन विचारों को हमेशा के लिए अपने मन-मस्तिष्क से निकाल देना चाहिए। इन नकारात्मक विचारों के स्थान पर “मैं क्या नहीं कर सकता हूँ, सब कुछ संभव है, असंभव कुछ भी नहीं” इन विचारों को अपने चिंतन का अनिवार्य हिस्सा बना लेना चाहिए। सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति कभी भी छोटी बात नहीं सोचता है। जब सोच ऊँची होगी, तभी उड़ान ऊँची होगी और ऊँचाइयों पर पहुँचा जा सकेगा।

दसवाँ सूत्र है, आत्मविश्वास। प्रत्येक व्यक्ति में आत्म विश्वास भरा पड़ा है। आवश्यकता सिर्फ उसे जगाने की है। आत्मविश्वास के जगते ही चिन्तन भी बदल जाता है और असंभव लगने वाला कार्य भी संभव बन जाता है। आत्मविश्वास के बिना कोई भी सफलता के शिखर तक नहीं पहुँच पाता।

ग्यारहवाँ एवं अन्तिम सूत्र है, सही समय पर सही कार्य। सफलता के लिए व्यक्ति को चाहिए कि वह समय का सही व संतुलित रूप से प्रयोग करना सीखे। समय ईश्वर द्वारा प्रदत्त बहुमूल्य देन है। इसे व्यर्थ बर्बाद नहीं करना चाहिए। अपना समय सार्थक कार्यों में ही लगायें। जो अपने एवं दूसरों के समय का ध्यान रखते हैं वे समयबद्ध तरीके से अपने लक्ष्य तक पहुँच ही जाते हैं।

परमात्मा ने प्रत्येक व्यक्ति को प्रगति के समान अवसर प्रदान किये हैं। आवश्यकता सिर्फ उन अवसरों का समुचित रूप से लाभ उठाने की है। उपरोक्त सूत्रों को अपनाकर कोई भी व्यक्ति शून्य से शिखर तक की यात्रा तय कर सकता है।


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