स्वर्गीय गोखले के लेखों और भाषणों का अनुवाद गुजराती में करने का कार्य एक सज्जन को सौंपा गया। वह छपने भी लगा। उसकी भूमिका गाँधी जी को लिखनी थी। छपे फर्मे सामने आए और अनुवाद का स्तर देखा गया तो वह घटिया प्रतीत हुआ।
गाँधी जी ने कहा, “अप्रामाणिक वस्तु जनता को दूँ, यह मुझसे न हो सकेगा।” उन्होंने सारे छपे हुए फर्मे जलवा डाले, उन्हें रद्दी में नहीं बेचने दिया गया।