शांतिकुंज गायत्रीतीर्थ आना एवं यहां के साधना सत्रों में भागीदारी करना जीवन का एक बहुत बड़ा सौभाग्य माना जाना चाहिए। परमपूज्य गुरुदेव इसे महाकाल का घोंसला कहते रहे है, जहाँ से इक्कीसवीं सदी की ज्ञान गंगोत्री प्रवाहित हुई है। शीतऋतु, जो आश्विन नवरात्रि से आरंभ हो जाती है, तो अति विशिष्ट होती है। सभी महत्वपूर्ण साधनाएं इन्हीं दिनों की जाती है। दिन छोटे होते है, रात्रि बड़ी। वैसे भी आदमी अति शीत के कारण स्वयं को अंतर्मुखी बना लेता है। ऐसे में साधना फलदायी होती है।
मार्च अप्रैल से आरंभ होकर अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक वह समय चलता है, जब भारत व विदेशों के कोने कोने से कार्यकर्ता कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों के लिए यहाँ आते है। अत्यधिक भीड़ होती है। क्षेत्र के वरिष्ठ किंतु भावुक कार्यकर्ता एक स्लिप लिखकर अपना संदर्भ देते हुए एक बस भरकर परिजनों को भेज देते है। निश्चित ही इनने अनुमति नहीं ली होती है। इस अनगढ़ आगमन से साधना सत्र प्रभावित होते है। इसलिए शीतऋतु में शांतिकुंज आकर साधना करना एक ऐसा अवसर है, जिसे किसी भी आध्यात्मिक प्रगति के इच्छुक को नहीं छोड़ना चाहिए। अब तो यहाँ देवसंस्कृति विश्वविद्यालय भी है, जहाँ लगभग दस हजार से अधिक ग्रंथ है, पढ़ाने वाले समयदानी विद्वान है तथा बहुत कुछ सीखने योग्य है। इतनी अधिक ठंड भी नहीं पड़ती कि भारतीय हुआ जाए।
शांतिकुंज हरिद्वार व गायत्री तपोभूमि मथुरा में तथा जन्मभूमि तीर्थ आंवलखेड़ा (आगरा) में भी सत्र वर्षभर चलते रहते है। शेष दो स्थानों पर घोषित सत्र ही होते है, पर शांतिकुंज में प्रति क्षण कोई न कोई सत्र चल रहा होता है। पूर्वानुमति लेकर अपना विस्तृत विवरण भेजकर कोई भी आ सकता है। शांतिकुंज के विशिष्ट सत्र, जो इस वर्ष शीतऋतु में किए जा सकते है, इस प्रकार है-
(1) नौ दिवसीय या एकमासीय संजीवनी साधना सत्र- ये सत्र प्रतिमाह 1 से 1,11 से 11,21 से 21 तारीखों में चलते हैं। नौ दिन की अवधि में चौबीस हजार गायत्री मंत्र का एक अनुष्ठान, आठ प्रेरक उद्बोधन, इतनी ही प्रेरणादायी गोष्ठियां तथा वीडियो संदेश दिनभर की दिनचर्या साधक को व्यस्त रखते हैं। प्रातः 4 बजे (26 सितंबर 23 से 2 मार्च 24 तक) उठाना होता है। हिमालय समीप होने पर भी ठंड इतनी नहीं होती कि कोई परेशानी हो। फिर तप तितिक्षा का विशेषकर तीर्थों में तो विशेष महत्व है ही। कुछ व्यक्ति एक माह की साधना का संकल्प लेकर आते हैं, उन्हें एक जीवन साधना सत्र व शेष समय साधनाक्रम समुचित मार्गदर्शन के साथ पूरा करने को कहा जाता है।
(2) अंतः ऊर्जा जागरण सत्र- ये मौन साधना सत्र है जो पाँच दिन के होते है। इनमें भागीदारी के लिए अनिवार्य है कि न्यूनतम नौ दिन का एक सत्र पहले संपन्न कर लिया हो। इस वर्ष ये सत्र 11 अक्टूबर से आरंभ होकर 25 दिसंबर तक चलेंगे (1 से 5, 6 से 10..... इस क्रम से) फिर 6 जनवरी से 12 जनवरी तक एवं 31 जनवरी से 21 फरवरी एवं 1 मार्च से 2 मार्च 24 तक चलेंगे। कुल 28 सत्र इस वर्ष के लिए निर्धारित है। इस वर्ष प्रति सत्र मात्र 32 साधक ही लिए जा रहे है। प्रत्येक को अपने विषय में विस्तार से लिखना होता है कि वे मौन से जुड़ी अन्य मर्यादाओं को निभा पाएंगे कि नहीं।
(3) युगशिल्पी एवं परिव्राजक सत्र- ये सत्र क्रमशः एक व डेढ़ माह के होते है। युगशिल्पी पाठ्यक्रम में पौरोहित्य, संभाषण, संगीत, युगनेतृत्व की प्रारंभिक जानकारी दे दी जाती है। परिव्राजक सत्र इन्हीं को आगे बढ़ाकर आगामी माह की 15 तारीख तक चलते है। लोकनायक बनने हेतु उत्सुक साधकों के लिए ये बहुत सटीक है। प्रतिमाह 1 से 21 एवं 1 से अगले माह की 15 तक ये चलते है।
(4) नौ दिवसीय रचनात्मक एवं छह दिवसीय आर.सी.एच. सत्र- ये सत्र बड़े विशिष्ट है। स्वावलंबन ग्राम प्रबंधन कुटीर उद्योग प्रधान ये शिक्षण सत्र प्रतिमाह 7 दिन के लिए 1 से 18 एवं 21 से सात तारीखों में होते है। शिशु एवं मातृ स्वास्थ्य, प्रजनन संबंधी प्रशिक्षण भी छह दिन हेतु प्रतिमाह 23 से 28 की तारीखों में संपन्न होता है। सरकारी संगठनों अथवा मिशन के उत्साही स्वास्थ्य से जुड़े समूहों को प्राथमिकता दी जाती है।
(5) विविध सत्र- इनमें भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की संगोष्ठियाँ, विश्वविद्यालय की कार्यशालाएं, कार्यकर्ता संगठन प्रशिक्षण, पाँच दिवसीय व्यक्तित्व परिष्कार सत्र, नैतिक प्रशिक्षण शिविर तथा ढाई दिवसीय जीवन प्रबंधन सत्र प्रमुख है, जो माँग के अनुसार आयोजित होते है।
प्रस्तुत शीतऋतु एक अवसर लेकर आई है। बिना प्रशिक्षण के मनुष्य अपने कौशल को, आत्मशक्ति को निखार नहीं सकता। इस शीतऋतु में ऐसा अवसर अपने भी जीवन में आए, ऐसा चिंतन अभी से चलने लगे।