आयुर्वेद-8 - सभी रोगों में सामान्य पथ्यापथ्य एवं औषधि सेवन के नियम

October 2003

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आयुर्वेद चिकित्सा में किसी भी रोगोपचार में औषधि सेवन से अधिक पथ्य परहेज पर जोर दिया जाता है। कहा जाता है कि पचास प्रतिशत बीमारी तो पथ्य परहेज का सही ढंग से पालन करने से ठीक हो जाती है। शेष बीमारी नियमित रूप से निर्धारित औषधि के सेवन करने से दूर हो जाती है। वस्तुतः आयुर्वेद में औषधि सेवन का अपना एक सुनिश्चित नियम व विधान है। सारी औषधियां त्रिदोष अर्थात् वात, पित्त व कफ के प्रकुपित होने से उपजे दोषों के आधार पर दी जाती है और तदनुरूप ही पथ्यापथ्य का निर्धारण किया जाता है।

विविध रोगों में सामान्य पथ्यापथ्य

सामान्य पथ्य अर्थात् हितकर आहार

रोगोपचार करने से पूर्व यह जान लेना जरूरी है कि किस रोग में व्यक्ति को कौन सा आहार देना चाहिए। कुछ पदार्थ तो ऐसे है, जो सभी प्रकार के रोगियों को दिए जा सकते है। इनमें सम्मिलित है गेहूं, मूंगदाल छिलके वाली, लौकी, तोरी, कच्चा पपीता, गाजर, टिंडा, पत्तागोभी, करेला, परबल, पालक , हरी मेथी, अंकुरित अन्न, सहजन की फली, सेमल के कच्चे फूल की सब्जी, हरी मिर्च व अदरक अल्प मात्रा में। गाय का दूध व घृत सर्वोत्तम है। गौ दुग्ध उपलब्ध न होने पर भैंस का दूध प्रयोग में लाया जा सकता है।

फलों में वृक्ष के पके सेव, पपीता,चीकू,अनार, अमरूद, बग्गुगोसा, जामुन,मौसमी आदि फलों का प्रयोग सामान्यतः किया जा सकता है। सूखे फलों में काजू, बादाम, मुनक्का, किसमिस, अंजीर, चिलगोजा, छुआरा, मखाना, खजूर आदि का प्रयोग किया जा सकता है।

वात, पित्त एवं कफ प्रधान रोगों के अनुसार पथ्यापथ्य इस प्रकार है-

(1) वातरोगों में पथ्य

वातप्रधान रोगों में सामान्य पथ्य में लिखित उपर्युक्त आहार लेना चाहिए। सहजन के फूल व कच्ची फली की सब्जी ,सेमल के फूल, मेथी,अदरक, अजवायन,लहसुन आदि का उपयोग भोजन के साथ साथ करना वातजव्याधियों में औषधीय कार्य भी करता है।

वात रोगों में अपथ्य :- उड़द की दाल, चावल, फूलगोभी, आलू,खीरा, मटर,टमाटर, अमचूर,नीबू,संतरा, अंगूर, कार्बाइड से पके हुए फल जैसे आम, केला, पपीता आदि , आचार ,दही, छाछ आदि कोई भी खट्टी चीज वात रोगों में नहीं खानी चाहिए। भैंस का दूध, पेठा,राजमा, मसूर आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए। ठंडे पानी से स्नान नहीं करना चाहिए। गरम जल में तेल नमक डालकर पीड़ा व सूजनयुक्त स्थान पर सिकाई करने से विशेष लाभ होता है।

(2) पित्त रोगों में पथ्य

सामान्य पथ्य में वर्णित उक्त आहार ही पित्तजन्य रोगों को भी अनुकूल पड़ता है। गेहू,दलिया, ठढाँ दूध, छिलके वाली मूगं दाल ,तोरी आदि सुपाच्य भोजन पित्त रोगों में लाभप्रद है। दूध में मुनक्का व अंजीर का उपयोग कर सकते है। कच्चे नारियल का पानी पित्त रोगों में पीना लाभकारी होता है।

पित्त रोगों में अपथ्य :- वातरोगों में जो चीजें अपथ्य बताई गई है, वही पित्त रोगों में भी अपथ्य है। इसके अतिरिक्त बैंगन, नारियल गिरी, अदरक, हरी मिर्च ,लहसुन, सभी प्रकार के मिर्च मसाले , तीखे व तले हुए पदार्थ पित्त रोगों में अपथ्यकर होते हैं। अतः इन्हें नहीं खाना चाहिए।

(3) कफ रोगों में अपथ्य

वात रोगों में बताए गए अपथ्य का कफ रोगों में भी पालन करना चाहिए। उसके अतिरिक्त तैल,घृतादि,किसी भी प्रकार की चिकनाई का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सब्जी आदि में छोंक बघार के लिए अति अल्प मात्रा में सरसों व तिलादि के तैल का उपयोग किया जा सकता है।

(4) मधुमेह में पथ्य

मधुमेह डायबिटीज में मीठा, मिठाई, अधिक मीठे फल, चावल, आलू आदि खाना वर्जित है। फलों में सेब, मौसमी, अनार, देशी पपीता अमरूद आदि कम मीठे फल अल्प मात्रा में ले सकते है। सुगर की मात्रा यदि बढ़ी हुई हो तो ये फल भी नहीं खाने चाहिए। करेला, जामुन, नीम, गेहूं व सोयाबीन तथा चने से मिश्रित आटे की रोटी का सेवन करना मधुमेह रोगी के लिए सर्वोत्तम आहार है।

(5) पाइल्स बवासीर

इस व्याधि से पीड़ित व्यक्ति को सामान्य पथ्य में वर्णित आहार लेना चाहिए। लाल मिर्च, तीखे व तले हुए पदार्थ, अमचूर, गरम मसाले, बैंगन आदि के सेवन से बचना चाहिए। प्रात काल व दिन में भी पर्याप्त मात्रा में जल पीना चाहिए, जल के उचित सेवन से कब्ज नहीं होता।

(6) हृदय रोग

हृदय रोग में भी सामान्य पथ्य में वर्णित आहार लेना उपयुक्त रहता है उनमें से भी शाक सब्जियां, शीघ्र पचने वाले फल, सेव, पपीता आदि एवं फलों का रस, अंकुरित अन्न, गाय का दूध,दूध में अल्प मात्रा में कभी कभी ईसबगोल आदि का प्रयोग उपयोगी है। दूध में अर्जुन की छाल पकाकर पीना अत्यंत लाभकारी होता है।

(7) पीलिया

पीलिया रोग में घृतादि सभी प्रकार की चिकनाई, दूध, हल्दी जैसी कोई भी पीले रंग की चीज, चावल, मिर्च,मसाले आदि पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए। गेहूं व जौ के आटे की रोटी, ताजा दही, छाछ, लौकी, तोरी, मूंग की दाल छिलकायुक्त आदि सुपाच्य भोजन इस रोग में लाभदायक है।

(8) हाइपोथाइरायडिज्म

यह थाइराक्सिन हार्मोन की गड़बड़ी से उत्पन्न होने वाला रोग है। इसमें भी सामान्य पथ्य में वर्णित सुपाच्य आहार लेना चाहिए। अमचूर, दही, खटाई, अचार, नीबू, खट्टे फल, टमाटर,फूलगोभी, कार्बाइड से पके फल आदि नहीं खाने चाहिए। ऋतु फलों में देशी आम जो स्वाभाविक रूप से पेड़ पर पके हो और मीठे हो, उन्हें खा सकते है। इसी तरह पेड़ पर नैसर्गिक रूप से पके हुए पपीता खा सकते है। आयोडीन की अधिकता वाले पदार्थ या फल आदि पर्याप्त मात्रा में लिए जा सकते है। गेहूं, चना व सोयाबीन से मिश्रित आटे की रोटी का सेवन करना लाभदायक है। कचनार वृक्ष की ताजी छाल थोड़ी थोड़ी मात्रा में मुंह में डालकर चूसते रहने से अत्यधिक लाभ मिलता है।

(9) मोटापा

मोटापा सभी रोगों का आदि स्रोत है। इसमें मीठे पदार्थ एवं घृत का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। सामान्य पथ्य के अंतर्गत वर्णित सुपाच्य आहार का सेवन करना स्वास्थ्य संतुलन के लिए सर्वथा हितकारी है। गौ दुग्ध अल्प मात्रा में ले सकते है। प्रातः उष्णजल, उचित औषधि व व्यायाम अति लाभप्रद है।

सर्वथा असेवनीय पदार्थ

चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक्स, आईसक्रीम तंबाकू, गुटका, पानमसाला, माँस, मदिरा, अंडे व मैदे से बने ब्रेडादि, कन्फेशनरी एवं सिंथेटिक फूड्स कार्बाइड से पके फल।

औषधि सेवन की सामान्य विधि

आयुर्वेद औषधियों में प्रमुख रूप से वटी या गोलियाँ, पाउडर या चूर्ण, रस भस्में (पुड़िया), आसव आरिष्ट व क्वाथ या कढ़ा आदि का सेवन किया जाता है। इन्हें लेते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

(1) गोलियां व चूर्ण

भोजन करने के लगभग 1-2 मिनट बाद गोली व चूर्ण लेना चाहिए। वातज कफ प्रधान रोगों में गरम जल से तथा पित्त प्रधान रोगों में सामान्य जल से गोलियां तथा चूर्ण का सेवन करना चाहिए। गोलियां चबाकर खाना उत्तम माना जाता है। यदि गोली कड़वी हो तो बिना चबाए भी जल के साथ सीधे निगल सकते हैं। इस संबंध में दो बाते विशेष रूप से ध्यान में रखनी चाहिए-

(अ) मुक्तादि वटी, मधुनाशिनी एवं कायाकल्प वटी इनका सेवन खाने से लगभग एक घंटा पहले ताजे पानी से करना चाहिए।

(ब) दस्त अथवा अम्लपित्त के लिए सेवनीय चूर्ण खाने से पहले वैद्य या चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।

(2) भस्में (पुड़िया)

भस्म व रस आदि का मिश्रण करके जो पुड़िया में औषधि दी जाती है, उसका सेवन भोजन करने से लगभग आधा से एक घंटा पहले शहद, मलाई अथवा गरम जल के साथ करना चाहिए।

(3) आसव-आरिष्ट

सभी प्रकार के आसव आरिष्ट खाने के 10-15 मिनट बाद समान मात्रा में जल मिलाकर उपयोग में लाए जाते है।

(4) क्वाथ या काढ़ा

क्वाथ का स्वाद यदि कड़वा हो तो शहद या मीठा मिलाकर भी पी सकते हैं, वैसे मीठे के बिना पीना अधिक लाभप्रद होता है।

(5) क्वाथ-स्नान

रोगानुसार दिए गए क्वाथ से यदि वाष्प (भाप) लेनी हो तो निर्दिष्ट औषधि को एक डेढ़ किलो पानी में प्रेशरकुकर में डालकर पकाएं। जब सीटी से वाष्प निकलने लगे, तब सीटी को हटाकर उसके स्थान पर गैस वाला रबर का पाइप लगाए तथा पाइप के दूसरे सिरे से निकलती हुई वाष्प से रोगयुक्त स्थान पर वाष्प दे। पाइप के जिस सिरे से वाष्प निकलती है, वहां कपड़ा लगाकर रखे अन्यथा तेज उष्ण वाष्प ही शरीर पर लगनी चाहिए। उचित समय में वाष्प लेने के बाद शेष बचे हुए जल से पीड़ा युक्त स्थान पर मध्यम उष्ण पानी डालते हुए सिंकाई करनी चाहिए।

(6) मालिश

मालिश सदैव हृदय की ओर उचित बल का प्रयोग करते हुए शनैः शनैः करनी चाहिए।

उपयुक्त नियमोपनियमों का पालन करते हुए यदि चिकित्सा उपचार किया जाए तो उसके सत्परिणाम सुनिश्चित रूप से मिलते है, इसमें कोई संदेह नहीं है।


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