उसकी लाज बची (kahani)

October 2003

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द्रौपदी गंगा स्नान कर रही थी। दृष्टि दौड़ाई तो देखा कि कुछ दूर पर एक साधु स्नान कर रहा है। हवा से उसकी किनारे पर रखी लंगोटी पानी में बह गई और जिसे वह पहने था, पुरानी होने के कारण संयोगवश वह भी उसी समय फट गई। बेचारा असमंजस में था। नंगी-उघारी स्थिति में लोगों के बीच से कैसे गुजरे। उसने दिन भर झाड़ी में छिपकर समय काटने और अंधेरा होने पर कुटी में लौटने का निश्चय किया। सो छिप गया।

द्रौपदी को स्थिति समझने में देर न लगी। वे झाड़ी तक पहुँची। अपनी साड़ी का एक भाग फाड़कर साधु को दे दिया। कहा-इसमें से दो लंगोटी बना लीजिए। अपनी लाज बचा लें। साधु ने कृतज्ञतापूर्वक वह अनुदान स्वीकार किया।

दुर्योधन की सभा में द्रौपदी की लाज उतारी जा रही थी। उसने भगवान को पुकारा। भगवान सोचने लगे इसका कुछ पुण्य जमा हो तो बदले में अधिक दे सकना संभव है। देखा तो साधु की लंगोटी वाला कपड़ा ब्याज समेत अनेक गुना हो गया था। भगवान ने उसी को द्रौपदी तक पहुँचाया और उसकी लाज बची।


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