क्रोध स्वयं उसे ही खा गया (kahani)

October 2003

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एक बार एक भक्त ने नानक से पूछा- “आप कहते हैं कि सब पैसे वाले एक जैसे नहीं होते। इसका क्या तात्पर्य है?” नानक बोले- “उत्तम लोग वे हैं जो उपार्जन को सत्प्रयोजनों के निमित्त खरच कर देते हैं। मध्यम श्रेणी के व्यक्ति वे हैं, जो कमाते हैं जमा करते हैं, पर सदुपयोग करना भी जानते हैं तीसरी श्रेणी उनकी है, जो कमाते नहीं कही से पा जाते हैं और उड़ा जाते हैं। ऐसे लोग संसार में पतन का कारण बनते है।”

एक जंगल में एक सिंह रहता था। प्रायः सिंहों का स्वभाव होता है कि ये हिंसक वृत्ति के होते हुए भी अकारण हिंसा नहीं करते। किंतु यह सिंह बड़ा अहंकारी था और प्रकृति के नियम का अपवाद करता था। जंगल के सारे जानवर परेशान थे। अस्तु, एक छोटे से खरगोश ने उसे खत्म करने का निश्चय कर लिया। उसने बुद्धि का सहारा लिया और एक दिन उस दुर्बुद्धि सिंह का विनाश कर दिया।

उसने शेर की मांद के पास एक छोटा बिल बनाया और उसमें बैठकर उसे गाली देने लगा। शेर ने सुना तो क्रोध से पागल हो गया। शेर बिल के भीतर तो घुस नहीं सकता था, इसलिए बिल के मुंह पर बैठकर उसके निकलने की प्रतीक्षा करने लगा। फल यह हुआ कि चार छह दिन बाद भूखा प्यासा क्रोधी सिंह तड़प तड़पकर मर गया। उसका क्रोध स्वयं उसे ही खा गया। क्रोधी की यही दशा होती है।


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